- मोदी के रहते क्रास वोटिंग की सम्भावना मुश्किल
- सभी घटक को एकजुट रखने की क्षमता
बीते 9 सितम्बर को संपन्न हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन की प्रभावशाली विजय ने भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। 452 वोट प्राप्त करके विपक्षी इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के मार्जिन से पराजित करना केवल एक चुनावी जीत नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण क्षण है।
विपक्ष का आत्मविश्वास और उसकी वास्तविकता
विपक्षी इंडिया गठबंधन का आत्मविश्वास मुख्यतः तीन कारकों पर आधारित था। पहला, लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने से उत्पन्न हुई धारणा कि एनडीए में दरारें हैं। दूसरा, कुछ राज्यों में भाजपा की हालिया हारों का गलत विश्लेषण। तीसरा, सामाजिक न्याय और संविधान के मुद्दों पर जनता का समर्थन हासिल करने की अपनी क्षमता का अतिआकलन। विपक्ष का मानना था कि भाजपा के सहयोगी दल जैसे जेडीयू, टीडीपी और एलजेपी में असंतोष है और वे निर्णायक क्षण पर पार्टी लाइन से हट सकते हैं। न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी जैसे गैर-राजनीतिक व्यक्तित्व को उम्मीदवार बनाकर वे क्रॉस वोटिंग की उम्मीद कर रहे थे।
रणनीतिक विफलता के कारण
विपक्ष की रणनीति की मूलभूत त्रुटि यह थी कि उन्होंने संसदीय लोकतंत्र में गठबंधन की गतिशीलता को गलत समझा। एनडीए के 425 सांसद बनाम विपक्ष के 324 सांसद का गणित स्पष्ट था लेकिन विपक्ष ने मानसिक दबाव और भावनात्मक अपील के सहारे इस गणित को बदलने की कोशिश की।
गठबंधन की मजबूती
उपराष्ट्रपति चुनाव के परिणामों ने साबित कर दिया है कि एनडीए गठबंधन में जो एकजुटता है, वह विपक्ष की उम्मीदों से कहीं अधिक मजबूत है। नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे नेताओं का अपने सहयोगी दलों के साथ एनडीए के साथ खड़े रहना यह दिखाता है कि राजनीतिक स्वार्थ और राष्ट्रीय हित के बीच वे स्पष्ट अंतर करते हैं।
एनडीए की आंतरिक शक्ति
152 वोटों के मार्जिन से जीत यह साबित करती है कि भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बीच न केवल संख्या बल्कि विचारधारा की एकता भी है। यह जीत दिखाती है कि एनडीए में भाजपा की नेतृत्व क्षमता को लेकर कोई सवाल नहीं है।
विपक्षी प्रचार की हकीकत
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा भाजपा में आंतरिक कलह के दावे निराधार साबित हुए हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर एनडीए की एकजुटता ने विपक्ष की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
प्रधानमंत्री का बढ़ता कद
उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की जीत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व की पुष्टि की है। गठबंधन राजनीति के इस दौर में भी उनकी केंद्रीय भूमिका को लेकर कोई सवाल नहीं रह गया है। यह जीत दिखाती है कि 'मोदी है तो मुमकिन है' का नारा अब भी राजनीतिक रूप से प्रासंगिक है।
पार्टी संगठन की मजबूती
भाजपा के पार्टी अनुशासन और संगठनात्मक शक्ति का प्रदर्शन इस चुनाव में स्पष्ट रूप से दिखा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पार्टी की एकजुटता न केवल बरकरार है बल्कि और मजबूत हुई है।
पार्टी में सुगबुगाहट की अनुपस्थिति
विपक्ष द्वारा भाजपा में आंतरिक कलह के दावे पूरी तरह गलत साबित हुए हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी की एकजुट कार्यप्रणाली से यह स्पष्ट है कि भाजपा में कोई गंभीर आंतरिक सुगबुगाहट नहीं है।
विपक्ष के लिये 'दिल्ली दूर है'...
उपराष्ट्रपति चुनाव की हार ने इंडिया गठबंधन की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। गठबंधन में विचारधारात्मक एकता का अभाव, नेतृत्व को लेकर स्पष्टता की कमी और राज्यवार राजनीतिक हितों के टकराव जैसी समस्याएं स्पष्ट हो गई हैं।
राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय राजनीति
विपक्षी दल मुख्यतः अपनी क्षेत्रीय पहचान और स्थानीय मुद्दों पर निर्भर हैं, जबकि भाजपा ने राष्ट्रीय विकास, सुरक्षा और सामाजिक कल्याण के एजेंडे को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। यह अंतर 2024 के बाद की राजनीति में और भी स्पष्ट हो गया है।
गठबंधन की आंतरिक समस्याएं
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य क्षेत्रीय दलों के बीच नेतृत्व और नीतिगत मतभेद इंडिया गठबंधन की प्रभावशीलता को कम कर रहे हैं। केंद्रीय स्तर पर एक स्पष्ट विकल्प प्रस्तुत करने में उनकी असमर्थता स्पष्ट है। उत्तर-प्रदेश में 37 सीट पाने के बाद अखिलेश यादव अलग अंदाज में रहते हैं। उनको अपने पीडीए के वोट बैंक का अंहकार है। शायद उनकों यह नहीं पता कि मोदी के प्रधानमंत्री रहते कोई भी आरक्षण पर हमला नहीं बोल सकता। साथ ही संविधान बदलने का दावा भी खोखला साबित हो जाएगा। अब जनता जागरूक हो गई किसी भी दल को इतना बहुमत नहीं देगी कि वह मनमानी करे।
भाजपा की मजबूत स्थिति
उपराष्ट्रपति चुनाव की जीत ने 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की स्थिति को मजबूत बनाया है। यूपी में भाजपा से सीटे छिनने के बावजूद विपक्ष की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं। इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि विपक्ष पर जनता का भरोसा बार- बार नहीं होगा। उसकों इसके लिए पहल करनी होगी।
सामाजिक समीकरण
उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की एकजुटता ने दिखाया है कि भाजपा का सामाजिक आधार मजबूत है। सी.पी. राधाकृष्णन की जीत दक्षिण भारतीय राजनीति में भी भाजपा की स्वीकार्यता को दर्शाती है।
विपक्षी रणनीति की पुनर्समीक्षा
समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस को अपनी रणनीति की पुनर्समीक्षा करनी होगी। उपराष्ट्रपति चुनाव ने साबित कर दिया है कि केवल जातिगत गणित और धर्मनिरपेक्षता के नारे पर्याप्त नहीं हैं।
आरक्षण और संविधान के मुद्दे
विपक्ष द्वारा आरक्षण और संविधान के खतरे के दावे के बावजूद भाजपा की जीत यह दिखाती है कि पार्टी ने इन मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है। पिछड़े वर्गों और दलितों में भाजपा की बढ़ती स्वीकार्यता इसका प्रमाण है। इंडी गठबंधन कोई दलित या ओबीसी को प्रत्याशी बनाता तब भी कोई संदेश होता लेकिन इससे साबित हो रहा है कि अखिलेश यादव का पीडीए का नारा खोखला है। यह केवल वोट बैंक की राजनीति से ज्यादा हकीकत में कुछ नहीं है।
सामाजिक न्याय की नई परिभाषा
भाजपा ने सामाजिक न्याय को विकास, रोजगार और कल्याणकारी योजनाओं से जोड़कर इसकी एक नई परिभाषा गढ़ी है। यह दृष्टिकोण पारंपरिक जातिगत राजनीति से कहीं अधिक प्रभावी साबित हो रहा है।
संविधान प्रतिबद्धता का प्रदर्शन
उपराष्ट्रपति चुनाव जैसी संवैधानिक प्रक्रिया में भाजपा की पूर्ण भागीदारी और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ने विपक्ष के दावों को खारिज कर दिया है।
एनडीए की चुनौतियों का समाधान
भाजपा को आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और महंगाई नियंत्रण पर ध्यान देना होगा। 'विकसित भारत 2047' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ठोस नीतियों पर अमल आवश्यक है।
सामाजिक सद्भावना
धार्मिक और जातिगत सद्भावना बनाए रखना भाजपा की प्राथमिकता होनी चाहिए। 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के सिद्धांत पर और भी दृढ़ता से अमल करना होगा।
युवा और महिला सशक्तिकरण
युवाओं के लिए रोजगार के अवसर और महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
भविष्य की राजनीतिक रणनीति
उपराष्ट्रपति चुनाव की जीत के बाद भाजपा को अपनी सफलता को और मजबूत बनाने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाने होंगे। पहला, संगठनात्मक विस्तार और मजबूतीकरण। दूसरा, नई पीढ़ी के नेताओं को आगे लाना। तीसरा, राज्यवार रणनीति में संशोधन।
विपक्ष की भावी चुनौतियां
इंडिया गठबंधन को अपनी एकजुटता और वैकल्पिक एजेंडे पर काम करना होगा। केवल भाजपा विरोध के आधार पर राजनीति करना पर्याप्त नहीं होगा। उन्हें विकास, सुशासन और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर स्पष्ट नीति तैयार करनी होगी।
मीडिया और जनमत
उपराष्ट्रपति चुनाव ने दिखाया है कि मीडिया की भूमिका और जनमत निर्माण में सोशल मीडिया का प्रभाव कितना महत्वपूर्ण है। सभी राजनीतिक दलों को इन माध्यमों का सकारात्मक उपयोग करना होगा। उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 का परिणाम केवल एक संवैधानिक पद की भर्ती नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की दिशा निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। सी.पी. राधाकृष्णन की प्रभावशाली जीत ने एनडीए की एकजुटता, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की मजबूती और भाजपा के संगठनात्मक बल को रेखांकित किया है।
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डॉ. सुनील कुमार |
विपक्ष के लिए यह समय आत्मचिंतन का है। उन्हें अपनी रणनीति, नेतृत्व और एजेंडे की समीक्षा करनी होगी। केवल भावनात्मक अपील और नकारात्मक राजनीति के सहारे आगे बढ़ना संभव नहीं होगा। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह चुनाव यह संकेत देता है कि स्थिरता, विकास और सुशासन की राजनीति ही भविष्य की राह है। 2027 के उत्तर प्रदेश चुनाव और 2029 के आम चुनाव की दिशा इसी परिणाम से तय होगी। "मोदी है तो मुमकिन है" का नारा अभी भी प्रासंगिक है लेकिन इसे विकास के ठोस परिणामों से पुष्ट करना होगा। विपक्ष के लिए "दिल्ली" वास्तव में दूर है, जब तक वे एक स्पष्ट विकल्प प्रस्तुत नहीं करते। उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 ने भारतीय राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत की है, जहां गठबंधन धर्म, नेतृत्व की स्पष्टता और जनकल्याण के एजेंडे की प्राथमिकता होगी।
डॉ. सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर जनसंचार विभाग
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर।