- अधिवक्ता रानू जायसवाल की दलीलें मजबूत
राजीव जायसवाल
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में उन अधिकारियों को निर्देश दिया है जो पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (PCC) जारी करते हैं। वे याचिकाकर्ता मोहम्मद साहिल को PCC जारी करें। याचिकाकर्ता को एक मामूली आपराधिक मामले के कारण विदेश जाने के लिए आवश्यक यह प्रमाण पत्र नहीं मिल पा रहा था।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रानू जायसवाल ने न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश गुप्ता की खंडपीठ के समक्ष प्रभावी ढंग से यह तर्क रखा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अब कोई मामला विचाराधीन (pending) नहीं है।
अधिवक्ता श्री जायसवाल ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ केवल एक मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 294 के तहत दर्ज था। यह मामला पहले ही समाप्त हो चुका है।
"याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था जिसके बाद 29 अगस्त 2025 को विद्वान ट्रायल कोर्ट ने उसे 1000 का जुर्माना लगाकर और कोर्ट के उठने तक की सजा देकर दंडित किया था।"
श्री जायसवाल ने अपनी दलील में कहा चूँकि मामला निष्कर्ष पर पहुँच चुका है, इसलिए PCC जारी न करने का कोई आधार नहीं है। प्रतिवादी संख्या 1 और 2 (यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य) की ओर से दिए गए निर्देशों में यह स्पष्ट किया गया था कि एक बार स्पष्ट पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने पर उन्हें PCC जारी करने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
इस पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (PCC) जारी किया जाए। हालांकि यह प्रमाण पत्र पुलिस की इस संतुष्टि के अधीन होगा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अन्य मामला लंबित नहीं है। कोर्ट ने अधिकारियों को इस आदेश के संप्रेषण की तारीख से 4 सप्ताह की अवधि के भीतर यह प्रक्रिया पूरी करने का समय दिया है।
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