विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: आखिर लोग क्यों करते हैं आत्महत्या?
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डॉ. गार्गी सिंह |
डॉ. गार्गी सिंह
आत्महत्या को यूं ही घटित होने वाली घटना नहीं समझना चाहिए। आत्महत्या करने वाला व्यक्ति शारिरिक, मानसिक समस्याओं से ग्रस्त पूर्व में ही सांकेतिक करते दिखता है परन्तु वास्तव में असफलता, दबाव, द्वन्द, निराशा, इच्छाओं का पूरा न होना, आत्मसम्मान की कमी, अन्य विकल्प की कमी, जीवन से पलायन को प्रदर्शित करता मनोचिकित्सा, रोकथाम के अभाव में स्वयं से अपने बहुमूल्य जीवन को समाप्त कर लेता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन 2016 के रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 800,000 प्रत्येक वर्ष, 40 सेकेंड में एक व्यक्ति एवं 1,31,000 से अधिक लोग भारत में हर वर्ष आत्महत्या करते हैं। 2015 नेशनल क्राइम रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे अधिक आत्महत्या पांडिचेरी, सिक्किम और सबसे कम बिहार और उत्तर प्रदेश में होती है एवं देशभर में 27.6 फ़ीसदी आत्महत्या का कारण पारिवारिक समस्या है। आत्महत्या की गम्भीरता को देखते हुए 10 सितम्बर 2003 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सह-आयोजन से विश्व आत्महत्या जागरूकता एवं रोकथाम दिवस के रूप में आयोजित किया गया था।
मनोवैज्ञानिक शोधों द्वारा यह देखा गया कि आत्महत्या की लगभग 50% घटनाएं विषादी विकृति के स्वास्थ्य लाभ जब व्यक्ति ठीक होता दिखता है तब एवं विषाद के प्रथम वर्ष में एक प्रतिशत, कई बार ग्रस्त होने पर पूरे जीवन काल में 15% की दर आत्महत्या घटित होने की होती है। यह आंकड़े बता रहे हैं कि समाज में शारीरिक रोगों की अपेक्षा मनोरोग के प्रति जागरूकता का बहुत अभाव है। द्रव्य-दुर्व्यसन, मनोदशा विकृतियों, मनोविदलन, एवं अन्य मनोविकृतियों का सम्बंध भी आत्महत्या से पाया गया है। आत्महत्या की प्रवृत्ति को विभिन्न सामाजिक संस्कृतियां भी बहुत हद तक प्रभावित करती हैं, व्यक्ति जीवन में सामंजस्य स्थापित कर पाने में असमर्थ हो जाता है।
अपने किसी करीबी में उदास रहना, काम न करना, अकेले रहना, दैनिक कार्यों में अरुचि, अत्यधिक निद्रा, निद्रा न आना, शारीरिक व चेहरे के भाव मनोदशा दिन प्रतिदिन बिगड़ने के लक्षण दिखाई देने पर तत्काल अपने मनोरोग विशेषज्ञ, नैदानिक मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक से सम्पर्क स्थापित कर उचित स्वास्थ्य लाभ दिलाकर एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य पूरा कीजिए। आज 10 सितम्बर 2018 को आत्महत्या की प्रवृत्ति को उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक, मनोसामाजिक, पर्यावरणीय विश्वव्यापी जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से मनोरोग विशेषज्ञों द्वारा रोकने का लगभग सफल प्रयास किया जा रहा है।