प्रमोद जायसवाल
जिम्मेदारी भरा व्यवहार व्यक्तित्व को निखारता है और कामयाबी का मार्ग प्रशस्त करता है वहीं गैर जिम्मेदाराना रवैया व्यक्ति को पीछे ढकेल देता है। राहुल गांधी को देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिली लेकिन वे इस प्रतिष्ठापरक ओहदे की कसौटी पर खरे उतरते नहीं दिखाई दे रहे हैं। अपने गैर जिम्मेदाराना रवैये के कारण अक्सर वे पार्टी को असहज कर देते हैं। उनके सिपहसालारों को स्थिति को संभालने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
पुलवामा हमले को लेकर बीजेपी पर तंज कसते-कसते वे देश के सबसे बड़े दुश्मन को 'मसूद जी' बोल गये। उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं को आगे आकर बात संभालनी पड़ी। आतंकी मसूद अजहर को छोडऩे के लिए बीजेपी को घेरने की कोशिश में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। उन्हें जानना चाहिए कि मसूद को छोडऩे का फैसला सर्वदलीय बैठक में हुआ था। उसमें उनकी माँ सोनिया गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल थे।

मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन की आपत्ति पर बीजेपी पर सवाल उठाने का उनका दांव भी उल्टा पड़ गया। चीन को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने के लिए उस समय जवाहर लाल नेहरू द्वारा विश्व पटल पर की गई लाबिंग खुलकर सामने आ गई। अगर उस समय नेहरू जी ने जरा सी समझदारी दिखाई होती तो चीन की जगह भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होता।
यूपीए शासनकाल में कैबिनेट द्वारा पारित प्रस्ताव की प्रति को संसद की कार्यवाही के दौरान फाडऩा, कई मौके पर संसद में आंख मारना आदि घटनाएं उनके जिम्मेदार नेता बनने पर सवालिया निशान लगाते हैं। पालम हवाई अड्डों पर शहीदों के शव के सामने खड़े होकर मोबाइल पर चैटिंग की घटना भी उनके व्यक्तित्व की अपरिपवक्वता को दर्शाती है। लखनऊ में रोड-शो के दौरान जब उनकी बहन प्रियंका गांधी पूरी गंभीरता के साथ कार्यकर्ताओं का अभिवादन स्वीकार कर उनका उत्साहवर्धन कर रहीं थी, उस समय भी वे मोबाइल निकालकर चैटिंग करते कैमरे में कैद किए गए थे। चौकीदार को चोर कहने की उनकी लफ्फाजी आम जनता के दिल में नहीं उतर पाई है क्योंकि वे नेशनल हेराल्ड मामले में खुद जमानत पर हैं।
राफेल प्रकरण में उन्होंने वक्तव्य दिया था कि पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने उनसे घोटाले की बात खुद स्वीकारी थी। बाद में वे अपने बयान से पलट गये। कहे कि उनसे तबीयत के हालचाल के अलावा कोई बात नहीं हुई। राहुल अगर चाहते हैं कि लोग उन्हें गंभीरता से लें तो उन्हें मन, कर्म व वाणी से जिम्मेदार नेता की तरह व्यवहार करना होगा। यह कहा जा सकता है कि यदि उनमें एक जिम्मेदार नेता का भाव झलकता तो महागठबंधन में शामिल दल उन्हें अपना नेता स्वीकार करने में हिचकिचाहट न महसूस करते। कांग्रेस के भी नेता दबी जुबान से उनकी बहन प्रियंका को तरजीह न देते।




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