सुजानगंज, जौनपुर। स्थानीय क्षेत्र के वारी गाव में चल रहे साथ दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान महायज्ञ के दूसरे दिन भक्तों को कथा का रसपान करवाते हुए कथावाचक भागवत रत्न अयोध्या से आये शैलेंद्रयाचार्य महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत के अनुसार परीक्षित अर्जुन के पौत्र, अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता थे। जब ये गर्भ में तव अश्वथामा ने व्रह्मास्त्र से परीक्षित को मारने की कोशिश की थी और उस घटना के बाद योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योगवल से उत्तरा के मृत पुत्र को जीवित किया।
महाभारत के अनुसार कुरुवंश के परिक्षीण होने पर जन्म होने से वे 'परिक्षित' कहलाए। युधिष्ठिर आदि पांडव संसार से भली भाँति उदासीन हो चुके थे और तपस्या के अभिलाषी थे। परीक्षित जब राजसिंहासन पर बैठे तो महाभारत युद्ध की समाप्ति हुए कुछ ही समय हुआ था। भगवान कृष्ण उस समय परमधाम सिधार चुके थे और युधिष्ठिर को राज्य किए 36 वर्ष हुए थे।

इस संबंध में भागवत में यह कथा है— एक दिन राजा परीक्षित ने सुना कि कलयुग उनके राज्य में घुस आया है और अधिकार जमाने का मौका ढूँढ़ रहा है। ये उसे अपने राज्य से निकाल बाहर करने के लिये ढूँढ़ने निकले। एक दिन इन्होंने देखा कि एक गाय और एक बैल अनाथ और कातर भाव से खड़े हैं और एक शूद्र जिसका वेष, भूषण और ठाट-बाट राजा के समान था, डंडे से उनको मार रहा है। बैल के केवल एक पैर था। पूछने पर परीक्षित को बैल, गाय और राजवेषधारी शूद्र तीनों ने अपना अपना परिचय दिया। गाय पृथ्वी थी, बैल धर्म ता और शूद्र कलिराज। धर्मरूपी बैल की सत्य, तप और दयारूपी तीन पैर कलियुग ने मारकर तोड़ डाले थे, केवल एक पैर दान के सहारे वह भाग रहा था, उसको भी तोड़ डालने के लिये कलियुग बराबर उसका पीछा कर रहा था। यह वृत्तांत जानकर परीक्षित को कलियुग पर बड़ा क्रोध हुआ और वे उसको मार डालने को उद्यत हुए। पीछे उसके गिड़गिड़ाने पर उन्हें उसपर दया आ गई और उन्होंने उसके रहने के लिये ये स्थान बता दिए—जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और सोना। इन पाँच स्थानों को छोड़कर अन्यत्र न रहने की कलि ने प्रतिज्ञा की। राजा ने पाँच स्थानों के साथ साथ ये पाँच वस्तुएँ भी उसे दे डालीं—मिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर।
इस घटना के कुछ समय बाद महाराज परीक्षित एक दिन आखेट करने निकले। थकावट के कारण उन्हें प्यास लग गई थी। एक वृद्ध मुनि (शमीक) मार्ग में मिले। राजा ने उनसे पूछा कि बताओ, हिरन किधर गया है। मुनि मौनी थे, इसलिये राजा की जिज्ञासा का कुछ उत्तर न दे सके। थके और प्यासे परीक्षित को मुनि के इस व्यवहार से बड़ा क्रोध हुआ। कलयुग सिर पर सवार था ही, परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि मुनि ने घमंड के मारे हमारी बातनही सुनी। पास ही एक मरा हुआ साँप पड़ा था। राजा उसे उठाकर मुनि के गले में डाल दिया और अपनी राह ली। जब इस घटना की जानकारी मुनि पुत्र को हुई तो हाथ में जल लेकर शाप दिया कि जिस पापत्मा ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला पहनाया है, आज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम का सर्प उसे डस ले।
इसके पूर्व आयोक रामलखन यादव में कथा वाचक को माल्यार्पण कर स्वागत किया। इस अवसर पर राजेन्द कुमार मुन्ना, शिवमूर्त पांडेय, अम्बुज यादव, समाजसेवी सुशांत यादव, प्रदीप यादव, अशोक यादव आदि मौजूद रहे।




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