अजय कुमार शुक्ल
रूद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड)। कहते हैं कि सुखश्चा नंत्रम दुखम‍्, दुखश्चा नंत्रम सुखम‍्। अर्थात सुख के आने के बाद दुख आता है और दुख के आने के बाद सुख की अनुभूति होती है। श्री केदारनाथ धाम दर्शन के लिए जाने वाले भक्त कितना कष्ट, तकलीफ सहकर बाबा केदारेश्वर के धाम में पहुंचते हैं और महादेव का दर्शन करने के बाद उनकी सारी पीड़ा, सारा कष्ट दूर हो जाता है। उनकी आंखों से आनंद के आंसू बहने लगते है। लाखों भक्तों के साथ ऐसा होता है। कभी-कभी उन्हें यहां पहुंचने के बाद जब तक वह बाबा केदारेश्वर के दर्शन नहीं कर लेते तब तक उन्हें ऐसा लगता है कि वह यहां पर क्यों आ गए? कितनी तकलीफ हैं यहां पर, लेकिन जब वह श्री केदारनाथ धाम का दर्शन करते हैं तो महादेव उन जीवात्माओं के शरीर में ऊर्जा का संचार कर देते हैं। यह बातें विशेष साक्षात्कार के दौरान श्री केदारनाथ धाम के प्रधान पुजारी शिवलिंगा स्वामी ने कही। स्वामी जी तेलंगाना के नरायनखेडा जिले के रहने वाले हैं।

स्वामी जी ने श्री केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की महिमा बताते हुए कहा कि 'के' माने स्वर्ग, 'दार' में दरवाजा अर्थात केदार का मतलब स्वर्ग का दरवाजा और ज्योति माने प्रकाश, लिंग माने लियते, गम्यते यत्रतर्लिंगम जहां से शिवजी प्रकट हुए वहां पर लुप्त हो गए। सतयुग में भगवान विष्‍णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया और यहां पर कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से भगवान भोलेनाथ खुश हो गए और यहां पर साक्षात प्रकट हुए. भगवान भोलेनाथ ने नर और नारायण से वर मांगने को कहा। तब नर और नारायण ने भगवान भोलेनाथ से जीवात्माओं और विश्व के कल्याण के लिए यहां पर बस जाने को कहा। तब से भगवान शिव ने खुद को शिवलिंग के रूप में खुद को प्रकट करने का वरदान दिया और स्‍वयंभू शिवलिंग के रूप में स्‍थापित हो गए।

स्वामी जी ने द्वापर युग की कथा के बारे में बात करते हुए कहा कि द्वापर युग में महाभारत युद्ध के बाद पांच पांडवों को ब्रह्म हत्या, गुरु हत्या, गोत्र हत्या का श्राप लगता है। श्राप विमोचन के लिए पांडव हिमालय पर आते हैं, लेकिन भोलेनाथ उन्हें एक जगह पर दर्शन न देते हुए अलग-अलग शक्ति स्वरूप से जो दर्शन देते हैं वहीं पंच श्री केदार श्री कहलाते हैं। केदारेश्वर माने साक्षात काशी विश्वनाथ से भोलेनाथ उत्तर काशी आते हैं, उत्तर काशी से गुप्त काशी आते हैं और गुप्त काशी से भोलेनाथ गुप्त होकर आगे हिमालय की ओर चल पड़ते हैं यहां आकर भोलेनाथ पशु का रूप धारण कर लेते हैं, इसलिए पशुओं के नाथ पशुपति नाथ भी भोलेनाथ का नाम है। भोलेनाथ स्वयं हिमालय पर पशु का रूप धारण कर लेते हैं, लेकिन पंच पांडव को यह पता लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जो अंर्तयामी थे, बुद्धिशाली और बलशाली भी थे।


श्री केदारनाथ धाम में आने वाले श्रद्धालु प्राकृतिक आपदाओं में अपनी जान गवां देते हैं और उन्हें यहां आने मे बहुत तकलीफ होती है? इस सवाल पर स्वामी जी ने कहा कि जीवात्मा की आयु महादेव ने लिखी है, वो जब तक चाहते हैं तब तक रहना पड़ेगा। जब भोलेनाथ चाहेंगे तब ज्योर्तिलिंग में लीन होना पड़ेगा। श्री केदारनाथ धाम में आए दिन प्राकृतिक आपदाओं से श्रद्धालुओं की मौत, घायल होने की खबर आती है लेकिन इसके बाद भी तमाम समस्याओं को दरकिनार करते हुए, कष्ट सहते हुए भगवान भोलेनाथ के भक्त उनके दर्शन के लिए श्री केदारनाथ धाम पहुंचते हैं। महाराज जी ने कहा कि बीते डेढ़ महीने में उन्होंने करीब करीब साढ़े 6-7 लाख लोगों को दर्शन कराया है।

महाराज जी से जब पूछा गया कि यहां पर श्रद्धालु बड़े कष्ट से आते हैं, धाम तक पहुंचते-पहुंचते बहुत तकलीफ होती है, लेकिन जब यहां पहुंचते हैं तो ऐसा कहा जाता है कि यहां हवाएं स्वर्ग से आती है तो समुचित यह अनुभूति होती है। इस पर उन्होंने कहा कि साक्षात स्वर्ग ही यही है, यहां महादेव रहते हैं और साक्षात यही कैलाश है। व्यवस्था के सवाल पर उन्होंने कहा कि 20 वर्ष से वह यहां पर रहते हैं पहले की अपेक्षा अब व्यवस्थाएं बहुत बढ़िया है। हेलीकॉप्टर से सामान आ जाता है।  श्री केदारनाथ धाम यात्रा के लिए पहुंचे भक्त जयेश भाई पटेल, अजय कुमार शुक्ल, अशोक, सीपीओ कामारेडी रामा राव, जीतूभाई भट्ट और नरेंद्र भाई नरेंद्र भाई  सुधीर भाई, नागरानी, प्रताप, संजीव, कल्पेश, नागरानी,बस्वराज पाटिल,पी रेणुका, मल्लिकार्जुन, अमरनाथ, श्रीदेवी स्मिता स्वाति, राजनरायन सिंह आदि ने  स्वामी जी के दर्शन कर आशीर्वाद लिए।