जौनपुर: जानें कब और कैसे होता है तुलसी विवाह, इसका क्या है महत्व | #AAPKIUMMID
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अतुल राय
जौनपुर। जलालपुर त्रिलोचन महादेव में श्री तुलसी जी की पूजा करती हुई जूही सिंह, नीलम यादव, पूजा गिरी, रेखा गिरी आदि लोग इस कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन लोग तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं।
तुलसी वैष्णो के लिए परम आराध्य पौधा है। कोई कोई भगवान के श्री विग्रह के साथ तुलसी जी का विवाह बड़े धूमधाम से करते हैं। साधारणतया लोग तुलसी के पौधे का गमला गेरु जी से सजाकर उसके चारों ओर ईख का मंडप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाते हैं। गमले को साड़ी से लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उसका श्रृंगार करते हैं। गणेश आदि देवताओं तथा श्री सालिग्राम जी का विधिवत पूजन करके श्री तुलसी जी की पोडशोचर पूजा तुलस्यै नमः नाम मंत्र से करते हैं। तत्पश्चात एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखते हैं।
भगवान सालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा करते हैं और आरती के पश्चात विवाह महोत्सव पूर्ण करते हैं। विवाह के समान ही कार्य होने हैं तथा विवाह की मंगल गीत भी गाए जाते हैं। राजस्थान में इस तुलसी पूजा को बटुआ फिराना कहते हैं। आज से ही विवाह का शुभ काल शुरू हो जाता है। श्रीहरि को एक लाख तुलसी पत्र समर्पित करने से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।
जौनपुर। जलालपुर त्रिलोचन महादेव में श्री तुलसी जी की पूजा करती हुई जूही सिंह, नीलम यादव, पूजा गिरी, रेखा गिरी आदि लोग इस कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन लोग तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं।
तुलसी वैष्णो के लिए परम आराध्य पौधा है। कोई कोई भगवान के श्री विग्रह के साथ तुलसी जी का विवाह बड़े धूमधाम से करते हैं। साधारणतया लोग तुलसी के पौधे का गमला गेरु जी से सजाकर उसके चारों ओर ईख का मंडप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाते हैं। गमले को साड़ी से लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उसका श्रृंगार करते हैं। गणेश आदि देवताओं तथा श्री सालिग्राम जी का विधिवत पूजन करके श्री तुलसी जी की पोडशोचर पूजा तुलस्यै नमः नाम मंत्र से करते हैं। तत्पश्चात एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखते हैं।
भगवान सालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा करते हैं और आरती के पश्चात विवाह महोत्सव पूर्ण करते हैं। विवाह के समान ही कार्य होने हैं तथा विवाह की मंगल गीत भी गाए जाते हैं। राजस्थान में इस तुलसी पूजा को बटुआ फिराना कहते हैं। आज से ही विवाह का शुभ काल शुरू हो जाता है। श्रीहरि को एक लाख तुलसी पत्र समर्पित करने से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।