- क्या अनुभवहीन इंजीनियरों से संवेरगा विकासशील भारत का तकनीकी क्षेत्र?
- जहां डिग्री बेची जा रही, वहीं से अनुभव क्यों नहीं बेचते मनीष पाल?
जौनपुर। राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सिद्दीकपुर, उसराव मड़ियाहूं, सबरहद शाहगंज सहित जनपद के लगभग 122 निजी संस्थानों के छात्र—छात्राओं की परीक्षा चल रही है जिसके चलते सिद्दीकपुर और सबरहद संस्थान परीक्षा केन्द्र बनाये गये जहां परीक्षा उत्तीर्ण कराने के नाम पर जमकर धन उगाही की जा रही है। इस बारे में जिलास्तरीय सम्बन्धित अधिकारी एवं तकनीकी शिक्षा विभाग तक खबरों के माध्यम से सूचना लगातार पहुंचायी जा रही है लेकिन इसके बावजूद भी उपरोक्त धनउगाही पर किसी प्रकार का अंकुश लगाने में सभी असफल दिख रहे हैं। जहां केन्द्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्र को तकनीकी प्रधान बनाने में अग्रसर है, वहीं देश के भविष्य कहे जाने वाले तकनीकी छात्र—छात्राओं को पैसे के बल पर पास करा दिया जा रहा है परन्तु अनुभव के नाम पर शून्य है। क्या यही है सरकार के विकासशील देश का भविष्य?
बताते चलें कि राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान की परीक्षाएं 28 जुलाई 2025 से 22 अगस्त 2025 तक चार चरणों में तय हैं। 3 चरण की परीक्षा भारी अनियमितता, धनउगाही एवं चर्चा के बीच सम्पन्न हो गये हैं जबकि चौथा चरण चल रहा है। प्रतिदिन प्रात: 9 बजे से शाम 5 बजे तक में तीन पालियों में परीक्षा सम्पादित करायी जा रही हैं जिसमें लगभग 21000 छात्र—छात्राएं शामिल बताये गये। परीक्षा हाल में सुविधा दिलाने के नाम पर प्रत्येक छात्र—छात्राओं से 2000 लिया जा रहा है। यदि 21000 को 2000 गुणा किया जायेगा तो 4,20,00,000 होता है। सवाल उठता है कि सिर्फ परीक्षा केन्द्र से इतनी बड़ी आय हो तो शिकायत करने वाले किसी को भी प्रभावित किया जा सकता है। उनके साथ संस्थान को भी अच्छी—खासी आय हो रही है जिससे राजस्व को भी बढ़ाया जा सकता है। हो न हो, शायद आपसी बन्दरबांट होने से सभी उच्चस्थ अधिकारी अपने कानों में तेल डाले बैठे हैं। यहां तो वही कहावत चरितार्थ नजर आ रही है कि 'वर मरे चाहे कन्या, दक्षिणा से काम।'
अनुदेशकों को संस्थान की सुरक्षा का प्रभार तो कहीं स्टोर प्रभारी
राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सिद्दीकपुर के प्रधानाचार्य मनीष पाल की देख—रेख में जनपद के तीनों सरकारी आईटीआई उन्हीं के द्वारा बनायी गयी कार्यप्रणाली पर कार्य करते हैं। यहां से आये दिन नियमावली के विरुद्ध नयी बातें सामने आती हैं। जैसे कहीं स्टोर में पड़े फिनिश गुड्स की बात तो कहीं लाखों—लाख के बर्बाद हो रहे फिनिश गुड्स, कपड़े, फर्नीचर, मशीनों की मरम्मत आदि। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अनुदेशकों को संस्थान की सुरक्षा का प्रभार तो कहीं स्टोर प्रभारी बना दिया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार संस्थान के पारसनाथ यादव जो भंडार सहायक थे, से लगभग 4—5 वर्ष तक स्टोर का कार्य कराया जाता रहा है। उसी बीच उपदेश नारायण सिंह गाजीपुर से स्थानान्तरित होकर सिद्दीकपुर के संस्थान में वरिष्ठ भंडारी के रूप में अपना प्रभार लेकर कार्य करने लगे परन्तु प्रधानाचार्य के व्यक्तिगत बनाये गये सिस्टम में सटीक न बैठने पर उनको स्थानान्तरित कर दिया गया। साथ ही यह भी बताते चलें कि लाखों—लाख के राजस्व की क्षति उक्त प्रधानाचार्य की निगरानी में होता रहा है जिसका विरोध करने पर उपदेश नारायण को उनका दंश झेलना पड़ा।
चहेते अनुदेशक को 3 यूनिट के अलावा चौथे का भी मिला प्रभार
अनुदेशक अजय यादव को 3 यूनिट टर्नर, मशीनिंग सहित एक अन्य ट्रेड का प्रभार है लेकिन इसके बावजूद उनको उपदेश नारायण की मौजूदगी में ही स्टोर कीपर का प्रभार दे दिया गया। अजय यादव भण्डार की खरीदी मशीनों की मरम्मत आदि सभी कार्यों को पारस यादव के सहयोग से करने लगे। वहीं भंडारी उपदेश नारायण को अलग-थलग करते हुये लेजर का काम सौंप दिया गया परंतु फिर भी आये दिन राजस्व की हो रही क्षति की जानकारी उपदेश नारायण ने प्रधानाचार्य मनीष पाल को लिखित पत्र से दिया परन्तु उसे वह अपने सिस्टम का अवरोध मानते हुये उनका ही स्थानान्तरण करा दिये। इतना ही नहीं, अनुदेशक अजय यादव को 3 यूनिट के साथ भण्डारी का भी प्रभार दे दिये।
निजी प्रयोग में लिया जाता है प्रशिक्षण के लिये सरकारी डीजल-पेट्रोल
31 जुलाई 2019 को मुश्ताक हुसैन के सेवा मुक्त होने के पश्चात अनुदेशक शशिकान्त सिंघानिया जो मोटर मैकेनिक और ट्रैक्टर मैकेनिक के सभी यूनिट कार्य देख रहे हैं, को संस्थान के सुरक्षा का प्रभार देकर एक चौकीदार के रूप में कार्य कराया जा रहा है। प्रधानाचार्य मनीष पाल, अजय यादव और शशिकान्त सिंघानिया की मिलीभगत से बच्चों को ट्रेनिंग के लिये मिलने वाले सरकारी डीजल—पेट्रोल निजी प्रयोग में लाया जाता है। इतना ही नहीं, ट्रेनिंग वाहन को भी अपने व्यक्तिगत कार्य में प्रयोग किया जाता है। सवाल उठता है कि यदि बच्चों को मोटर ट्रेनिंग दी जाती है तो संस्थान में लगे सीसी कैमरे गवाही देने के लिये तैयार हैं। आउटसोर्सिंग से लिखित में तीन और मौके पर दो लोगों को ही रखते हैं। काम पर रखा जाता है, आखिर क्यों?
सहयोगियों सहित चर्चित प्रधानाचार्य की मनमानी से उठ रहे कई सवाल
राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सिद्दीकपुर से सम्बद्ध उसराव और सबरहद संस्थान के नोडल संस्थान के प्रधानाचार्य मनीष पाल और उनके सक्रिय सहयोगियों की चर्चा आम—खास हो गयी है जिससे कई सवाल उठ रहे हैं। क्या अनुभवहीन छात्र—छात्राओं का भविष्य सुरक्षित है? क्या उक्त संस्थान सरकारी तंत्र से सम्बन्धित नहीं हैं कि इतनी दुर्व्यवस्था होने के बावजूद भी जांच आखिर क्यों नहीं? क्या योगीराज में दुर्व्यवस्थाओं में परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों का भविष्य सुरक्षित रहेगा? क्या परीक्षा केन्द्र पर लगे सीसी कैमरे की देख—रेख में करायी जाने वाली परीक्षा सही है या फिर बीच में कैमरे को ऑफ कर दिया जाता है। क्या पदेन अनुदेशकों/लिपिकों से संस्थान में किसी भी प्रकार के कार्य कराये जा सकते हैं? क्या सरकारी ट्रेनिंग वाहन और उसके डीजल—पेट्रोल एवं मेंटिनेंस को व्यक्तिगत रूप में उपयोग किया जा सकता है? उपरोक्त सभी प्रश्न जौनपुर ही नहीं, पूरे प्रदेश सहित राजधानी पटल पर यक्ष बना हुआ है जिसका जवाब देने के लिये लोग आस लगाये हुये हैं।
आखिर कौन करायेगा राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में अनुशासन एवं ईमानदारी की स्थापना?
जनपद में 3 राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान है जिसका रिमोट सिद्दीकपुर के प्रधानाचार्य मनीष पाल के हाथ में है। हो भी क्यों न, क्योंकि नोडल अधिकारी यही हैं। तीनों संस्थान का समूचा लेखा—जोखा अपने हाथ में रखते हुये अपने द्वारा पालित उसराव संस्थान के दो अनुदेशक को अन्दरूनी रूप से प्रभारी बनाकर अपने सिस्टम से कार्य कराते हैं। राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना असम्भव दिख रहा है तभी तो तकनीकी निदेशालय, मण्डल निदेशक सहित जनपद के उच्च अधिकारियों के भी कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। आखिर कौन करायेगा राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में अनुशासन और ईमानदारी की स्थापना? योगी और मोदी सरकार में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के लिये आये दिन दावे किये जाते हैं लेकिन सरकार में ढोल में पोल की कहावत नजर आ रही है? कहीं—कहीं से यह स्पष्ट होता दिखता है कि 'बाबू बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया।' पैसे के दम पर शिक्षण संस्थान तो बनाकर चलाये जा सकते हैं, तकनीकी शिक्षा का प्रमाण पत्र भी पैसे के दम पर लिये जा सकते हैं परन्तु एक यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि क्या अनुभव पैसे के दम पर लिया जा सकता? यह भी सत्य है कि संस्थान के अधिकारी द्वारा जब नींव भ्रष्टाचार पर खड़ी हो तो उनके अधीनस्थ कर्मचारी अपना कार्य ईमानदारी से नहीं कर सकेंगे, यह अपने आपमें बड़ा सवाल है।