रीता विश्वकर्मा
महीना त्यौहार का हो या फिर सामान्य दिन.......खाने-पीने की वस्तुओं जैसे- मिठाई और खाद्यान्न में मिलावट करने वालों की हमेशा चाँदी रहती है। मिलावटखोरों की गतिविधियाँ देखकर ऐसा नहीं प्रतीत होता कि सरकारी तौर पर कोई ऐसा महकमा है जो इन पर नियंत्रण लगा सके। तात्पर्य यह कि मिलावटखोर अपना धन्धा निर्भय होकर जारी रखे हुए हैं। सामान्य दिनों की अपेक्षा पर्व-त्योहारों पर मिलावट खोरों की चाँदी हो जाती है। क्योंकि इन अवसरों पर खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ जाती है।
हर छोटे-बड़े जनपदों में हजारों मिठाई की दुकानें और गोदाम ऐसे होंगे जहाँ हानिकारक रसायनों की मिलावट कर खाने पीने की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। मिलावटी मावा (खोवा), पनीर, तेल, घी, मैदा, सूजी आदि का कारोबार व्यापक पैमाने पर हो रहा है। अब तो बेसन के नकली कारोबार ने भी अपने पाँव पसार लिए हैं। मिलावटी मसाले तो काफी अरसे से गाँव व शहर में बेंचे ही जा रहे हैं।

खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन महकमे द्वारा प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से संवाद प्रकाशित करवाकर मिलावट व मिलावटखोरों के विरूद्ध कथित कार्रवाई करने का दावा किया जाता है। साथ ही प्रायोजित तरीके से सेल्फी और फोटो खिंचवाकर कृत कार्यवाही से सम्बन्धित संवादों को सोशल मीडिया पर वायरल करके वाहवाही लूटने का प्रयास किया जाता है, और अपनी पीठ थपथपाई जाती है। मिठाई के अलावा किराना/परचून दुकानों पर मिलावटी सामानों की बिक्री निर्बाध की जा रही है।
वैसे तो मिलावट एक आम बात है परन्तु पर्व/त्योहार के दिनों में यह कार्य जोर पकड़ लेता है। विशेषतौर पर उपवास व पूजा सामग्री वाले खाद्य पदार्थों पर मिलावट करके कई गुना लाभ कमाने वाले मुनाफाखोरों की निगाहें रहती हैं। दूध, खोवा से बने खाद्य पदार्थ शुद्ध पाना मुश्किल है। मिठाई की दुकानों पर मिलावटी दूध, खोये के साथ रसायनयुक्त रंगों के प्रयोग से बनी मिठाइयाँ जमकर बेंची जा रही हैं। इसका असर जन स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसके अलावा खाद्यान्न जैसे दाल, चावल, आटा, चीनी, मसाला, तेल, चायपत्ती आदि में मिलावट होना और किया जाना आम बात हो गई है।
यही नहीं फल और सब्जी को भी विभिन्न प्रकार के रसायनों का प्रयोग कर तैयार किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर लौकी, कद्दू एवं अन्य सब्जियों को रातों रात आकार में बड़ा करने हेतु आक्सीटोसिन नामक रसायन का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह के अन्य रासायनों का प्रयोग सब्जियों को ताजा और हरा रखने के लिए किया जाता है। अब दूध में पानी मिलाना पुरानी बात सी होकर रह गई है। दूध के व्यापारी केमिकल मिलाकर प्रचुर मात्रा में रसायनयुक्त मिलावटी दूध बनाकर अच्छी खासी कीमत पर ग्राहकों/उपभोक्ताओं को बेंच रहे हैं। ये मिलावटखोर नकली दूध का निर्माण करने में यूरिया, ग्लूकोज जैसे रसायनों का इस्तेमाल करते हैं।
सूत्रों के अनुसार दूध में निरमा, साबुन व पानी सहित अन्य रसायनों को मिलाकर सिन्थेटिक दूध तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही तेल, घी आदि में मिलावट अपने चरम पर है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों से इस बावत चर्चा करने पर उनका कहना है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट के तौर पर जो रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं वे स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी नुकसानदायक होते हैं। मिलावटी खाद्य पदार्थो के सेवन से उल्टी, दस्त, लीवर, किडनी, पेट और चर्म सम्बन्धी रोग होने की सम्भावना बनी रहती है।
उत्तर प्रदेश सूबे के जनपद अम्बेडकरनगर से रेनबोन्यूज को एक पत्रकार ने मिलावट से सम्बन्धी संवाद प्रेषित किया है जिसे हम यहाँ हुबहू प्रकाशित कर रहे हैं।
रीता विश्वकर्मा
सम्पादक- रेनबोन्यूज डॉट इन




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