• किसान हलकान, विभाग और बिचौलियों की पौ-बारह

अम्बेडकरनगर। भारत देश..........एक विकासशील देश है..........। इस देश में कहने को विशुद्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू है। कहने का मतलब यह कि यहाँ की डेमोक्रेसी यानि लोकतन्त्र विश्व प्रसिद्ध है। व्यवस्था जब अफसरशाही द्वारा मैनिपुलेट हो तब आम आदमी के लिए सरकार द्वारा जनहित में प्रदत्त धन का मिलना बड़ा ही कष्टकारी साबित होता है। शायद यह परिस्थिति भ्रष्टाचार की ही परिणति है। उदाहरण के तौर पर वृद्धा, विधवा पेंशन हो, शादी का अनुदान हो, आवास के लिए धन हो, शौचालय निर्माण हो, स्वच्छता-प्रकाश-पेयजल व्यवस्था हो, सड़क निर्माण हो, किसानों के लिए समर्थन मूल्य हो या फिर अन्य अनुदान हो.........देश के गरीब, असहाय, अक्षमों के लिए आर्थिक सहयोग जैसी योजना.........आदि.....इन सबका लाभ पात्र व्यक्ति पाने के लिए एड़ी का पसीना चोटी तक कर देता है और जानकारी के अभाव में सम्बन्धित सरकारी संगठनों/विभागों के पदाधिकारियों की गणेश परिक्रमा करता है। मिलने वाले अनुदान की धनराशि की लालच में कर्ज लेकर इन लोगों को चढ़ावा चढ़ाता है।

उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर में इस समय किसान प्रधानमंत्री की घोषणानुसार किसान सम्मान निधि का पैसा प्राप्त करने के लिए अपना पंजीयन कराने हेतु विभाग का चक्कर काट रहा है और कृषि विभाग के जिम्मेदार पदाधिकारीगण उन्हें इस कदर दुत्कार रहे हैं जैसे किसान चीथड़े में लिपटा कृश्काय भूख से तिलमिलाता भिक्षुक हो। जिले के कृषि महकमें में किसानों के हितों व उनकी समस्याओं के निवारण हेतु उपकृषि निदेशक, जिला कृषि अधिकारी जैसे जनपद स्तरीय विभागीय अधिकारियों की नियुक्ति है परन्तु विडम्बना यह है कि आम व लाभार्थी किसानों के लिए इन दोनों अफसरों से मिलकर अपनी बात कह पान लोहे के चने चबाने जैसा है। इन अधिकारियों के चैम्बर मुख्यालयी शहर अकबरपुर स्थित कृषि भवन के बृहद परिसर में कायम है, जहाँ बड़े व पहुँच वाले किसान ही तवज्जो पाते हैं।
अम्बेडकरनगर के कृषि महकमें में इन अधिकारीद्वय के अलावा एक अति चर्चित पदनाम है- जिला सलाहकार (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन) का। लम्बी-चौड़ी वार्ता करना, कथित रूप से हर स्वजातीय उच्च पदस्थ अधिकारियों, माननीय एवं विशिष्ट जनों से सम्पर्क व सम्बन्ध रखने वाला यह पदाधिकारी इस समय जिले के किसानों के पंजीयन में इतना व्यस्त रहने का दिखावा कर रहा है कि पूछा न जाए। यह पदाधिकारी हर मिलने वाले जरूरतमन्द, पात्र कृषकों को अपने वाक्जाल में लपेटकर उन्हें अपनी क्षमता व उच्च पहुँच की सनद मौखिक रूप से देकर आश्वस्त कर रहा है कि बगैर उसके कोई भी किसान प्रधानमंत्री सम्मान निधि नहीं पा सकता। जो इसका लाभ लेना चाहते हैं वह उसके कहने अनुसार चलें। सरकार का पैसा है, मिल बांट कर खाएँ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार एनएफएसएम के जिला सलाहकार द्वारा असमर्थ, न जानकार किसानों से कहा जाता है कि उनके बगैर कृषि महकमें में पंजीयन या डाटा फीडिंग जैसा कोई काम नहीं होने वाला है। यदि योजना का लाभ उठाना चाहते हो तो अमुक-अमुक कागजात जो तुम्हें लाभार्थी अथवा किसान श्रेणी में लाते हों बजरिए लेखपाल व तहसीलदार, उपजिलाधिकारी के माध्यम से मुझ तक पहुँचाओ, अन्यथा की स्थिति में लाभ पाने से वंचित रह जाओगे। एक बात और सुन लो- हमने आन लाइन साइट बन्द करवा दिया है, सारी फीडिंग बगैर मेरे इशारे के नहीं हो सकती। आशय समझ सकते हो। बहती गंगा में हाथ धो पुण्य कमाओ और गंगाजल के छीटे मेरे ऊपर भी डालो। पात्र किसान इस तरह का कथन सुनकर एनएफएसएम के जिला सलाहकार का चक्कर लगाना शुरू कर देता है.....किसान और किससे अपनी समस्या कहें....उपकृषि निदेशक व जिला कृृषि अधिकारी जैसे उच्च अधिकारी आम किसानों की तरफ देखना भी पसन्द नहीं करते उन्हें अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों के कपड़ों से दुर्गन्ध आती महसूस होती है और शक्ल से वे भिखारी नजर आते हैं। इस लिए ये अधिकारी किसानों को देखना भी पसन्द नहीं करते हैं मिलने की तो बात ही दूर.........।
बीते वर्ष से अब तक जिले का किसान अपने उत्पादों की सरकारी समर्थन मूल्य पर बिक्री इसलिए नहीं कर सका है क्योंकि कृषि विभाग के उदासीन व लचर रवैय्ये से आम किसानों को किसी प्रकार की जानकारी ही नहीं मिल सकी है। प्रचार-प्रसार के अभाव में पूरे जिले का किसान बेचारा सा बना हुआ है। हालांकि अब तक किसान मेला व अन्य अवसरों हेतु सरकार द्वारा प्रदत्त लाखों रूपया डकारा जा चुका है। पी.एम. किसान सम्मान निधि से मिलने वाले धन के बारे में जिला कृषि महकमे के अधिकारियों द्वारा कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है। ऐसी स्थिति में किसानों को पहली किस्त में रू. 2000 या फिर 4000 अथवा 6000 की मिलेगी इसको लेकर उनमें भ्रम की स्थिति बरकरार है।
अम्बेडकरनगर जिले में इस समय किसान सम्मान निधि का पैसा पाने की गरज लिए किसान हलकान व परेशान है। बिचौलियों की चाँदी है। ठेका पद्धति पर कार्य हो रहा है, जिसमें 1000 से 2000 पात्र किसानों से वसूले जा रहे हैं। ऐसा करके किसानों का नाम विभाग (सरकार) की पंजिका में दर्ज किया जा रहा है। आपाधापी जारी है। जनसेवा केन्द्रों पर भीड़ बढ़ गई है। विभाग की सम्बन्धित वेबसाइट ब्लॉक चल रही है, निराश-हताश किसान कृषि महकमें का चक्कर लगा रहे हैं, जहाँ कथित तेज-तर्रार बिचौलियों द्वारा सौदेबाजी की जा रही है और सौदा पटने पर किसानों के नाम दर्ज कराए जा रहे हैं।
यहाँ बताना जरूरी है कि पी.एम. किसान सम्मान योजना हेतु पंजीयन कृषि भवन एवं कुछेक चुनिन्दा सेन्टरों पर ही किए जा रहे हैं। डाटा फीडिंग व पंजीयन का कार्य राउण्ड द क्लाक चल रहा है। कहने को कृषि विभाग के सभी मुलाजिम अति व्यस्त हैं और व्यस्त हों भी क्यों न जबकि उन्हें इस कार्य हेतु सरकार से प्रशस्ति-पत्र तो मिलेगा ही साथ ही किसानों का चढ़ाव भी मिल रहा है। कथित रूप से इमानदार कहे जाने वाले कृषि अधिकारियों व अपनी पहुँच ऊपर तक रखने वाले वाक्पटु व बिचौलिए बने मुलाजिमों की इस समय पौ-बारह है।
रीता विश्वकर्मा

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