• अनुसंधान और नवाचार में क्रान्ति ला सकता हैं एनआरएफ


किसी राष्ट्र की बौद्धिक, सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए और उसके नागरिकों के उत्थान के लिए निरंतर सृजन और नए ज्ञान की जरूरत होती है। अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अधिक प्रतिशत इन पर खर्च करके दक्षिण कोरिया, चीन जैसे देश काफी आगे निकल गए हैं। इससे यह देखने को मिलता है कि जो राष्ट्र प्रौद्योगिकी और नवाचार में जितना आगे होगा उसकी अर्थव्यवस्था भी उतनी ही मजबूत होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 जनवरी 2019 को 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में अपने संबोधन में एक विस्तारित अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारी राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं, केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएससी, टीआईएफआर और आईआईएसईआर हमारे अनुसंधान और विकास की रीढ़ हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भी एक मजबूत शोध पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे 95 प्रतिशत से अधिक छात्र वहां अध्ययन एवं शोध के लिए जाते हैं।
शोध एवं विकास को नवाचार की रीढ़ माना जाता है। देश भर के संस्थानों में अनुसंधान को उत्प्रेरित, सुविधा, समन्वय, बीज, विकास और संरक्षक अनुसंधान के लिए एक निकाय के रूप में भारत में एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) स्थापित करने का विचार कई दशकों से देश में शोधकर्ताओं के मस्तिष्क में था। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए), भारत सरकार के कार्यालय की एक पहल है जो विज्ञान, मानविकी, कला और संस्कृति की खोज को सुलभ बनाने और उसे भाषा में उपलब्ध कराने के लिए तैयार की जा रही है जिसमें अधिक सुविधा हो। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट में एनआरएफ के लिए अगले पांच वर्षों के दौरान 50,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का एलान किया है और मानना है इससे भारत में शोध एवं विकास (आरएंडडी) को गति मिलने की उम्मीद है।
भारत से अपेक्षाकृत काफी छोटा देश दक्षिण कोरिया शोध एवं विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब चार प्रतिशत खर्च करता है जिसकी तुलना में भारत मात्र अपने जीडीपी का मात्र 0.6 से 0.7 प्रतिशत हिस्सा ही इस मद में खर्च करता आया है। यहां तक कि भारत की तुलना में भीमकाय अर्थव्यवस्था वाला चीन भी अपने जीडीपी का दो प्रतिशत तक शोध एवं विकास गतिविधियों पर विकसित करते आया है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के डीपीआर में इस बात का जिक्र किया गया है कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत का आर एंड आई निवेश, दुनिया के अन्य देशों की तुलना में, वर्तमान में बेहद कम है और वास्तव में पिछले दशक में लगातार गिरावट देखी गई है जो 2008 में 0.84% से गिरकर 2018 में लगभग 0.69% हो गई है जबकि 2018 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में आर एंड आई निवेश 2.8%, चीन में 2.1%, इज़राइल में 4.3% और दक्षिण कोरिया में 4.2% था। इसका परिणाम इन देशों को पेटेंट के रूप में देखने को मिलता है। विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन आईपी फाइलिंग गतिविधि की रैंकिंग, 2020 के अनुसार मूल रूप से कुल (देश और विदेश में) चीन का पेटेंट में प्रथम, अमरीका का दूसरा, जापान का तीसरा, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया का चौथा और भारत नौवें स्थान पर है। ट्रेडमार्क और डिज़ाइन में चीन प्रथम स्थान पर है जबकि भारत क्रमशः छठे और नौवे स्थान पर है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार भारत वैश्विक स्तर पर शामिल होने वाले शीर्ष 50 अभिनव अर्थव्यवस्थाओं में ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) के अनुसार 46वें स्थान पर है। भारत एनएसएफ डेटाबेस के अनुसार एससीआई पत्रिकाओं के वैज्ञानिक प्रकाशन के मामले में शीर्ष 3 देशों में से एक बना हुआ है और विज्ञान और इंजीनियरिंग में पीएच.डी. की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। भारत ने स्टार्टअप की संख्या और यूनिकार्न की संख्या के मामले में भी तीसरा स्थान हासिल किया है। स्टेटिसटिका सर्वे के अनुसार वर्ष 2020 में चीन में कुल 470000 शोधार्थी पीएच.डी. में नामांकित हुए और नेशनल साइंस फाउंडेशन अमरीका के सर्वे के अनुसार वर्ष 2019 में अमरीका में कुल 281,889 शोधार्थी पीएच.डी. के लिए नामांकित हुए। अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण 2019-20 के आंकड़े के अनुसार 202550 शोधार्थी पीएच.डी. में नामांकित है जो कुल नामांकन संख्या का 0.5 फीसदी हैं जो बताता है कि अब भी भारत शोध के मामले में पीछे है। भारत में पीएच.डी. शोधार्थियों की संख्या  राज्य के सरकारी विश्वविद्यालय में 29.8 फीसदी, राष्ट्रीय महत्व के संस्थान में 23.2 फीसदी, मानित विश्वविद्यालय निजी 13.9 फीसदी और केन्द्रीय विश्वविद्यालय  में 13.6 फीसदी हैं। 2019 में कुल 38986 शोधार्थियों को पीएच.डी. उपाधि प्रदान की गयी जिसमें 21577 पुरुषों को और 17409 महिलायें थी|
अत: राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन भारत के लिए उस प्रक्रिया का एक प्रमुख चालक बनने का लक्ष्य है जो देश की अर्थव्यवस्था को निरंतर आगे बढ़ाने, इसकी सुरक्षा को बढ़ाने, भलाई और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने और वैश्विक नेतृत्व के रूप में भारत की स्थिति को बढ़ाने में मदद कर सकता हैं। एनआरएफ संस्था को अपने स्वयं के वित्त, शासन और क़ानून स्थापित करने की स्वायत्तता प्रदान की करेगी। यह शैक्षणिक परिदृश्य में सभी विषयों में प्रतिस्पर्धात्मक रूप से अनुसंधान को निधि देगा। इसका सूचना और डेटा प्रबंधन का कार्यालय गतिशील रूप से, निकट-वास्तविक समय के आधार पर सार्वजनिक, निजी, उद्योग, परोपकारी सहित अन्य स्रोतों द्वारा कैसे आर एण्ड आई पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करता है, इस बारे में जानकारी एकत्र करेगा। एनआरएफ अपने मिशनों और मेगाप्रोजेक्ट्स के कार्यालय के माध्यम से, राष्ट्रीय मिशन परियोजनाओं (एनएमपी) को वित्त पोषित करेगा जो विश्व स्तरीय अनुसंधान सुविधाओं और उत्कृष्टता केंद्रों (सीओई) को बनाने या विकसित करने में मदद करते हैं जिन्हें अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्रों में भारत के भविष्य के लिए आवश्यक माना जाता है। प्रत्येक एनएमपी का लक्ष्य क्षेत्र में शीर्ष शोधकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे एवं दिए गए मिशन के लिए मौजूदा वैश्विक स्तर के अनुसंधान के लिए उत्कृष्टता केंद्र को स्थापित करना या समर्थन देना और विकसित करना है जो बदले में भाग लेने वाले शोधकर्ताओं, छात्रों, संस्थानों के नेटवर्क को स्थापित और विस्तारित करने का लक्ष्य रखेंगे।
एनआरएफ के प्राथमिक उद्देश्यों में सभी प्रकार के प्रतिस्पर्धी सहकर्मी-समीक्षित अनुदान प्रस्तावों का वित्तपोषण, शैक्षणिक संस्थानों में अनुसंधान की सुविधा, अनुसंधान के बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण, भारत की भूमिका में वृद्धि और राष्ट्रीय और वैश्विक महत्व के प्रमुख क्षेत्रों में भागीदारी, संपर्क और समन्वय के रूप में कार्य करना शामिल है। शोधकर्ताओं के बीच, शोधकर्ताओं की अगली पीढ़ी के विकास का समर्थन करना, अनुसंधान में महिलाओं और अन्य कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों की भागीदारी बढ़ाने के लिए विभिन्न गतिविधियों और पहलों का समर्थन करना, सूचना और डेटा के विश्लेषण के लिए एक केंद्रीय समाशोधन गृह बनाना, उत्कृष्ट अनुसंधान और प्रगति को पहचानना और देश में अनुसंधान के समन्वय, लघु और दीर्घकालिक योजना के लिए एक उच्च स्तरीय थिंक टैंक के रूप में कार्य करना और अनुसंधान, नवाचार और शिक्षा के संबंध में प्रधानमंत्री और संसद को प्रमुख नीतिगत पहलों की सिफारिश करना है। अनुसंधान के माध्यम से राज्य विश्वविद्यालयों में सीडिंग अनुसंधान मेंटर्स/एनआरएफ प्रोफेसरशिप, राज्य के विश्वविद्यालयों में मौजूदा शोध बढ़ाना और एनआरएफ डॉक्टोरल और पोस्टडॉक्टोरल फैलोशिप को उपलब्ध कराना सबसे बड़ी पहल है।
एनआरएफ का संचालन एक 18 सदस्यीय गवर्निंग बोर्ड द्वारा किया जाएगा जिसमें अपने क्षेत्रों के प्रख्यात शोधकर्ता और पेशेवर शामिल होंगे। विशेषज्ञों को देश के भीतर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा सकता है और यह उम्मीद की जाती है कि बोर्ड की लगभग एक तिहाई सदस्य महिलाएं होंगी। एनआरएफ के एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और एक मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) की खोज और चयन एनआरएफ बोर्ड द्वारा अनुसंधान क्रेडेंशियल, अखंडता, नेतृत्व और प्रशासन की क्षमता के आधार पर किया जाएगा। एनआरएफ के अध्यक्ष समय-समय पर सभी मंत्रालयों के सचिवों और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों के साथ एक सम्मेलन में उनकी अनुसंधान आवश्यकताओं और कार्यक्रमों का आकलन करने और संभावित सहयोग तैयार करने के लिए मिलेंगे। एनआरएफ में 10 निदेशालय होंगे जिसमें प्राकृतिक विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग, पर्यावरण और पृथ्वी विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला और मानविकी, भारतीय भाषाओं और ज्ञान, स्वास्थ्य, कृषि, और नवाचार और उद्यमिता सम्मिलित है।
अगर एनआरएफ के उद्देश्यों को सही समय में क्रियान्वयन किया जाये तो इसमें को सन्देह नहीं है कि आने वाले समय में भारत अनुसन्धान एवं नवाचार के क्षेत्र में अग्रणी होगा। इस सभी परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार द्वारा शोध को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को स्थापित करने का निर्णय एक सराहनीय प्रयास है।
डॉ. मनीष गुप्ता
एसोसिएट प्रोफेसर बायोटेक्नोलॉजी
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर।





Prashashya%2BJems