विद्याभूषण
 वाराणसी। भारतीय परम्परा के क्रांतिदर्शी कवि सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ लोकतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। अन्याय व शोषण के खिलाफ संघर्ष के तीव्रतम परिणति, खून, क्रांति, हत्या व हिंसा की जमीन से ऊपर उठकर वर्तमान व्यवस्था के विध्वंस की घोषणा है। सत्य व तर्क की जमीन पर खड़े होकर यह निर्भीक घोषणा करने का साहस जनकवि धूमिल ने किया। उक्त बातें श्री धूमिल की 83वीं जयंती पर उनके पैतृक गांव पाण्डेयपुर-खेवली में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संजय श्रीवास्तव राज्य महासचिव प्रगति लेखा संघ ने कही।
वाराणसी के पाण्डेयपुर क्षेत्र में जनकवि धूमिल
जी की जयंती पर मौजूद तमाम अतिथिगण।
इसी क्रम में डा. गोरखनाथ पाण्डेय ने कहा कि अन्याय व शोषण के खिलाफ संघर्ष की खूनी क्रांति हिंसा की जमीन से ऊपर उठकर वर्तमान व्यवस्था के विध्वंस की घोषणा धूमिल की कविता से मिलती है। एसोसिएट प्रोफेसर डा. सदानन्द सिंह ने कहा कि समकालीन कविता में दूसरे प्रजातंत्र की तलाश की छटपटाहट एकमात्र धूमिल की कविता में दिखायी देती है। चंचल सिंह आधुनिक ने कहा कि धूमिल ऐसे पहले कवि हैं जिन्होंने हिन्दी में अपने नये मुहावरे गढे़। साथ ही सपात बयानी का नया तर्क भी पैदा किये।
वीरेन्द्र मिश्र ने कहा कि धूमिल मात्र अनुभूति, विचार और भावनात्मक स्तर के नहीं, अपितु बौद्धिक स्तर के सक्रिय कवि थे। इसके अलावा समाजसेवी देवी शंकर सिंह, डा. प्रभाकर सिंह, सुनील सिंह, मनीष पटेल, अशोक पाण्डेय, लौटन राम ने सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपना विचार व्यक्त किया। इसके पहले अतिथियों ने धूमिल जी के चित्र पर माल्यार्पण करके उन्हें श्रद्धांजलि दिया। इसके बाद अतिथियों सहित पर्यावरण व जल संरक्षण प्रेमी मनीष पटेल का 1 माह 19 दिन तक साइकिल यात्रा के समापन पर माल्यार्पण करके स्वागत किया गया। साथ ही उन्हें सम्मानित भी किया गया।
अतिथियों का स्वागत धूमिल के ज्येष्ठ पुत्र रत्न शंकर पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम का संचालन समाजसेवी नन्द लाल मास्टर ने किया। अन्त में छोटे पुत्र आनन्द शंकर पाण्डेय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।




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