सिकरारा, जौनपुर। मानव शरीर की कार्यप्रणाली अति विशिष्ट है। इसके अंदर परिस्थितियों के अनुकूल सामंजस्य स्थापित करने की अद्भुत क्षमता है। सर्दियों के दिनों में हमारा शरीर स्वयं को ठंड के अनुरूप ढाल लेता है परंतु ज्यों ही मौसम परिवर्तन होता है। गर्मियों की शुरुआत होती है, हमारा शरीर पुनः स्वयं को गर्मी के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करता है। इस प्रक्रिया में शरीर के उपापचयिक क्रियाओं में परिवर्तन होने लगता है जिसके फलस्वरूप सर्दी, जुकाम, बुखार, थकान, कमज़ोरी, चक्कर आना, भूख नहीं लगना इत्यादि ऐसे लक्षण भी उत्पन्न होने लगते हैं।
लोग तत्काल इन समस्याओं के समाधान के लिए एलोपैथिक दवाओं का सेवन करने लगते हैं। जिसका अत्यधिक दुष्परिणाम हमको भुगतना पड़ता है। इन परिस्थितियों में होम्योपैथी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए मानव जाति को इन समस्याओं से निजात ही नहीं दिलाती वरन रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करती है। कुछ औषधियाँ जैसे यूपेटोरियम परफ़ोलिएटम, ब्रायोनिया एल्बा, जेल्सिमियम, बैप्टीसिया टिंकटोना इत्यादि औषधियों के द्वारा इन समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। कभी कभी इन औषधियों के प्रयोग से बुखार थोड़ा बढ़ सकता है परंतु धैर्य के साथ औषधियों का सेवन करने से आरोग्य की प्राप्ति हो सकती है।
भविष्य में होम्योपैथिक चिकित्सा, महज एक चिकित्सा पद्धति ही नहीं रह जाएगी बल्कि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता के रूप में स्वयं को स्थापित करेगी। ऐलोपैथिक दवाइयों का दुष्प्रभाव, रोग के प्रभाव से कहीं अधिक घातक सिद्ध हो रहा है। रोग और जटिल रूप धारण करके कैंसर या अन्य जटिल बीमारियों का रूप धारण कर रहे हैं। होम्योपैथी ही एक मात्र विकल्प है जो हमें इन समस्याओं से छुटकारा दिला सकती है।
डा. दुष्यंत कुमार सिंह
बी.एच.एम.एस.



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