संजय सक्सेना
पिछले कुछ दशकों में खेल की दुनिया में भले ही कई क्रांतिकारी परिर्वतन देखने को मिले हैं, इसके बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि गुजरे जमाने के कई खेल हासिए पर भी चले गए हैं। बचपन के वे खेल जो हमें खूब भाते थे। ऐसा लगता था कि जैसे उन खेलों के लिए छुट्टियां आती थीं लेकिन अब वह खेल कहां हैं? आजके बच्चों को तो उन खेलों का नाम भी नहीं पता होगा। एक समय में बच्चे भाई-बहनों और दोस्तों के साथ अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बोल, छुपन-छुपाई, कंचे, कबड्डी-कबड्डी, चोर-सिपाही, लब्बा डंगरिया, गिल्ली-डंडा, म्यूजिकल चेयर, लंगड़ी टांग, पिठ्ठू गरम जैसे तमाम खेल मौका मिलते ही खेलना शुरू कर देते थे लेकिन अब यही खेल गुजरे जमाने के लगने लगे हैं। 

पुरानी यादों को ताजा करने के लिए अब तो एक ही गीत याद आता है ‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।’ इन खेलों ने समय के साथ क्यों अपनी प्रसांगिकता खो दिया, क्या यह समय के साथ अपने खेल में बदलाव नहीं कर पाए? क्योंकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी कुछ पुराने लूडो, कैरम बोर्ड, शतरंज जैसे गेम्स लोकप्रियता के मामले में काफी आगे हैं। पासे का खेल लूडो, खूब कराता है दिमागी कसरत।

बात बाबा-पोता, चाचा-भतीजा और यार-दोस्तों सबके प्यारा लूडो की कि जाए तो विश्व स्तर पर सबसे लोकप्रिय बोर्ड गेम लूडो की कोई बराबरी नहीं है। लूडो के अलावा कोई अन्य बोर्ड गेम समय की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है। हजारों वर्षों के अस्तित्व वाला लूडो आज भी अत्याधिक लोकप्रिय और प्रासंगिक है। लुडो प्रेमी विभिन्न माध्यमों से खेल का आनंद लेते दिख जाते हैं। 

ऑफलाइन-ऑनलाइन जैसे भी चाहे हम-आप इसे खेल सकते हैं। गर्मी की छुट्टियों में जब बच्चे अपने नाना-नानी या दादा-दादी, मौसी-बुआ या फिर चाचा-ताऊ के यहां जाते हैं तो लूडो ही ऐसा गेम्स है जो सबसे अधिक खेला जाता है। इसको बच्चे, जवान या बूढ़े सब एक समान तरीके से खेल सकते हैं। यह ऐसा खेल है जो दो लोग या फिर इससे अधिक तीन-चार खिलाड़ी भी खेल सकते हैं।

पुराने लखनऊ के नख्खास इलाके में रहने वाले कौशल किशोर कहते हैं कि जब गर्मी की छुट्टियों में बच्चे आते हैं तो हमारा भी बचपन जिंदा हो जाता है। बच्चों के आने की खबर जब पता चलती है हम लोग सबसे पहले अल्मारी में बंद पड़े कैरम बोर्ड, लूडो को झाड़ पोंछकर रख लेते हैं। बच्चे जब आते हैं तो और लोग तो घर के कामकाज और बातचीत और पुरानी यादों में डूब जाते हैं लेकिन हम यानी घर के बुजुर्गो और बच्चों को जोड़ने का काम लूडो ही करता है.इसमें समय कब बीत जाता है,पता ही नहीं चलता है।

हालाँकि इस खेल का प्रतिदिन लाखों लोग आनंद लेते हैं लेकिन हजारो वर्ष पुराने इस बोर्ड गेम के दिलचस्प इतिहास के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। लूडो कैसे अस्तित्व में आया, इसके बारे में कई मिथक हैं। सबसे विश्वसनीय यह है कि लूडो प्राचीन भारत में हजारों साल पहले यानी छठी शताब्दी के दौरान अस्तित्व में आया था। इसकी उत्पत्ति के समय इस खेल को ‘पच्चीसी’ कहा जाता था। 

पच्चीसी को दिमाग वालों का भी खेल कहा जाता है। यहाँ तक कि राजाओं सहित समाज के अभिजात वर्ग, पचीसी खेलों में नियमित रूप से शामिल होने लगे। खेल से प्यार करने वाले राजा का एक अच्छा उदाहरण अकबर है। महान मुगल बादशाह अपने दरबारी सदस्यों और आगंतुकों के साथ पचीसी मैचों में शामिल होना पसंद करते थे। कहा जाता है कि वह लोगों के चरित्रों को आंकने के लिए खेल का इस्तेमाल करता था। उन्होंने लाइव ऑडियंस को गेम देखने के लिए भी तैयार किया। एमएल रौसेले की लोकप्रिय किताब ’इंडिया एंड इट्स नेटिव प्रिंसेस’ में इसका जिक्र है।

माना जाता है कि खेल का सबसे पहला प्रमाण महान महाकाव्य महाभारत में इसका उल्लेख है। सबसे लंबी महाकाव्य कविता में चित्रित पासा खेल को चोपत कहा जाता था जिसे पासा की भिन्नता का खेल माना जाता था। यह युधिष्ठिर और दुर्याेधन के बीच खेला गया था। महाराष्ट्र में स्थित लोकप्रिय एलोरा गुफाओं में पुरातत्वविदों और इतिहासकारों द्वारा लाखों लोगों को पसंद किए जाने वाले प्राचीन बोर्ड गेम का एक और सबूत खोजा गया था। गुफा में खेल के तत्वों को चित्रों के रूप में दर्शाया गया है। इस खोज ने अत्यधिक विश्वास वाले सिद्धांत को और मजबूत किया कि लूडो का मूल भारतीय है।

लूडो के जिस खेल को आज दुनिया जानती है, उसका आधिकारिक तौर पर 127 साल पहले यानी 1896 में पेटेंट कराया गया था। अल्फ्रेड कोलियर, एक अंग्रेज व्यक्ति था जिसने इंग्लैंड में बोर्ड गेम का पेटेंट कराया था। जिस समय खेल का पेटेंट कराया गया था, उस समय कई नियमों में बदलाव किया गया था। शुरुआत के लिये आयताकार पासे को घन के आकार के पासे से बदल दिया गया। इसके अलावा पासे को हाथ से फेंकने के नियम को पासा कप का उपयोग करके फेंकने में बदल दिया गया। खिलाड़ियों के धोखा देने की संभावना को कम करने के लिए यह बदलाव पेश किया गया था।

इन वर्षों में लूडो ने दुनिया के कई हिस्सों की यात्रा की और खुद को एक लोकप्रिय बोर्ड गेम के रूप में स्थापित किया। इसके मूल संस्करण के अलावा गेम में कई भिन्नताएं हैं, जिनमें से प्रत्येक में थोड़े-थोड़े नियमों को शामिल किया गया है। उनमें से कुछ को यहां समझा जा सकता है- इसी क्रम में न्बामते लूडो बोर्ड गेम का एक प्रकार है जो यूनाइटेड किंगडम में अत्याधिक लोकप्रिय है।

 लूडो के विपरीत जिसमें खिलाड़ी एक पासा का उपयोग करते हैं, न्बामते को खिलाड़ियों को दो पासे का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। वहीं च्ंतुनमे लूडो का कोलंबियाई रूपांतर है। इसकी विशेषताओं के लिए धन्यवाद, च्ंतुनमे को ष्रैंडम थिंकिंगष् बोर्ड गेम के रूप में भी जाना जाता है जबकि फिया लूडो का एक और लोकप्रिय रूप है जो स्वीडन में बेहद लोकप्रिय है। वेरिएंट के सब-वेरिएंट को फिया-स्पी और फिया मेड नफ कहा जाता है। इइल मिट वेइल भी लूडो बोर्ड गेम का एक प्रकार है जो स्विस लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर खेला जाता है।

बहरहाल इस बात को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि समय के साथ अन्य खेलों की तरह लूडो के साथ भी कुछ विवाद जुड़ गए हैं परंतु यह विवाद इतने बड़े भी नहीं होते हैं जिनकी वजह से लूडो की लोकप्रियता पर इसका प्रभाव पड़ता हो। लूडो लगातार अपनी लोकप्रियता को न केवल बरकरार रखे हुए लगातार हुए हैं, बल्कि समय के साथ तेजी से आगे भी बढ़ रहा है। लूडो की कीमत की बात की जाए तो इसे कोई भी आसानी से खरीद सकता है। आज भी मात्र 30-40 रूपये में अच्छा लूडो मिल जाता है। लूडो एक खेल ही नहीं, बल्कि अपने भीतर विज्ञान भी छिपाए हुए हैं। कुछ चिकित्सक तो कहते हैं कि लूडो जैसे तमाम खेल उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है जो याद्दाश्त संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं।