• मुस्लिम धर्मगुरूओं ने की थी कौम को बदनाम करने की शिकायत
अजय कुमार, लखनऊ।
 कोरोना वायरस महामारी के चलते देश के हालात इमरजेंसी (आपातकालीन) जैसे हो गए हैं। कोरोना महामारी से निपटना केन्द्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है ही, इसके साथ विपक्ष के नेताओं, बुद्धिजीवियों, समाजसेवकों, तमाम समुदायों के धर्मगुरूओं के अलावा देश की 130 करोड़ जनता को भी देश के प्रति उनके दायित्वों से मुक्त नहीं किया जा सकता है।
यह ऐसा समय है जब हममें से किसी को भी एक-दूसरे की आलोचना के बजाए क्या देशहित में रहेगा, इस पर अधिक ध्यान देना चाहिए। उन लोगों की हौसला अफजाई की जानी चाहिए जो पूरी निष्ठा के साथ कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। इसमें देश के प्रधानमंत्री से लेकर सड़क की साफ-सफाई करने वाले तमाम लोग शामिल हैं। जिस तरह से केन्द्र और तमाम राज्यों की सरकारें मतभेद भुलाकर कोरोना के खिलाफ एकजुट हैं, वह तारीफ के लायक है लेकिन अफसोस इस बात का है कि इन हालातोें में भी कुछ नेता दलगत राजनीति से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं।
ऐसा ही व्यवहार कुछ धर्मगुरूओं द्वारा भी किया जा रहा है जो कोरोना को गंभीरता से नहीं लेने वाली जमात का हिस्सा बनते जा रहे हैं जिसकी वजह से देश के हालात तेजी से खराब होने लगे हैं। भारत कोरोना महामारी की तीसरी स्टेज में पहुंच गया तो इसकी देश और भारत की जनता को कितनी बड़ी कीमत चूकानी पड़ेगी, इसकी कल्पना मात्र से हृदय कांप जाता है।
 यह दुखद है कि जब देश में कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है, तब इसे लेकर राजनीतिक दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं की बयानबाजी और खींचतान से देश का माहौल बिगड़ रहा है। खासकर, जब से तबलीगी जमात की वजह से देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ने की खबर आई है। तभी से कुछ नेता-कार्यकर्ता इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में लग गए हैं।
माहौल कुछ ऐसा बनाया जा रहा है मानो एक समुदाय विशेष कोरोना फैलाने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर लोग दो हिस्सों में बंट गए हैं। यह सच है कि देश और प्रदेश के कुछ हिस्सों में एक वर्ग विशेष के कोरोना पीड़ितों द्वारा डाक्टरों से अभद्रता की खबरें आ रही हैं। कई जगह मस्जिदों में नमाज पढ़ने को लेकर भी पुलिस से लोग उलझ रहे हैं लेकिन सिर्फ सच्चाई इतनी भर नहीं है। दरअसल देखने में यह आ रहा है कि जब से तबलीगी जमात का मामला सामने आया है तब से जमात से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं को भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है।
इसके लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया के बीच की गला काट प्रतियोगिता भी कम जिम्मेदार नहीं है जो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए एक खबर को कई-कई दिनों तक दिखाकर समाज में उत्तेजना का माहौल बनाते रहते हैं। इतना ही नहीं, न्यूूज चैनल वाले दंगल, हल्ला बोल, भारत पूछता है, मुकाबला, ताल ठोेक के जैसे तमाम कार्यक्रमों में विवादित नेताओं को बहस में बुलाते हैं और उनको आपस में लड़ाकर समाज में दूरियां एवं मतभेद पैदा किया जाता है।
 अगर ऐसा न होता तो योगी सरकार जिस पर कुछ लोगों ने हिन्दूवादी सरकार होने का ठप्पा लगा रखा है। वह जमात और मुसलमानों के बारे में फैलाई जा रही उलटी-सीधी जानकारियों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाती। योगी सरकार जो कोरोना महामारी के खिलाफ रात-दिन जंग लड़ रही हैं, उसे जब इस बात का पता चला कि प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव फैलाने के इरादे से कुछ लोग गलत जानकारियों और फर्जी खबरों को शेयर और न्यूज चैनलों पर दिखा रहे हैं तो योगी सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ नकेल कसने के लिए सामने आना पड़ गया। बताते चलें कि तबलीगी जमा के सदस्यों को राज्य से क्वारंटाइन में रखे जाने के बाद से सोशल मीडिया पर ऐसी फर्जी खबरें देखने को मिल रही हैं।
 ज्ञातव्य हो कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 5 अप्रैल की सायं 5 बजेे वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी समुदायों के 300 से अधिक धार्मिक नेताओं के साथ बैठक की थी। बैठक में योगी ने धार्मिक नेताओं से अनुरोध किया कि वे लोगों से कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सरकार का सहयोग करने की अपील जारी करें।
इस पर कुछ धर्म गुरूओं ने उक्त मसला उठाया था, इस पर योगी ने भी उन्हें आश्वासन दिया कि सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना और फर्जी खबर फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उधर यूपी के पुलिस महानिदेशक एचसी अवस्थी ने भी कहा, ‘हमें केंद्र सरकार से भी निर्देश मिले हैं कि हमें पुलिस या सरकार के माध्यम से गलत सूचनाओं और फर्जी खबरों का सक्रियता से मुकाबला करना चाहिए।
डीजी ने कहा कि सभी जोनल और जिला पुलिस इकाइयों के सोशल मीडिया सेल, सोशल मीडिया पर लगातार निगरानी रख रहे हैं और अगर कुछ भी गलत नजर आता है तो नियमानुसार कार्रवाई की जा रही है।
यहां कुछ ऐसी फर्जी और भ्रामक खबरों की चर्चा जरूरी है जो प्रदेश का माहौल खराब करने का कारण बन रही हैं। 5 अप्रैल को समाचार रिपोर्ट और सोशल मीडिया पोस्ट में कहा गया कि रामपुर में क्वारंटाइन जमातियों ने मांसाहारी भोजन की मांग को लेकर हंगामा किया। सहारनपुर पुलिस ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए कहा कि जांच के बाद यह सूचना फर्जी पाई गई और खबरें गलत थीं। पुलिस ने सोशल मीडिया पर ऐसी कोई भी बात पोस्ट करने से पहले मीडिया को जांचने की सलाह भी दी है।
 प्रयागराज में दो परिवारों के बीच संघर्ष छिड़ गया और लोटन निषाद नामक व्यक्ति मारा गया। सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए कई टीवी चौनलों और मीडियाकर्मियों ने कहा कि इस व्यक्ति को तबलीगी जमात से संबंध रखने वाले व्यक्ति ने मार डाला। रविवार को प्रयागराज पुलिस ने ऐसे आरोपों का खंडन किया और सोशल मीडिया के माध्यम से बताया कि न पीड़ित और न ही आरोपी का जमात से कोई संबंध था।
 हालात बिगड़ते देख पुलिस के साथ, राज्य भर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जिला मजिस्ट्रेटों और जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों ने सलाह दी है कि वे किसी भी अफवाह को न फैलाएं और अच्छा काम करें। किसी भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को अपने मोबाइल फोन को क्वारंटाइन वार्डों में ले जाने की अनुमति नहीं है और कोई भी जानकारी केवल जिले के सीएमओ या डीएम ही साझा करेंगे। पश्चिमी यूपी के एक जिला मजिस्ट्रेट ने कहा जो समय अभी चल रहा है, हम राज्य में किसी भी तरह का सांप्रदायिक तनाव बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।
 बात महामारी संकट के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति की कि जाए तो राजनीति क हाल यह है कि कोई कुछ समझने को तैयार ही नहीं है। गांधी परिवार अलग राग अलाप रहा है तो सपा नेता और पूर्व सीएम अखिलेश अलग सुर छेड़े हुए हैं। यह अच्छी बात है कि बीजेपी आला कमान ने सांप्रदायिक बयानबाजी को लेकर सख्त रुख अपनाया है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के नेताओं से कहा है कि वे कोरोना महामारी को सांप्रदायिक रंग न दें। ऐसा कोई बयान न दें जिससे समाज में विभाजन की आशंका बढ़े। बात राज्यों की कि जाए तो भले ही तमाम राज्यों की सरकारें कोरोना महामारी से निपटने के लिए सराहनीय कार्य कर रही हों लेकिन वोटबैंक की सियासत और अपनी सरकार की छवि चमकाने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं।
 दरअसल कोरोना महामारी से निपटने के दौरान हमें यह भी समझना होगा कि केन्द्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी अलग-अलग है। नरेंद्र मोदी ने तमाम राज्यों की सरकारों और विपक्ष के नेताओं से एकजुट होकर इस महामारी से निपटने का आह्वान किया था। किसी राजनीतिक दल के नेता के रूप में नहीं, बल्कि पूरे देश के अभिभावक के रूप में किया था और अभी के माहौल में ऐसी हर अपील को इसी रूप में लेने की जरूरत है। वे देश के मुखिया हैं और सारे राजनीतिक प्रतिनिधियों को, चाहे वे किसी भी दल के हों, अभी उनके सहयोगी की भूमिका निभानी चाहिए। यह वक्त आपसी मतभेदों को भुलाने का है, भुनाने का नहीं। लॉक डाउन के बाकी बचे दिन बेहद संवेदनशील हैं और जिस बड़े संकट का सामना हम कर रहे हैं, वह अभी ठीक से सामने भी नहीं आया है। कोरोना वायरस हिंदू-मुस्लिम नहीं देखता। हमें मिलकर उसका मुकाबला करना होगा। पहले समाज और देश को बचाएं, राजनीति बाद में होती रहेगी।
अजय कुमार


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Modi-Yogi government strict on unfounded news and rumors
The situation in the country has become like emergency due to Corona virus epidemic. It is the responsibility of the central and state governments to deal with the corona epidemic, along with the leaders of the opposition, intellectuals, social workers, religious leaders of all communities, 130 million people of the country also cannot be relieved of their obligations to the country.

This is a time when neither of us should pay more attention to what will remain in the national interest rather than criticizing each other. Those who are fighting the war against Corona with full devotion should be encouraged. It includes all the people from the Prime Minister of the country to the street sweepers. The way the governments of the Center and all the states are united against Corona, forgetting the differences, it is praise but it is a matter of regret that even in these circumstances some leaders are not able to rise above party politics.
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