23 नवंबर यानी देव दीपावली को देवताओं की टोली धरती पर आने वाली है। एक दो नहीं बल्कि पूरे 33 सौ करोड़ देवी देवता इस दिन काशी के घाटों पर दिखेंगे। इस भव्य नजारों को देखकर लगता है हम धरती पर नहीं जैसे स्वर्ग पर भ्रमण कर रहे हों। दूर दूर तक फैली रोशनी, गंगा के लहरों पर तैरता दीयों का संसार के बीच चमचमाता काशी का ऐसा चेहरा देव दीपावली पर ही दिखती है। कहा जाता है कि इस रात जितनी रोशनी होगी, उतनी जिन्दगी में उजियारा होगा। इस दिन एक साथ 33 सौ करोड़ देवी देवता अपने भक्तों पर खुशियां लुटाते है। खास यह है कि इस आयोजन में राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल होंगे।

सुरेश गांधी
जी हां, ऐसी मान्यता है कि देव दीपावली के दिन तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव के साथ सभी देवतागण धरती पर उतरते हैं। भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में गंगा तट पर इस दिन को उत्सव के रुप में मनाया जाता है। इस मौके पर गंगा किनारे बने घाटों का दृश्य एकदम मनोरम हो जाता है, क्योंकि इन्हें असंख्य दीपों से सजाया जाता है। कहा जाता है कि वामन अवतार लेने के बाद जब नारायण स्वर्गलोक पहुंचे तो वहां उनका भव्य स्वागत किया गया। देवताओं ने हरि का वैसा ही अभिनंदन किया जैसा कि अयोध्या लौटने पर श्रीराम का हुआ था। जिस दिन भगवान विष्णु स्वर्गलोक पहुंचे वो कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था। वो दिन आज भी देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। काशीवासी इस मौके को बड़े ही धूमधाम से मनाते चले आ रहे हैं। इस बार की देव दीपावली इसलिए भी खास है कि घाटों पर दीयों की सजावट के साथ राम मंदिर की भी झलक दिखाई पड़ेगी। इसके लिए कई संगठनों ने घाटों, चौराहों पर भगवान श्रीराम की पूजा करने की योजना बनाई है। माना जा रहा है कि इस दिन एक लाख से भी अधिक रामभक्त न सिर्फ मंदिर निर्माण का संकल्प लेंगे, बल्कि 25 नवंबर को अयोध्या में होने वाली धर्म संसद में भी शिरकत करेंगे। राम भक्तों के उत्साह एवं तैयारियों को देखते हुए कहा जा सकता है, अब भगवान श्रीराम टेंट से निकलकर महल में विराजमान होने वाले है।  
राज्यपाल व मुख्यमंत्री आयेंगे
प्रमुख घाटों पर रामलीला और रासलीला के अंशों की झांकी प्रदर्शित की जाएगी। घाटों से लेकर प्रमुख स्थानों पर उत्सव जैसा माहौल बनाने के लिए राज्य सरकार ने पहली बार 50 लाख रुपये मंजूर किए है। इस बार की देव दीपावली इसलिए भी खास है क्योंकि आयोजन में राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल होंगे। इसके साथ ही दशाश्वमेध घाट पर होने वाले आयोजन में इस बार फिल्म अभिनेता अनिल कपूर खास मेहमान होंगे। इस देव दीपावली पर देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाए रखने का संकल्प दिलाया जाएगा। छह वीर शहीदों के परिजनों को भागीरथी शौर्य सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसमें सेना, सीआरपीएफ और एनडीआरएफ के दो-दो जवान शामिल किए गए हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ आकाशदीप से होगा। इसके बाद गायिका रेवती साकलकर द्वारा गणपति वंदना और देशभक्ति गीतों की प्रस्तुति से की जाएगी। विशिष्ट अतिथि अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी होंगे। इस बार संस्कृति विभाग डेढ़ दर्जन घाटों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने जा रहा है। इनमें बीएचयू, काशी विद्यापीठ, अग्रसेन महाविद्यालय के साथ विभिन्न संगीत संस्थानों से जुड़े गुरुओं और प्रशिक्षुओं को मंच प्रदान किया जाएगा। संस्कृति विभाग के सांस्कृतिक अनुष्ठान का नाम ‘संस्कृति-सार‘ प्रस्तावित है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘संस्कृति सार‘ का राजघाट पर उद्घाटन करेंगे। विभिन्न घाटों पर होने सांस्कृतिक गतिविधियों के बीच देवदीपावली की अलौकिक छटा के दर्शन करते हुए मुख्यमंत्री अस्सी घाट पर ‘संस्कृति सार‘ का समापन करेंगे।  इस बीच मुख्यमंत्री राजघाट से नौका विहार करते हुए अन्य घाटों पर कार्यक्रमों को देखेंगे। इस दौरान गंगा की लहरों पर लेजर शो के जरिये भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाएं प्रदर्शित करके उत्सव के माहौल को और आकर्षक बनाया जाएगा। जवानों की श्रद्धांजलि में इंडिया गेट व अमर जवान ज्योति की अनुकृति बनाई जाएगी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रसिद्ध सरोद वादक पं. शिवदास चक्रवर्ती तबले पर कुबेर नाथ मिश्र के माध्यम से अमर संगीत विदुषी माता अन्नपूर्णा देवी को श्रद्धांजलि दी जाएगी। देव दीपावली को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराने का प्रयास किया जाएगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर से तीन महत्वपूर्ण सुविधाएं बाबा के भक्तों को समर्पित करेंगे। अब तक के कार्यक्रम के अनुसार सीएम योगी एयरपोर्ट पर कीऑस्क मशीन का उद्घाटन करेंगे। वहीं विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में दो अन्य सुविधाओं का शुभारंभ करेंगे। ज्ञानवापी स्थित यूपिका भवन में विश्वनाथ मंदिर हेल्पडेस्क और दशाश्वमेध में निर्माणाधीन विशाल अन्नक्षेत्र का उद्घाटन करेंगे। हवाईअड्डे पर कीऑस्क मशीन लगने से बाबा दरबार में रुद्राभिषेक कराने से लेकर मंगला आरती और विशेष दर्शन योजना के टिकट ऑनलाइन कटा सकेंगे। वहीं यूपिका भवन में हेल्प डेस्क आरंभ करने का उद्देश्य भक्तों को किसी भी असहज परिस्थिति में तत्काल सहायता उपलब्ध कराना है। इसके माध्यम से चिकित्सा, सुरक्षा और व्यवस्थागत दिक्कतों का समाधान तत्काल किया जाएगा। विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर को ध्यान में रखते हुए भविष्य में हेल्पडेस्क को कई अत्याधुनिक तकनीकों और संसाधनों से लैस करने की योजना भी है।
पंचगंगा घाट पर दिखेगा अद्भूत नजारा
पंचगंगा घाट यानी जहां कभी गंगा के अलावा यमुना, सरस्वती, धूतपापा और किरणा नदियों का संगम तट रहा। यह ऋषि अग्निबिंदु की तपोभूमि रही। यहां देव, माधव के रूप में प्रकट हुए थे और सम्पूर्ण क्षेत्र बिंदुमाधव के रूप में विख्यात है। इसी पवित्र स्थल पर 17वीं सदी के उत्तरार्ध में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित पत्थरों से बना बेहद खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ इस परंपरा का द्योतक है। ‘हजारा दीपस्तंभ’ में हजार से ज्यादा दीप देव दीपावली की शाम जगमगा उठते हैं। घाटों पर दीप जलाये जाते हैं। घाट पर श्रीमठ से सटा एक दीप स्तंभ भी जलाया जाता है। इसे ‘दियटी’ कहा जाता है।
आयोजकों के मुताबिक काशी के पांच घाटों पर सात कनस्तर तेल से पुनः अस्तित्व में आने वाला देवदीपावली का उत्सव 33वें वर्ष में वैश्विक उत्सव का स्वरूप ले चुका है। भारत के अलावा दुनिया के तमाम देशों के पर्यटकों में इस उत्सव में शरीक होने की बेताबी बढ़ती जा रही है। वर्ष 1985 में मंगला गौरी मंदिर के महंत पं. नारायण गुरु की अगुवाई में देव दीपावली उत्सव पुनः शुरू  हुआ। पंचगंगा घाट मोहल्ले में चाय-पान की दुकानों पर कनस्तर रखे गए थे। इन कनस्तरों में कोई अपने घर से घी तो कोई तेल लाकर डालता। सात दिनों में एक कनस्तर घी और सात कनस्तर तेल जुटाया गया। फिर बालाजी घाट से दुर्गा घाट के बीच इस पौराणिक पर्व के आधुनिक संस्करण ने दूसरी बार आकार लिया। इससे पूर्व रानी अहिल्याबाई ने काशी में देवदीपावली की लुप्त हो चुकी परंपरा को पुनः शुरू कराया था।
उन्होंने पंचगंगा घाट पर हजारा दीप स्तंभ भी बनवाया। पं. वागीश दत्त मिश्र के अनुसार घाटों पर जनदबाव कम करने के लिए काशी के कुंडों और तालाबों पर भी देवदीपावली के आयोजन की तैयारी हुई। सन 2000 में सबसे पहले श्रीनगर कॉलोनी स्थित रामकुंड पर देवदीपावली मनाई गई। इस प्रयोग की सफलता ने अन्य लोगों को भी प्रेरित किया। देखते ही देखते सूरज कुंड, पिशाचमोचन, पुष्कर तालाब, ईश्वरगंगी पोखरा भी इस आयोजन से जुड़ गए। मौजूदा दौर में कुंडों-तालाबों के साथ-साथ शहर के गली-मोहल्ले में भी देवदीपावली उत्सव मनाया जाने लगा है। इस उत्सव को प्रत्येक घाट पर आयोजित करने के लिए मुहिम चलाई गई। वागीशदत्त मिश्र के नेतृत्व में महासमिति ने प्रत्येक घाट पर उप समितियों का गठन कराया। 1992 में अयोध्या कांड के बाद देवदीपावली उत्सव का अप्रत्याशित विस्तार हुआ। संपूर्ण काशी की जनसहभागिता होने लगी। 1995 से 2000 के बीच इस उत्सव को विश्वव्यापी ख्याति मिलने के साथ गंगा घाटों पर भीड़ भी बढ़ती गई।