• न्यायालय ने जल निगम से तलब की सभी रिपोर्ट
  • स्वच्छ गोमती अभियान ने दाखिल की है जनहित याचिका
 जौनपुर। सीवेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट व सीवर लाइन में मानक के अनुरूप कार्य करना जल निगम के गले का फांस बन गया। इसको लेकर गम्भीर न्यायालय ने जल निगम को सभी रिपोर्ट के साथ तलब कर लिया है। यह मामला स्वच्छ गोमती अभियान द्वारा गम्भीरता से उठाने पर सामने आया है।
 मालूम हो कि नगर में नमामि गंगे व अमृत योजना के तहत क्रमशः 205 करोड़ एसटीपी के लिये व 235 करोड़ रूपये शहर में सीवर लाइन बिछाने हेतु स्वीकृत हुआ। जैसे ही प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ तो उसके बाद से ही तत्काल सम्बन्धित विभाग जैसे जल निगम व नगर पालिका परिषद के अधिकारी अपनी जुगत में लग गये।
 इसी को लेकर स्वच्छ गोमती अभियान के अध्यक्ष गौतम गुप्ता द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर पहले प्रोजेक्ट में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने का आग्रह किया गया जिसमे एसटीपी की क्षमता बेहद कम होना सबसे बड़ी विसंगति थी किन्तु उसके बाद भी जल निगम द्वारा कार्य प्रारम्भ कराये जाने को हरी झण्डी दे दी गयी।
 मामले की गम्भीरता को देखते हुये स्वच्छ गोमती अभियान ने बीते 25 जनवरी को उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दायर कर दिया। उक्त मामले की पहली तारीख 29 जनवरी को हुई किन्तु कुछ प्रतिवादियों की अनुपस्थिति के चलते 12 फरवरी को अगली तारीख निर्धारित की गयी। नोटिस मिलने के बाद 12 फरवरी को निर्धारित तारीख के दो दिन पूर्व ही जल निगम द्वारा अपने आपको बचाते हुये स्वयं ही अपने स्तर पर सभी कार्य रोक दिया गया।
 12 फरवरी को हुई सुनवाई में उच्च न्यायालय ने दिये आदेश में स्पष्ट रूप से जल निगम द्वारा तैयार सम्पूर्ण प्रोजेक्ट पर अपनी गम्भीर असंतोष जतायी। साथ ही उस पर सवालिया निशान लगाया कि आखिर किस आधार पर यह प्रोजेक्ट तैयार हुआ? यह उच्च न्यायालय के अनुसार संतोषजनक नहीं है।
 इसी आदेश में उच्च न्यायालय द्वारा 3 सप्ताह के अन्दर जल निगम से उक्त प्रोजेक्ट के सम्बन्धित सभी रिपोर्ट हलफनामे के साथ तलब की गयी है।
अब मामला यह उठता है कि यदि सब कुछ सही चल रहा था तो जनहित याचिका दाखिल होते ही आखिर जल निगम ने आनन-फानन में सभी कार्य क्यों रोक दिये। यदि कार्यों में इतनी ही कमी जल निगम को पता चल गयी थी तो वाद दाखिल होने के कुछ दिन पूर्व ही सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा किस आधार पर इस प्रोजेक्ट के सर्वे, प्लानिंग व डिजाइनिंग के नाम पर कार्य कर रही फर्मों को लगभग 10 करोड़ रूपये का भुगतान किया गया जबकि जल निगम द्वारा ले आउट व डिजाइनिंग की कमी को बताकर ही काम रोका गया है।




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