- विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित
शुभांशू जायसवाल
जौनपुर। वर्तमान समय में बदलती लाइफ स्टाइल और बढ़ते तनाव के चलते लोग मानसिक समस्याओं का शिकार होते जा रहे हैं। डिप्रेशन, एंग्जायटी जैसी दिक्कतें कई बार इतने गम्भीर रूप ले लेती हैं कि व्यक्ति आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाता है। इसी जागरूकता को बढ़ाने और लोगों को आत्महत्या रोकथाम के उपाय बताने के लिए हर साल 10 सितम्बर को ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस' मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य है लोगों को संदेश देना, ताकि आत्महत्या रोकी जा जाय और समय पर मदद लेने से जीवन को बचाया जाय। उक्त बातें विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय पर आयोजित संगोष्ठी में चिकित्सालय के डायरेक्टर एवं वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. हरिनाथ यादव ने कही।
उन्होंने आगे कहा कि भारत में आत्महत्या एक प्रमुख राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। देश में 2022 में 171,000 आत्महत्याएं दर्ज की गईं जो 2021 की तुलना में 4.2% की वृद्धि और 2018 की तुलना में 27% की छलांग है। दुनिया भर के अधिकांश देशों की तरह भारत में भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या की दर आम तौर पर अधिक है। मध्यम और वृद्धावस्था में पुरुषों में आत्महत्या की दर अधिक होती है जबकि 15-29 वर्ष की आयु वर्ग में महिलाओं में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है और प्रतिदिन लगभग 28 आत्महत्याएँ दर्ज की जाती हैं।
डा. यादव ने कहा कि आत्महत्या का किसी व्यक्ति की सम्पन्नता या विपन्नता से कोई सम्बन्ध नहीं है। इन दिनों तो हर आयु वर्ग में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आये दिन आप ऐसी खबरें पढ़ते-देखते होंगे कि किसी परेशानी से आजिज आकर परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या फिर उसने इसका प्रयास किया।
बढ़ते तनाव के बारे में डा. हरिनाथ ने बताया कि मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है, वैसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली, रहन-सहन और भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आकर्षण, पारिवारिक विघटन और बढ़ती बेरोजगारी और धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
डिस्ट्रेस से बचने की सलाह देते हुये बताया कि स्ट्रेस भी दो प्रकार का होता है। जो स्ट्रेस आपको जीवन या कॅरियर में आगे बढ़ना जैसे प्रमोशन या किसी साहसपूर्ण जोखिम भरे कार्य को अंजाम देना। जैसे माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहण करना। वहीं स्ट्रेस का दूसरा प्रकार डिस्ट्रेस जो शरीर में कई बीमारियां पैदा करता है। यह स्ट्रेस का गंभीर प्रकार है। डिस्ट्रेस शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोंस को रिलीज करता है। इस कारण शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
डिप्रेशन पर चर्चा करते हुये उन्होंने ने बताया कि दुख की स्थिति अवसाद या डिप्रेशन नहीं है। डिप्रेशन में पीड़ित व्यक्ति में काम करने की इच्छा खत्म हो जाती है। पीड़ित व्यक्ति के मन में हीन भावना व्याप्त हो जाती है। व्यक्ति को यह महसूस होता है कि जीवन जीने से कोई फायदा नहीं है। वह हताश और असहाय महसूस करता है। ऐसी दशा में पीड़ित शख्स आत्महत्या की कोशिश कर सकता है।
इसी क्रम में आपाधापी भरी जीवनशैली, सोशल मीडिया का प्रभाव पर चर्चा करते हुये सलाह दिया कि आत्महत्या के विचारों से बचने के लिए शारीरिक, मानसिक स्तर पर कुछ सुझावों पर अमल करने की जरूरत है। शारीरिक स्तर पर समय पर सोना और एक निश्चित समय पर उठना जरूरी है। नियमित रूप से व्यायाम करें और संतुलित पौष्टिक आहार ग्रहण करें। शराब और धूमपान से बचें।
डा. हरिनाथ यादव ने बताया कि अपने विचारों को लिखें, जिसे मनोचिकित्सकीय भाषा में स्ट्रेस डायरी कहते हैं। स्ट्रेस डायरी से हमारे विचारों में जो खामियां हैं, उनका पता चलता है। जैसे अनेक बार हम छोटी सी समस्या को तिल का ताड़ बना देते हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी एग्जाम में एक बार फेल हो गया तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह हर एग्जाम में फेल ही होता रहेगा। लोग अपनी गलती को माफ नहीं करते जिसे ब्लैक एंड व्हाइट थिंकिंग कहते हैं। ऐसी सोच से बचना है।
सॉल्यूशन ओरिएंटेड थिंकिंग, असामान्य मनोदशा, व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तन को पहचान बताते हुये उन्होंने कहा कि परिवार के लिये समय अवश्य निकालें। आत्महत्या प्रयास से पहले कुछ ऐसे पूर्व लक्षण मनोरोगी के व्यवहार में परिलक्षित होते हैं जिन्हें रोगी के परिजन या प्रियजन जान लें तो वे उसकी मदद कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि मरीज को स्पष्ट शब्दों में बताया जाय कि वह परिवार के लिए व बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। रोगी को समझाएं कि हम हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं। रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित समय के लिए है और कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जायेगा। समाज में मनोरोगों के प्रति जागरूकता कम है। अगर किसी व्यक्ति से कहें कि आप दिमागी तौर पर बीमार हैं तो वह आम तौर पर बुरा मान जाता है। इन्हीं सब कारणों से समय रहते रोगी मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज नहीं करवा पाता। परेशानी होने पर दूसरों की मदद लेनी चाहिए। अधिकतर लोग मदद नहीं लेना चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे कमजोर हो गए हैं। ऐसी सोच ठीक नहीं है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि अपने मन की बात दूसरों के समक्ष साझा करने से दिमाग को राहत मिलती है। निराशा से बचने के लिए लोगों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिये, इसलिए जब भी परेशान हों तो दूसरों की मदद लेने में संकोच न करें।
इस अवसर पर डॉ. सुशील यादव, प्रतिमा यादव, लालजी, शिव बहादुर, सूरज, प्रियंका, कोमल सहित हॉस्पिटल के समस्त स्टाफ, मरीज, परिजन आदि उपस्थित रहे।
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