प्रेम का अर्थ है अभिन्न व अद्वैत का बोधः स्वामी संतोषानन्द | #AAPKIUMMID
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हरिद्वार। प्रेम का अर्थ है अभिन्न का बोध। अद्वैत का बोध। लहरें तो ऊपर से अलग-अलग दिखायी पड़ ही रही हैं लेकिन भीतर से सभी आत्मा की तरह एक हैं। प्रेम दो ही चीज से प्राप्त होता है। सेवा व त्याग से। यदि प्रेम प्राप्त नहीं होता है तो चिंतन की आवश्यकता है। यह बहुत बड़ी गम्भीर बात है।
उक्त विचार श्री श्री 1008 स्वामी संतोषानन्द देव जी महाराज हरिद्वार ने शंकर चौराहे के पास स्थित अपने आश्रम पर उपस्थित लोगों के बीच कही। स्वामी जी ने आगे कहा कि चिन्तन करते समय उसमें आसक्ति प्राप्त होती है। प्रेम प्राप्त नहीं होता है। जिस तरह का अभ्यास हम करते हैं, उसको बिना कर हम नहीं रह सकते हैं तो अभ्यास करने में आसक्ति होती है। अभ्यास करने से आसक्ति प्राप्त होती है, प्रेम प्राप्त नहीं होता है। सेवा करो और त्याग करो। त्याग मतलब अचाह होना और सेवा का मतलब सभी जीवों के लिये उपयोगी होना, सभी जीवों के प्रति सद्भाव रखना।
स्वामी जी ने कहा कि अगर आप प्रभु विश्वासी हैं तो आपको व्रत लेकर रहना पड़ेगा कि अब मैं सब प्रकार से प्रभु का ही होकर रहूंगा। उन्हीं के नाते सभी के प्रति सद्भाव रखूंगा तो सद्गुरू की वाणी सुनने को मिलेगी कि, बेटा! तुम्हारा नित्य प्रभु में ही वास रहेगा। अन्त में उन्होंने कहा कि ‘लोगों ने बहुत चाहा अपना सा बना डालें, पर हमने तो खुद को इंसान बना रखा है। इस अवसर पर तमाम लोगों की उपस्थिति रही।
श्री श्री 1008 स्वामी संतोषनन्द देव जी महाराज हरिद्वार। |
स्वामी जी ने कहा कि अगर आप प्रभु विश्वासी हैं तो आपको व्रत लेकर रहना पड़ेगा कि अब मैं सब प्रकार से प्रभु का ही होकर रहूंगा। उन्हीं के नाते सभी के प्रति सद्भाव रखूंगा तो सद्गुरू की वाणी सुनने को मिलेगी कि, बेटा! तुम्हारा नित्य प्रभु में ही वास रहेगा। अन्त में उन्होंने कहा कि ‘लोगों ने बहुत चाहा अपना सा बना डालें, पर हमने तो खुद को इंसान बना रखा है। इस अवसर पर तमाम लोगों की उपस्थिति रही।