लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने बृहस्पतिवार 23 अगस्त, 2018 से प्रारम्भ हो रहे मानसून सत्र को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु सभी दलों के दलीय नेताओं से सहयोग प्रदान करने का अनुरोध किया है।
इस बैठक में सदन के नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम रचनात्मक बहस, विचार-विमर्श को बढ़ावा के साथ अधिकतम चर्चा एवं अधिक समय तक सदन की कार्यवाही चलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार सभी विषयों पर चर्चा के लिए तैयार है। हम सदन में उठाए जाने वाले मुद्दों व जनता की समस्याओं के निराकरण के लिए भी तत्पर हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश देश और दुनिया की सबसे बड़ी विधान सभा है। उन्होंने कहा कि हम सबको सदन में शालीनतापूर्वक ढंग से बहस करनी चाहिए। हम सबका लक्ष्य जनता का कल्याण और लोकतंत्र की जड़ को मजबूत करने का है। हम जनता की समस्याओं के लिए कटिबद्ध है। प्रत्येक महत्वपूर्ण मुद्दे पर सदन में चर्चा कराये जाने के लिए तैयार हैं।
उन्होंने सदन को सुचारू रूप से चलाने की अपील की। अध्यक्ष, श्री दीक्षित ने सभी दलीय नेताओं से अनुरोध किया कि वे अपना-अपना पक्ष सदन में शालीनता व संसदीय मर्यादा के साथ रखें। बहस की गुणवत्ता बनाए रखें। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यवस्था आदर्श नहीं हो सकती, उसकी गुणवत्ता में सुधार हेतु सदैव गुंजाइश बनी रहती है। श्री दीक्षित ने कहा कि दुनिया के सभी लोकतंत्रीय देशों में पक्ष होता है, विपक्ष होता है, सहमतियां होती हैं, असहमतियां होती हैं, तर्क होता है, प्रति तर्क होता है। वाद-विवाद होते हैं। सहमति और असहमति दोनों जिस बिन्दु पर मिलते हैं, वहीं संवाद है और जनतंत्र संवाद से मजबूत होता है। उन्होंने सदन की चर्चा के दौरान मा0 सदस्यों को व्यक्तिगत आक्षेप से बचने की अपील की। यहां पर वाद-विवाद की गुणवत्ता एवं जो आदर्श उपस्थित किये जाते है वे दूसरे विधान मण्डलों के लिए अनुकरणीय होते है।
उन्होंने इस बात पर भी सन्तोष प्रकट किया कि विगत बजट सत्र में एक-दो अवसरों को छोड़कर सदन बहुत व्यवस्थित ढंग से चला था। उन्होंने मानसून सत्र को बिना किसी व्यवधान के चलाए जाने की अपील की। श्री दीक्षित ने कहा कि सदन में कभी-कभी तात्कालिक प्रसंगों को लेकर व्यवधान आता है। वाद-विवाद होता है। समाधान होता है। तात्कालिक क्रिया-प्रतिक्रिया स्वाभाविक होता है लेकिन पहले से सुनियोजित ढंग से व्यवधान की मंशा से जो व्यवहार आचरित होता है, उससे लोकतंत्र कमजोर होता है।