यही गंगा की धारा है

निकलकर अज कमण्डल से उमड़ती ब्योम कर खण्डित
सहस्रों सुत सगर को तारने सुरसरि प्रबल हर्षित
अखण्डित वेग गंगा का अचंभित लोक सारा है
यही गंगा की धारा है........2
भयो ध्वनि घोर रव घनघोर कम्पित अखिल सचराचर
दशों दिग्पाल संग वाराह कच्छप शेष धरणीधर
जगत अपलक निरखता ब्योम यह अद्भुत नजारा है
यही गंगा की धारा है........2
लहर लहि लोल सुरसरिता त्रिपथगा सुरनदी गंगा
नदीश्वरि जाह्नवी भागीरथी पुलकित धरनि बंगा
निरखते छवि सभी हैं धन्य कह कण कण पुकारा है
यही गंगा की धारा है..........2
बिपुल बल तेज विक्रम से उमंगित शम्भु पहिं आई
हुई मनमुग्ध शिव को देख मानो गंग निधि पाई
रहा पहले जो क्रोध उमंग शिव ने देख जारा है
यही गंगा की धारा है.........2
सकुचित जाह्नवी हो अंग पुलकित हो लजानी है
जटाओं में लिपटकर गंग शिव मे जा समानी है
कहा गंगा ने शिव से एक बस हमको तूँ प्यारा है
यही गंगा की धारा है....2
सुरसरि के हृदय का प्रेम जब शिव शम्भु ने जाना
बसाकर शीश मे गंगा उन्हें वामांगि निज माना
शिव-पति रूप गंगा ने जि भरकर खुब निहारा है
यही गंगा की धारा है.......2
गंगाजल परम पावन किया गुणगान श्री हरि ने
पिया दो बूँद गंगाजल मरण से पूर्व भी जिसने
धरा को छोड़ ले वैकुण्ठ को उसने सिधारा है
यही गंगा की धारा है.........2
चलकर धर्म के पथ पर भला जिसने किया सबका
मिला है कर्म फल पूरा जो संचित पुण्य है उसका
अन्तिम यात्रा होती जहां सुरसरि किनारा है
यही गंगाकी धारा है...........2
बहते आज शव कितने यहाँ गंगा की लहरों में
बिलखती आज भी गंगा दुखी निज सात पुत्रों में
हजारों शव दिखे गंगा ने पूँछा कौन मारा है?
यही गंगा की धारा है............2
रचनाकार- डॉ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
मो. 9918357908


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