सुरेश गांधी
हर साल कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सहस्त्रबाहु जयंती मनाई जाती है। भागवत पुराण में भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्त्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है। उन्होंने विष्णु भगवान की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण की। वे भगवान विष्णु के 24वें अवतार माने गए हैं। हैहयवंशी क्षत्रियों में ये वंश सर्वश्रेष्ठ उच्च कुल का क्षत्रिय माना गया है। चन्द्र वंश के महाराजा कार्तवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। उनका जन्म हैहयवंशी महाराज की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। वे इतने वीर थे कि रावन को बंधक बनाकर उन्होंने अपने बच्चों को उससे खेलने के लिए दे दिया था।

पौराणिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के व्याधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार प्रतिवर्ष सहस्त्रबाहु जयंती कार्तिक शुक्ल सप्तमी को दीपावली के ठीक बाद मनाई जाती है। भगवान सहस्त्रबाहु को वैसे तो सम्पूर्ण सनातनी हिन्दू समाज अपना आराध्य और पूज्य मानकर इनकी जयंती पर इनका पूजन अर्चन करता हैं किन्तु ये कलार समाज इस दिन को विशेष रूप से उत्सव-पर्व के रूप में मनाकर भगवान सहस्त्रबाहु की आराधना करता हैं। उनका जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। वो भगवान दत्तात्रेय के भक्त थे और दत्तात्रेय की उपासना करने पर उन्हें सहस्र भुजाओं का वरदान मिला था। इसलिए उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत, वेद ग्रंथों तथा कई पुराणों में सहस्त्रबाहु की कई कथाएं पाई जाती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक राजा सहस्त्रबाहु ने संकल्प लेकर शिव तपस्या प्रारंभ कीं थी। इस घोर तप के समय में वो प्रति दिन अपनी एक भुजा काटकर भगवान शिव जी को अर्पण करते थे। इस तपस्या के फलस्वरूप भगवान निलकंठ ने सहस्त्रबाहु को अनेको दिव्य चमत्कारिक और शक्तिशाली वरदान दिए थे। हरिवंश पुराण के अनुसार महर्षि वैशम्पायन ने राजा भारत को उनके पूर्वजों का वंश वृत्त बताते हुए कहा कि राजा ययाति का एक अत्यंत तेजस्वी और बलशाली पुत्र हुआ था। “यदु“ के पांच पुत्र हुए जो 1-सहस्त्रदः, 2-पयोद, 3-क्रोस्टा, 4-नील और 5-अंजिक। इनमें से प्रथम पुत्र सहस्त्रद के परम धार्मिक 3 पुत्र हुये तथा वेनुहय नाम के हुए थे। महेश्वर नगर मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा के किनारे स्थित हैं। राजा सहस्त्रर्जुन या सहस्त्रबाहु जिन्होंने राजा रावण को पराजित कर उसका मान मर्दन कर दिया था। उन्होंने महेश्वर नगर की स्थापना कर इसे अपनी राजधानी शोषित किया था। यही प्राचीन नगर महेश्वर आज भी मध्यप्रदेश में शिव नगरी के नाम से भी जाना जाता हैं। अतीत में महान देवी अहिल्या बाईं होलकर की राजधानी भी रहा है।
वास्तुकला और स्थापत्य कला के उच्च मापदंडो के अनुसार निर्मित ये नगर अपने भव्य विशाल और तंत्र-यंत्र पुर्ण किन्तु कलात्मक शिव मंदिरों और मनोरम धाटो के लिए प्रसिद्ध हैं। कलार शब्द का शव्दिक अर्थ है मृत्यु का शत्रु या काल का भी काल अर्थात कलार वंशीयो को बाद में काल का काल की उपाधि दीं जाने लगी, जो शब्दिक रूप में बिगड़ते हुए काल का काल से कल्लाल हुई और फिर कलाल और अब कलार हो गई। ज्ञातव्य है की भगवान शिव के कालातंक या मृत्युजय स्वरूप को बाद में अपभ्रश रूप में कलाल कहा जाने लगा। भगवान शिव के इसी चालातंक स्वरूप का अपभ्रश शब्द ही है। कलवार, कलाल या कलार जैसे भगवान शंकर के नाम के पवित्र शब्द के शराब के व्यापारी के अर्थो या सामानार्थी शब्द के रूप में प्रयोग कलार समाज के शराब के व्यवसाय के कारण उपयोग किया जाने लगा जो की अनुचित है। भगवान सहस्त्रबाहु के वंशज पुरातन या मध्यकालीन युग में कलचुरी इस देश के कई स्थानों के शासक रहे हैं। उन्होंने बड़ी ही बुद्धिमत्ता व वीरता से न्याय प्रिय ढंग से शासन किया।
कहते हैं त्रेतायुग में जब रावण विश्वविजय अभियान पर था उस दौर में महिष्मति साम्राज्य का राजा सहस्त्रबाहु ही थे। उन्हें अपने गुरु दत्तात्रेय से हजार भुजाओं का वरदान प्राप्त था। इसी वजह से उसे सहस्त्रबाहु भी कहा जाता था। एक वर्णन के अनुसार रावण और सहस्त्रबाहु का सामना हो चुका है जिसमे रावण को मुंह की खानी पड़ी थी। कहा जाता है कि रावण अपने विश्वविजय के अभियान पर था। सभी राज्यों पर विजय प्राप्त करते हुए वह मालवा क्षेत्र के महिष्मति साम्राज्य तक जा पहुंचा। रावण नर्मदा किनारे शिवलिंग रखकर अपने विजय के लिए पूजा करने लगा। उस दौर में महिष्मति पर सहस्त्रबाहु का ही राज हुआ करता था। रावण की पूजा के दौरान वह भी नर्मदा किनारे अपने रानियों के साथ स्नान करने पंहुचा हुआ था। सहस्त्रबाहु से उनकी रानियों ने निवेदन किया “हे! स्वामी हमें आपका भुजबल देखने की लालसा हो रही है।
सहस्त्रबाहु ने अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा का प्रलय प्रवाह रोक दिया। यह देख सामने बैठा रावण क्रोधित हो गया और उसने अपनी सेना को सहस्त्रबाहु से युद्ध करने के लिए भेज दिया। सहस्त्रबाहु ने पहले तो लड़ने से इंकार कर दिया और मेहमान कह कर रावण को वापस जाने के लिए बोल दिया। लेकिन विश्वविजय के नशे ने रावण की मति मार दी और वो जबरन युद्ध लड़ा। दोनों सेनाओं के बीच कई दिनों तक लड़ाई चलती रही और अंत में रावण की सेना को सहस्त्रबाहु ने धूल चटा दी। बाद में सहस्त्रबाहु ने रावण को अपनी भुजाओं से बंदी बना लिया और छह महीने तक आजाद नहीं किया। बाद में रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य को यह बात पता चली तो वे सहस्त्रबाहु से माफ़ी मांगकर रावण को छुड़ा लाए। वर्तमान के महेश्वर में नर्मदा किनारे एक शिवलिंग मौजूद है। मान्यता है कि ये वही शिवलिंग है जिसके सामने रावण पूजा कर रहा था। एक अन्य कथानुसार, एक बार परशुराम, सहस्त्रबाहु पर खफा हो गए थे। उन्होंने अकेले ही सहस्त्रबाहु की पूरी सेना को हरा दिया। साथ ही सहस्त्रबाहु का भी वध कर दिया।
वर्तमान में सहस्त्रबाहुजी महराज के विचारों एवं उनके पराक्रम को आगे बढ़ाने के लिए वाराणसी के मनोज जायसवाल ने बीड़ा उठाया है। वे चक्रवर्ती सम्राट भगवान सहस्त्रबाहु जी महराज के वशंज के रुप में जाना जाने वाले कलार, जायसवाल, कलवार, समेत अन्य संबंधित उपजातियों को एकजुट करने का संकल्प लिया है। श्री मनोज जायसवाल वाराणसी में जायसवाल क्लब की स्थापना की है। इसके बैनरतले वे शदी-विवाह से लेकर अन्य कार्यक्रमों के जरिए समाज को एकजुट करने में पूरी लगन एवंत न्यमता से जुटे है। उनके मेहनत व लगन का परिणाम है कि अब देशभर में एक विशाल संगठन खड़ा हो गया है। खास बात यह है कि मनोज जायसवाल की ही तरह समाज के कई अन्य युवाओं ने जायसवाल सभा काशी, जायसवाल महासभा सहित कई संगठने बन चुकी है। सभी का उद्देश्य समाज को एकजुट करने, उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने, समाज के गरीब लोगों की मदद, शादी-विवाह आदि सामाजिक कार्य कर रहे है। 




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