• शिकायत के बावजूद भी कार्यवाही करने से कतरा रहा है विभाग

जितेन्द्र चौधरी
 वाराणसी। बालश्रम को लेकर केन्द्र व प्रदेश सरकार चाहे जितने कानून बना ले या सख्ती कर ले लेकिन चोरी-छिपे ही सही बालश्रम बदस्तूर जारी है। मासूमों का बचपन मेहनत-मजदूरी की आग में जल रहा है। इसका ताजा मामला वाराणसी-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित राजा तालाब के किनारे स्थित सरकारी कार्यालय आराजी लाइन बीआरसी में देखने को मिल रहा है। यहां खुलेआम बालश्रम कानून की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं। श्रम विभाग बेखबर होकर जांच की बात कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय
क्षेत्र वाराणसी में मजदूरी करते बालक।
देखा जा रहा है कि ब्लाक संसाधन केन्द्र पर वह मासूम बच्चे बोरियां ढो रहे हैं, जिनके हाथों में खिलौने, पेन, कापी, किताब होने चाहिये। उन बच्चों के हाथों में भारी भरकम बोरियां थमा दी गयी है। यह हालात तब है जब सरकार बाकायदा विभाग बनाकर बालश्रम को रोकने के लिये सख्त हिदायत दे रखा है। प्रदेश सरकार भले ही बच्चों की शिक्षा के लिये बड़ा दावा करता हो लेकिन हकीकत वही है जो तस्वीरें बयां कर रही हैं। जिन बच्चों के हाथ में खिलौने, कापी, किताब होने चाहिये, उनके हाथ में बोरियां थमा दी गयी हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि मासूम बच्चों से मजदूरी करवाना ही सबसे बड़ा अपराध है। जांच के नाम पर लीलापोती क्यों?
तत्काल मौके पर पहुंचकर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने से श्रम विभाग क्यों कतरा रहा है। श्रम विभाग के अधिकारी आखिर अपनी ड्यूटी कब निभायेंगे। बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने उक्त बीआरसी पर स्कूली बच्चों से मजदूरी कराने के इसी तरह के एक और मामले का पर्दाफाश किया था। यहां यह भी बता दें कि विगत 3 जुलाई को उक्त बीआरसी पर स्कूली बच्चों से किताबों के बण्डल ढुलवाने की तस्वीरें और वीडियो सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने भी वायरल किया था।
इतना ही नहीं, श्रम विभाग, मुख्यमंत्री व बाल संरक्षण अधिकार आयोग से शिकायत भी किया था। इस बाबत पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि बाल मजदूरी करवाने वाले लोग यह भी नहीं देखते कि मजदूरी करने वाले बच्चों की उम्र क्या है? कई बार यह देखने में आया है कि चन्द पैसों के बचाव को लेकर लोग 6 से 14 वर्ष के बच्चों से मजदूरी करवाते हैं जो कानूनी अपराध है। ऐसे लोगों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिये जो बाल मजदूरी अधिनियम और शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं।




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