बिहार विधान सभा चुनाव की आहट जैसे-जैसे तेज होती जा रही है, वैसे-वैसे यूपी से बिहार के लिये अवैध शराब की तस्करी भी बढ़ने लगी है। इसी के साथ पक्की दारू पक्का वोट की पुरानी कहावत एक बार फिर बिहार में सुनाई देने लगी है। दरअसल राज्य में लागू शराबबंदी के बावजूद शराब के प्रति लोगों की ललक और नेताओं की सियासी जरूरत दोनों ही शराब तस्करी को बढ़ावा देते हैं। खासकर चुनाव के वक्त, जब वोटों को साधने के लिए दारू एक बड़ा हथियार बन जाती है, तब तस्करी नेटवर्क और ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इसी लिये उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, पश्चिम बंगाल जैसी राज्यों से शराब की खेप बिहार पहुंचाई जाती है जिसमें सबसे बड़ा योगदान यूपी का है। इस बार तो चुनावी मौसम की तैयारी में तस्करी नेटवर्क कुछ और ज्यादा रणनीतिक हो गया है। चंदौली, वाराणसी, बलिया, गाजीपुर, देवरिया, सोनभद्र, कुशीनगर समेत यूपी के सीमावर्ती जिलों से हर रोज शराब की खेप चोरी-छिपे बिहार पहुंच रही है। पुलिस की सख्ती और चेकिंग के बावजूद तस्कर नए-नए तरीके अपना रहे हैं। हाल ही में चंदौली पुलिस ने ट्रक की तलाशी में व्हाइट सीमेंट की बोरियों के पीछे छुपाकर रखी 720 पेटियां विदेशी शराब जब्त की जिसकी कीमत 1.12 करोड़ रुपए थी। यह खेप पंजाब से तस्करी कर बिहार भेजी जा रही थी और चुनावी तैयारियों के लिहाज से इसे बांटा जाने वाला था।
तस्करों के नेटवर्क का विस्तार यूपी के ग्रामीण इलाकों से लेकर बड़े शहरों तक फैला हुआ है। वे अक्सर रेलवे लाइन, हाईवे और नदी तंत्र का इस्तेमाल करते हैं जिससे ट्रांसपोर्ट आसान हो जाता है। हाल के महीनों में कोपागंज पुलिस और एसओजी टीम ने मऊ में 9 लाख की शराब जब्त की। वहीं प्रतापगढ़-मथुरा के रास्ते हरियाणा से भी अवैध शराब बिहार भेजी जा रही थी जिसमें लाखों की खेप पकड़ी गई। यूपी और बिहार की सीमाएँ लगभग 1,060 किलोमीटर लंबी हैं, जिसकी निगरानी बड़ी चुनौती है। यही वजह है मद्य निषेध इकाई को चुनावी सीजन में सक्रियता बढ़ानी पड़ गई है जिसके चलते शराब की तस्करी के मामले तो पकड़े जा रहे हैं लेकिन अभी भी बड़ी मात्रा में शराब बिहार पहुंच रही है। रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी से मई 2025 तक बिहार में शराब तस्करी के 64 मामले सामने आये जिनमें से 25 प्रतिशत खेप यूपी निर्मित विदेशी शराब की थी। प्रशासन ने यूपी-पंजाब समेत 8 राज्यों से सहयोग मांगा है और सीमावर्ती जिलों में चेकपोस्ट बढ़ाने का फैसला किया है। आगामी चुनाव में बिहार के 23 सीमावर्ती जिलों में 390 से ज्यादा चेकपोस्ट बनाने की योजना है और ड्रोन, सीसीटीवी, हैंडहेल्ड स्कैनर से निगरानी कड़ी की जा रही है।
शराब की तस्करी के पीछे सिर्फ मुनाफा ही नहीं, बल्कि बड़े सियासी समीकरण भी काम करते हैं। चुनाव के समय नेताओं और बड़ी पार्टियों के लिए अवैध दारू का नेटवर्क वोटर जुटाने का सबसे आसान जरिया बन जाता है। हर बार की तरह पक्की दारू, पक्का वोट की ताकत इस बार भी बिहार में देखी जा सकती है जिसमें तस्कर, कारोबारी और नेताओं की सांठ—गांठ से शराब की बोतलें मतदाताओं तक पहुंचती हैं। इसके बदले वोट का वादा लिया जाता है जो बिहार की सियासत का ध्यानाकर्षण बिंदु बना हुआ है। प्रशासन ने क्यूआर कोड, बैच नंबर जैसी तकनीकों से अवैध शराब की पहचान-पता करना शुरू कर दिया है, ताकि तस्करी के रैकेट का पर्दाफाश हो सके।
कुल मिलाकर बिहार के चुनाव में फिर दारू के साथ वोट का समीकरण चर्चा में है। पुलिस के तमाम प्रयासों के बावजूद तस्करी के गिरोह तेजी से पैठ बना रहे हैं जिससे राज्य सरकार को अपनी मद्य निषेध नीति सख्ती से लागू करनी होगी। चुनाव का मौसम जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे शराब तस्करी का दौर और तेज होता जा रहा है और इस बार भी पक्की दारू पक्का वोट का ट्रेंड बिहार सियासत का बड़ा सच बन गया है।
अजय कुमार
वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ
मो.नं. 9335566111