• शाम को हुई विशेष आरती, मंदिर को रंगीन रोशनी व फूलो की भव्य झांकी से सजाई गई
  • भगवान को भोग लगाकर भक्तों को प्रसादी वितरित की गई
  • प्रसादी पाने के लिए देर रात तक भक्तों का तांता लगा रहा

सुरेश गांधी
वाराणसी। बाबा पृथ्वीश्वर मंदिर (खजुरी), पांडेयपुर में रविवार को अन्नकूट महोत्सव मनाया गया। इस मौके पर 56 तरह का का भोग में बाबा को प्रसाद के चढ़ाया गया। महोत्सव में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड पडा। मंदिर को रंगीन रोशनी से व फूलो की भव्य झांकी सजाई गई। शाम को भोलेनाथ की विशेष आरती कर अन्नकूट का भोग लगाया गया। जिसे आरती के बाद श्रद्धालुओं में वितरित किया गया। इस अवसर पर मंदिर में फूल और इत्र वर्षा की गई। प्रसादी पाने के लिए देर रात तक भक्तों का तांता लगा रहा। कहते है अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है साथ ही दरीद्रता का नाश होकर मनुष्य जीवनभर सुखी और समृद्ध रहता है।
मंदिर समिति के कर्ताधर्ता एवं समाजसेवी मदन मोहन दुबे ने बताया कि यहां हर धार्मिक अवसर पर भक्तगण आयोजन कराते रहते हैं। मंदिर विकास समिति की ओर से अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर परिसर स्थित समस्त देवी देवताओं का विशेष शृंगार किया गया। संध्या आरती के बाद भगवान के अन्नकूट का भोग लगाया गया। आरती के बाद प्रसाद वितरित किया गया। महोत्सव को सफल बनाने में विधायक रवीन्द्र जायसवाल, मयंक चौबे समेत कई धर्मप्रेमियों का अपार सहयोग रहा। प्रभु कृपा से अक्षयपात्र में बने अन्नकूट प्रसाद का सभी भक्तों को लाभ मिला। श्री दुबे ने बताया कि दीपावली से अगले दिन से पूरे कार्तिक मास में अन्नकूट महोत्सव मनाए जाने की परंपरा है। मान्यता है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा करने भगवान विष्णु जी प्रसन्न होते हैं। गोवर्धन रूप में श्री भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है। 
श्री मदन मोहन दुबे जी ने बताया कि द्वापर में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा होती थी। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की। गोप-ग्वालों ने बहुत से पकवान गोवर्धन को अर्पित किए। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का रूप धारण कर उन पकवानों को ग्रहण किया। जब इंद्र को इस बात का पता चला तो उन्होंने क्रुद्ध होकर प्रलयकाल के सदृश मूसलाधार वृष्टि की। यह देख भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण किया। उसके नीचे सब ब्रजवासी, ग्वाल-बाल और गाय-बछड़े आदि आ गए। लगातार सात दिन की वर्षा से जब ब्रज पर कोई प्रभाव न पड़ा तो इंद्र को बड़ी ग्लानि हुई। तब ब्रह्मा जी ने इंद्र को श्रीकृष्ण के परब्रह्म परमात्मा होने का रहस्य उजागर किया। तब लज्जित होकर इंद्र ने ब्रज आकर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस अवसर पर ऐरावत ने आकाशगंगा के जल से और कामधेनु गाय ने अपने दूध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया जिससे वह गोविंद कहे जाने लगे।
इस प्रकार गोवर्धन-पूजन श्री भगवान का ही पूजन है। वास्तव में जीव में जैसे-जैसे अहंकार बढ़ता है, वैसे-वैसे वह पतन की ओर जाता है। देवराज इंद्र भी जब अहंकार की चपेट में आ गए। दयावश भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के अहंकार रूपी रोग की चिकित्सा की। भगवान शंकर स्वयं अपने गणों सहित ब्रज में सम्पन्न हुए गिरि-पूजन में सम्मिलित हुए थे। इंद्र की वर्षा के प्रभाव को निष्फल करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से सुदर्शन चक्र ने पर्वत के ऊपर स्थित हो जल सम्पात पी लिया और नीचे कुंडलाकार हो शेष जी ने सारा जलप्रवाह रोक दिया। इस प्रकार भगवान ने गोवर्धन के रूप में विराट रूप धर कर, स्वयं की गोवर्धन के रूप में अभिन्नता प्रकट करते हुए अपनी पूजा करवाई।