रामपाल जायसवाल
गोरखपुर। ऐतिहासिक जनपद के कुसमी जंगल में स्थित बुढ़िया माई का मंदिर बहुत ही दिव्य और चमत्कारिक है। मंदिर में विराजमान माता रानी का दर्शन करने के लिये लोग दूर-दूर से आते हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन करने से सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और जीवन में सुख आने लगता है। लोगों के अनुसार बुढ़िया माई से जुड़ी दो प्रमुख किस्से हैं।
पहले के अनुसार गोरखपुर से कुशीनगर जाने के लिये तुर्रा नाले पर बना काठ का पुल प्रमुख मार्गों में से एक हुआ करता था। लोक प्रचलित कहावतों के अनुसार यहां से एक बैलगाड़ी से बारात हाटा जा रही थी। पुल पर बैठी एक वृद्ध महिला (बुढ़िया माई) ने बैलगाड़ी पर सवार नाच पार्टी को डांस दिखाने के लिये कहा।
सभी ने कहा कि बारात को देर हो रही है और बुजुर्ग महिला का उपहास करते हुये सभी लोग आगे बढ़ गये। इस दौरान सिर्फ एक जोकर ने ही उतरकर बांसुरी बजाया। बारात जब दूसरे दिन वापस लौटी तो पुनः उस वृद्ध महिला फिर से उन्हें नृत्य करने को बोली। बैलगाड़ी सवारों ने उनका उपहास फिर कर दिया लेकिन सिर्फ जोकर ने ही उठकर नृत्य किया। बारात ज्यों ही आगे बढ़ी कि काठ का पुल टूट गयाअ और दूल्हा समेत पूरी बारात नाले में गिर गयी जिसके चलते सभी मर गये लेकिन जोकर बच गया।
दूसरी किवदंती के अनुसार इमलिया उर्फ विजहरा गांव  निवासी जोखू सोखा की मौत हो जाने पर परिजनों ने उन्हें तुर्रा नाले में प्रवाहित कर दिया। शव बहता हुआ थारूवो द्वारा जंगल में बनायी गयी पिण्डियों के पास पहुंचा। बस यहां बुढ़िया माई अवतरित हुईं जो जोखू को जिंदा कर दीं। बस यहीं से रहकर जोखू ने मां की पूजा, तपस्या आदि करना शुरू कर दिया। उन्होंने जिस रूप में मां को देखा था, उसी रूप में मां की मूर्ति की स्थापना करवायी और उनकी तपस्या करने लगे। मां का मंदिर गोरखपुर के कुसमी जंगल में स्थित है। मां के दो मंदिर हैं। दोनों मंदिर के बीच में एक प्राचीन नाला बहता है।
कहा जाता है कि जब पानी रहता है तो नाव के सहारे लोग उस पार जाकर दर्शन करते हैं। मां के चमत्कारिक पुर्ण मंदिर होने से लोग दूर-दूर से आते हैं। दर्शन करने के लिये, प्राकृतिक परिवेश में बसा यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रबल केन्द्र है। मान्यता है कि पूर्ण आस्था और विश्वास से मां के दर पर जो भी सिर झुकाता है, उसकी सारी मनोकामनाएं मां पूर्ण करती है।




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