- राजस्व को चूना लगाने एवं अपनी जेबें भरने में मस्त हैं सम्बन्धित
- सरकारी तंत्र का सक्रिय न होना एवं विभागीय आरक्षियों में गुटबन्दी कराकर काम लिया जाना बना चर्चा का विषय
जौनपुर। जनपद जौनपुर उत्तर प्रदेश की राजनीति की धुरी मानी जाती है परन्तु राजनीति देश और समाज के विकास तक ही सीमित रहता है तो देश और सरकार का उत्थान होता है परन्तु जब सरकार के अधीन चलने वाले विभागों में राजनीति प्रवेश करते ही अपने कार्य और पद पर नहीं, बल्कि अहम और वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है। उसमें उच्चस्थ पद पर आसीन लोगों को फायदा और अधीनस्थ कर्मचारियों का शोषण किया जाता है। आइये जानते हैं अग्निशमन विभाग के कार्यों और विभाग में पनपती दुर्व्यवस्थाओं के बारे में।
सूत्रों की मानें तो जिला मुख्यालय सहित सभी तहसीलों में अग्निशमन विभाग अपने पूर्ण उपकरणों और प्रयोग में आने वाले वाहनों सहित प्रशिक्षित आरक्षियों से परिपूर्ण है। अब सवाल यहां यह उठता है कि जनपद में सैकड़ों मैरेज लॉन, होटल, रेस्टोरेंट, इण्टर/डिग्री कालेज हैं। साथ ही दर्जन भर गैस गोदाम के अलावा सैकड़ों बड़े निजी चिकित्सालय के अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे प्रतिष्ठान हैं जहां अग्निशमन यंत्र का होना अति आवश्यक है। बता दें कि उसका प्रशिक्षण महत्वपूर्ण होता है परन्तु यहां सिर्फ कागजी कोरम पूरे कराये जाते हैं किन्तु वास्तविक कार्य विभाग द्वारा नहीं होता है। उसका वास्तविक काम और आर्थिक लाभ निजी अग्निशमन उपकरण विक्रय करने वाले लोगों तक जाता है, फिर उत्तर प्रदेश अग्निशमन विभाग उन पर ही आधारित होकर आर्थिक लाभ और सरकारी तंत्र से लाभान्वित हो रहा है।
बताते चलें कि विभागीय वाहनों का निजी प्रयोग किया और कराया जाता है जिसमें फायर स्टेशन ऑफिसर और चीफ फायर ऑफिसर आपस में आरक्षियों का ग्रुप बनाकर नियमित रूप से अपने ही अधीन रखकर काम कराये जाते हैं परन्तु विभाग में फैल रही दुर्व्यवस्थाओं पर अंकुश लगाने में दोनों ही अधिकारी असफल दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो विभागीय लोगों का कहना है कि निजी उपकरण विक्रय करने वालों द्वारा ही रिपोर्ट सम्पादित होते रहते हैं। हमारा काम होता रहता है। एनओसी तक का कार्य उन्हीं के द्वारा करा लिया जाता है। हमारी जरूरत तब पड़ती है जब कहीं आग लगे या कोई दुर्घटना घटती है। अब सवाल उठता है कि घटना होने से पहले प्राथमिकी राहत हेतु विभाग क्यों कदम नहीं उठाती? क्यों सरकारी तंत्र सक्रिय नहीं है? क्यों विभाग के आरक्षियों में गुटबन्दी कराकर काम लिया जाता है? शासन—प्रशासन द्वारा अग्निशमन विभाग और उपकरणों का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं के स्थल की जांच करायी जाय तो दूध का दूध और पानी का पानी स्पष्ट हो जायेगा। कितने ऐसे ज्वलनशील पदार्थों के क्रेता—विक्रेता हैं जहां नियमित रूप से उपकरणों की फिलिंग और उनके सक्रियता की जांच अनिवार्य है परन्तु ऐसे में उपभोक्ता के मन—मुताबिक रिनिवल रिपोर्ट लगाकर उन्हें क्लीन चिट दे दिया जाता है। उसके बदले में अच्छा—खासा सुविधा शुल्क और सेवा मिल जाता है। उक्त विभाग पर सरकार द्वारा जारी नियमावली सिर्फ कागज पर ही पूरा होता है जबकि उसकी जांच होनी चाहिये।
दुर्व्यवस्थाओं पर एक नजर
अग्निशमन विभाग में लीडिंग फायरमैन सभी पुराने आरक्षी हैं जिनका आज तक प्रमोशन ही नहीं हुआ है। उनके द्वारा ही वाहन चलवाये जाते हैं जबकि चिकित्सकों द्वारा जांच कराया जाय तो कितने ही अनफिट मिलेंगे। इनकी आंखों की रोशनी भी कम हो गयी है परन्तु विभागीय अधिकारियों की शिथिलता अथवा धनउगाही के चलते प्रमोशन के लिये कभी लिखे ही नहीं। बता दें कि जौनपुर सदर फायर स्टेशन पर कुल स्टाफ 36 हैं जिनमें 2 अधिकारी हैं जिनके द्वारा बनाये गये 10 मद हैं। इसमें आरक्षियों की ड्यूटी लगायी जाती है जबकि नियमानुसार इतने मद नहीं हैं परन्तु कहीं न कहीं जातीय समीकरण हॉवी है।
अग्निशमन की कार्य प्रणाली पर उठते सवाल
अग्निशमन विभाग द्वारा कार्य करने वाले आरक्षियों का ही किया जाता है। शारीरिक, मानसिक शोषण सहित अन्य आरक्षियों को अपने द्वारा बनाये गये व्यक्तिगत मद में रखकर काम कराते हैं। जहां ड्यूटी लगायी गयी हो, उसमें परिवर्तन नहीं किया जाता, बल्कि ड्यूटी पर लगे हुये आरक्षी भले ही परेशान होते रहे। उनकी सुविधाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। रोस्टर के अनुसार पुलिस आफिस से ड्यूटी से लेकर एफएसओ व सीएफओ हमराह तक 10 लोग हैं। यहां तो वहीं कहावत चरितार्थ होती है कि 'बने रहो पगला, काम करे अगला।'
इस बाबत जानकारी लेने के लिये फायर स्टेशन आफिसर नागेन्द्र द्विवेदी से दूरभाष पर बात की गयी तो उन्होंने उपरोक्त सभी बिन्दुओं के प्रश्नों का उत्तर देने से कतराते रहे। साथ ही कुछ प्रश्नों का जवाब दिये लेकिन टाल—मटोल के साथ गोल-मोल अंदाज में।