- 185 वर्षों से मुश्लिम परिवार बना रहा था रावण का पुतला
- पहले सुब्बन खां की पीढियों ने बनाया रावण का पुतला फिर इंतजार खा और अब कोलकाता के कारीगर बना रहे हैं रावण का पुतला
- इस बार 75 फीट का पुतला बनाने में जुटे कोलकाता के कारीगर
- एतिहासिक मेला देखने आते हैं दूर दराज के लोग
फहद खान
शाहगंज, जौनपुर। ऐतिहासिक विजयादशमी मेले में रावण के पुतले के निर्माण में कई दशकों से भादी निवासी सुब्बन खां का कुनबा बनाता चला आ रहा था। इनकी तीन पीढ़ियां इस कार्य में लगी रही हैं। इस परिवार के लोग रावण के पुतले के अलावा राजा दशरथ के दीवान व अशोक वाटिका आदि सहित अन्य पुतले बनाते हैं। पिछले वर्ष सुब्बन खां की तबियत खराब होने की वजह से उनका परिवार इस परंपरा को निभाने से दूर रहा। इस परंतु परंपरा को बनाए रखने के लिए उनका पट्टीदार इंतजार खां पिछली बार रावण समेत समस्त पुतले बनाए थे और इसबार कोलकाता के कारीगर रावण समेत सारे पुतले बनाएंगे। इस साल 75 फीट ऊंचे रावण का पुतला मेले में आकर्षण का केंद्र होगा।
क्षेत्र में 186 वर्ष पूर्व रामलीला और विजयादशमी मेले की शुरुआत हुई। तभी से रावण के पुतले के अलावा राजा दशरथ के दीवान, अशोक वाटिका, मेघनाथ, जटायु, हिरन आदि के पुतले बनाने का काम सुब्बन खां का परिवार करता चला आ रहा था। सुब्बन खां बताते हैं कि इससे पहले उनके पिता कौसर खां रावण का पुतला बनाने की जिम्मेदारी निभाते रहे। अब इस काम को वे करते थे ।लेकिन उनकी तबीयत खराब होने की वजह से पिछली बार इंतजार खां बना रहे थे। और अबकी बार बंगाल से आए कलाकार रावण समेत सभी पुतले बना रहे हैं।
दशहरा पर्व पर परिवार देता था सहयोग
सहयोग में पत्नी महजबी, पुत्र शाहनवाज, आकिब लगे रहते हैं। सुब्बन खां का परिवार पीढ़ियों से बगैर किसी हिचक के विजयादशमी के पर्व में अपना सहयोग देता चला आया है। उनका यह सहयोग आपसी भाईचारे की जीती जागती मिसाल थी। उसी मिसाल को पिछली बार इंतजार खां पूरी कर किए थे। और अबकी बार कोलकाता के कारीगर पूरा करेंगे।
पिछले साल बनाया था 75 फीट का पुतला
बंगाल के कारीगर बीट्टू घांटी बताते हैं कि इस वर्ष 75 फीट ऊंचा रावण का पुतला बनाया जा रहा है। रावण का पुतला पिछले वर्ष भी 75 फीट का बना था। इस साल पुतला बनाने में बांस कागज कपडा थर्माकोल पेंट समेत लोहे के रिंग का भी उपयोग किया जा रहा है। जो पुतले को मजबूती देगा और उसे खड़ा करने में भी मददगार होगा। शाहगंज के विजयादशमी का मेला पूर्वांचल में अलग स्थान रखता है। यहां क्षेत्र के अलावा आजमगढ़, सुल्तानपुर, आंबेडकर नगर जिलों से भी लोग आते हैं।
क्या कहते हैं बुजुर्ग अब और पिछले दौर के बारे में
मेले में बैलगाड़ी और ट्रैक्टर से महिलाओं के पहुंचने की एक अनोखी परंपरा रही है। हालांकि बदले दौर में अब इक्का-दुक्का बैलगाड़ी ही दिखाई पड़ती हैं। इनकी जगह ट्रैक्टर और ट्रकों ने ले लिया है। गाड़ियों में चारपाई और चौकी आदि रख कर उस पर बैठकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग मेले में पहुंचते हैं।
रामलीला अध्यक्ष घनश्याम जायसवाल ने बताया कि इस बार कोलकता से आयी टीम बिट्टू घांटी, रंजन मिददे, कालो पागडे, पिंटू मंडल, रोनी पोडेल, किसन सिह, प्रसेनजीत घांटी सौरभ राना, रावण समेत अन्य पुतले का निर्माण करेंगे। मेला स्थल पर व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस प्रशासन के साथ ही रामलीला समिति के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। आयोजन स्थल में बने पंडाल में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अफसरों की मौजूदगी मेले के महत्व को दर्शाती है।
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