पटना (पीएमए)। बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। राज्य में लोक जनशक्ति पार्टी यानी लोजपा में दरार पड़ गया है। परिवारवाद के माहिर खिलाड़ी व राजनैतिक मौसम वैज्ञानिक के रूप में मशहूर पूर्व केन्द्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रह चूके स्व.रामविलास पासवान के एकलौते पुत्र लोजपा सुप्रीमो व जमुई के सांसद चिराग पासवान से नाराज पार्टी के 6 में से 5 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने अपने गुट को अलग मान्यता देने की मांग की है।
इन सांसदों ने चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस को ही अपना नेता चुन लिया है। कहा जा रहा है कि अलग गुट बनाकर ये सांसद जद(यू.) के पाले में जा सकते हैं। बगावत करने वाले सांसदों में चिराग पासवान के चाचा पशपति कुमार पारस के अलावा चचेरे भाई प्रिंस राज, चौधरी महबूब अली कैसर, चंदन सिंह व वीणा देवी शामिल हैं। इससे लोजपा को एक और बड़ा झटका लगा है।
बताया जा रहा है कि लोजपा में बगावत की ये पटकथा पिछले वर्ष संपन्न हुये 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही लिखी जानी थी। हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस की अगुवाई में बगावत की खबर बाहर भी आ गई थी। लेकिन, हल्ला मचा तो उन्होंने अपने लेटर हेड पर इसका खंडन कर दिया था। लोजपा में उस वक्त जो फूट होने से बच गई थी वो अब सामने आ गई है। इन सांसदों को सही वक्त का इंतजार था और अब शायद उन्हें लगा कि सही वक्त आ गया है। मौका मिलते ही उन्होंने चिराग पासवान को बीच राजनीतिक मझधार में छोड़ दिया है।
बता दें कि, एनडीए में रहते हुये भी लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान सुशासन बाबू के नाम से मशहूर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत पर उतर आये थे। अपने बलबुते पर 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव में 143 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली लोजपा महज एक सीट जीत पाई थी। लेकिन, महिटानी के लोजपा विधायक राम कुमार शर्मा को भी चिराग पासवान सहेज नहीं सके और वह नीतीश कुमार की दल जद(यू.) में शामिल हो चुके हैं। इसके पूर्व चुनाव नतीजों के बाद कई लोजपा जिलाध्यक्ष सहित दो सौ से अधिक नेता व प्रमुख कार्यकर्ता लोजपा से नाता तोड़ जद(यू.) का दामन थाम लिया है। वैसे, केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार की भी चर्चा तेज है। ऐसे में पशुपति कुमार पारस केन्द्र की मोदी सरकार में मंत्री बन सकते हैं। वर्ष 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोबारा कमान संभाली तब एक फॉर्मूला बना कि सहयोगी दलों को मंत्रिपरिषद में एक-एक सीट दी जायेगी। तब 16 सांसदों वाली जद(यू.) मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुई। उसकी कम से कम दो सीटों की मांग थी।
वहीं, 6 सांसदों वाली लोजपा से रामविलास पासवान केन्द्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री बने थे। लेकिन, 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रामविलास पासवान का निधन हो गया। इसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में लोजपा का खाली हुआ कोटा भरा ही नहीं गया। एनडीए में रहते हुये 17वीं बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा 143 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी। इसमें जद(यू.) की 115 सीटों पर उसने प्रत्याशी उतारे थे। इस चुनाव में जद(यू.) ने 36 सीटों के नुकसान के लिये लोजपा को सीधे जिम्मेदार माना था। तभी से सवाल उठने लगे कि लोजपा, एनडीए फोल्ड में रहेगी या नहीं।
जद(यू.) ने साफ कहा- यह गठबंधन के बड़े दल यानी भाजपा को तय करना है। अब जब केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की बात चली तो मामला चिराग पासवान को लेकर फिर फंस गया। क्योंकि, लोजपा को कैबिनेट में जगह मिलती तो जद(यू.) रूठ जाती। वैसे, बिहार के राजनीतिक गलियारों में इसे चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कुछ लोग केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी अटकलें लगा रहे हैं।
वर्ष 2000 में नवंबर माह की 28 तारीख को स्व.रामविलास पासवान ने लोजपा का गठन किया था। 21 वर्ष में पहली बार लोजपा में टूट हुई है। अब संगठन में भी बड़ी तादाद में लोग लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस के साथ जा सकते हैं। इससे चिराग पासवान की ताकत और घट सकती है। अभी तक चिराग पासवान को रामविलास पासवान का पुत्र होने का फायदा मिलता रहा है। 17वीं बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हनुमान बताया था। लेकिन, अब उनकी पार्टी पर कब्जे को लेकर जोर-आजमाइश होनी तय है। बहरहाल, इन सांसदों के द्वारा सोमवार को पशुपति कुमार पारस के लोकसभा में दलीय नेता चुने जाने के बाद लोजपा की टूट से इंकार नहीं किया जा सकता है। अब देखना है कि आगे क्या नया राजनीतिक गुल खिलता है ? यह तो वक्त आने पर ही पता चल सकता है।





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