जौनपुर: कृष्ण लीलाः यातनाएं के बाद भी मीरा ने हार नहीं मानी | #AAPKIUMMID
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जौनपुर। सिरकोनी क्षेत्र के हुंसेपुर गांव में स्थित राज राजेश्वरी महिला महाविद्यालय में चल रही कृष्ण लीला में मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम का सफल मंचन किया गया। मीरा को कृष्ण की भक्ति से अलग करने के लिये तरह-तरह की यातनाएं दी गयीं लेकिन मीरा ने हार नहीं मानी। मीरा भी एक बृजबाला थी। मीरा की शादी नन्द गांव में हुई थी। मीरा की मां ने मीरा को समझाया था कि अपना मुख नन्द लाला को मत दिखाना, अन्यथा जो उसको देखता है, उसी का होकर रह जाता है, इसलिये मीरा ने अपना मुख श्रीकृष्ण को नहीं दिखाया।
इससे नाराज होकर श्रीकृष्ण ने मीरा को श्राप दे दिया। जैसे मैं तुम्हारा मुखड़ा देखने के लिये लालायित हूं और तुम नहीं दिखा रही हो, उसी तरह अगले जन्म में तुम मुझे पाने के लिये लालायित रहोगी लेकिन मैं तुम्हें नहीं मिलूंगा। जब श्री कृष्णा ने गिरिराज पर्वत उठाया तब इसे देखकर बृजबाला को अपनी गलती का एहसास हुआ कि जिसे मैंने अपना मुख नहीं दिखाया वह तो साक्षात परम ब्रह्म परमेश्वर है। कोई साधारण मनुष्य नहीं।
उन्होंने भगवान से अपनी गलती के लिये क्षमा याचना मांगी। भगवान प्रसन्न होकर बोले- चलो उस जन्म में मैं तुम्हें गिरधर गोपाल के रूप में मिलूंगा। जब बृजबाला का जन्म मीरा के रूप में होता है। तब उसकी मां मीरा को लेकर सन्त रविदास के दर्शन करने जाती हैं। सन्त रविदास गिरधर गोपाल के पुजारी हैं। गिरधर गोपाल का नाम सुनते ही मीरा को अपने पुराने जन्म का स्मरण हो जाता है। वह गिरधर गोपाल से अटूट प्रेम करने लगती है। घरवालों के समझाने पर भी वह नहीं मानती है और गिरधर गोपाल की प्रतिमा को सन्त रविदास से मांगने लगती है। जब सन्त रविदास ने देने से मना कर दिया तब रात को स्वप्न में श्री कृष्णा के सन्त रविदास को गिरधर गोपाल को मीरा को देने के लिये सन्त रविदास को आदेश देते हैं।
उसके बाद सन्त रविदास ले जाकर गिरधर गोपाल को मीरा को सौंप देते हैं। बाद में मीरा की शादी भोजपुर के राजा से हो जाती है। राजा के मरने के बाद मीरा विधवा हो जाती है। उसका देवर महाराणा मीरा को साधु-संतों के साथ नाचते-गाते हुये देखकर उसे मारने की योजना बनाता है। जंगल से सपेरा बुलाकर उसके महल में सांप छोड़ा जाता है। सांप की जगह श्रीकृष्ण प्रकट होकर मीरा को दर्शन देते हैं। पुनः राणा प्रताप विष देकर मारने की कोशिश करता है लेकिन मीरा पर विष का कोई असर नहीं होता। अन्त में मीरा के घर वालों को अपनी गलती का एहसास होता है। वह मीरा और भगवान से क्षमा मांगते हैं।
इस अवसर पर पूर्व आईएएस रमाकांत शुक्ला, राज राजेश्वरी महिला महाविद्यालय के प्रबंधक शिवाकांत शुक्ला, सदाकांत शुक्ला, प्रमोद यादव, महेन्द्र यादव, आशुतोष, अनुराग सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।
जौनपुर के जफराबाद क्षेत्र के हुंसेपुर में चल रही कृष्ण लीला मंचन में सन्त
रविदास के आश्रम में गिरधर गोपाल की प्रतिमा के लिये जिद करती मीरा।
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उन्होंने भगवान से अपनी गलती के लिये क्षमा याचना मांगी। भगवान प्रसन्न होकर बोले- चलो उस जन्म में मैं तुम्हें गिरधर गोपाल के रूप में मिलूंगा। जब बृजबाला का जन्म मीरा के रूप में होता है। तब उसकी मां मीरा को लेकर सन्त रविदास के दर्शन करने जाती हैं। सन्त रविदास गिरधर गोपाल के पुजारी हैं। गिरधर गोपाल का नाम सुनते ही मीरा को अपने पुराने जन्म का स्मरण हो जाता है। वह गिरधर गोपाल से अटूट प्रेम करने लगती है। घरवालों के समझाने पर भी वह नहीं मानती है और गिरधर गोपाल की प्रतिमा को सन्त रविदास से मांगने लगती है। जब सन्त रविदास ने देने से मना कर दिया तब रात को स्वप्न में श्री कृष्णा के सन्त रविदास को गिरधर गोपाल को मीरा को देने के लिये सन्त रविदास को आदेश देते हैं।
उसके बाद सन्त रविदास ले जाकर गिरधर गोपाल को मीरा को सौंप देते हैं। बाद में मीरा की शादी भोजपुर के राजा से हो जाती है। राजा के मरने के बाद मीरा विधवा हो जाती है। उसका देवर महाराणा मीरा को साधु-संतों के साथ नाचते-गाते हुये देखकर उसे मारने की योजना बनाता है। जंगल से सपेरा बुलाकर उसके महल में सांप छोड़ा जाता है। सांप की जगह श्रीकृष्ण प्रकट होकर मीरा को दर्शन देते हैं। पुनः राणा प्रताप विष देकर मारने की कोशिश करता है लेकिन मीरा पर विष का कोई असर नहीं होता। अन्त में मीरा के घर वालों को अपनी गलती का एहसास होता है। वह मीरा और भगवान से क्षमा मांगते हैं।
इस अवसर पर पूर्व आईएएस रमाकांत शुक्ला, राज राजेश्वरी महिला महाविद्यालय के प्रबंधक शिवाकांत शुक्ला, सदाकांत शुक्ला, प्रमोद यादव, महेन्द्र यादव, आशुतोष, अनुराग सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।