लखनऊ। राष्ट्रीय संकट के समय समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ईमानदारीपूर्वक सहयोग करना सहभाग करना हमारे संस्कारों में आता है। इन्हीं संस्कारों को अधिकार मानकर भारत के व्यापारी व व्यापारी संगठन सरकारों से समय-समय पर अपने लिए सुविधाएं व अधिकार मांगते रहे हैं। सरकारों ने भी अपने व्यापारियों और व्यापारी संगठनों के लिए न जाने कितनी रियायत व अधिकार भी दिए हैं परंतु आजकल सुनने में आ रहा है।
उक्त बातें लखनऊ में अपने आवास पर मौजूद समाज के कुछ प्रहरियों के साथ अनौपचारिक वार्ता में विचार प्रवाह के विचारक विजय दीक्षित ने कही। उन्होंने आगे कहा कि भारत में छाई महामारी से निपटने के लिए भारत सरकार ने लॉक डाउन का निर्णय लिया है। ऐसी विषम स्थिति में जब नागरिक अपने घरों में रहने को विवश होंगे तो उनके खाने-पीने की सामग्री हमारे इन्हीं व्यापारी सहित संगठनों द्वारा ही उपलब्ध करायी जाएगी। ऐसी आपदा के समय हमारे व्यापारियों को कालाबाजारी से बाज आना चाहिए था।
श्री दीक्षित ने कहा कि अनेक बहाने बनाते हुए इस संकट की घड़ी में उपभोक्ताओं को खुलेआम लूटने की योजना बनाकर दुकाने खोल रहे हैं। क्या इस महामारी के समय भी इन रुबेईमान व्यापारियों को अपने कई गुना अधिक लाभ की चिंता है और उस आर्थिक लाभ के लिए वह सरकार व समाज का साथ नहीं दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जब सरकारों द्वारा इन पर बर्बर तरीके से कार्रवाई की जाएगी तो यह धरना, प्रदर्शन, आंदोलन आदि करके इसी जनता को यह बताने का प्रयास करेंगे कि सरकार हम पर अत्याचार कर रही है जबकि वह इसी लायक माने जाएंगे। प्रदेश सरकारों से विनम्र आग्रह है कि वह जनसुविधाओं की घोषणा ही न करें। अपनी घोषणा के अनुरूप समाज में क्रियान्वयन भी कराना उन्हीं की जिम्मेदारी है।
उन्होंने बताया कि अक्सर ऐसा देखा जा रहा है कि सभी प्रदेश सरकारें ऐसे समय में जनता को उनके घर तक जनसुविधाएं पहुंचाने की घोषणाएं कर रही हैं परंतु व्यापारी वर्ग इसकी आड़ में कुछ ऐसा कर रहा है जो नैतिक मूल्यों पर कुठाराघात जैसा ही है। अन्त में उन्होंने कहा कि अब प्रश्न उठता है कि जब हम ऐसी कालाबाजारी को रोक पाने में सरकारों को सक्षम नहीं पाते हैं तो उनके द्वारा प्रतिबंधित करने का प्रयास अधिकार कैसे माना जाय।



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