• अकबरपुर नगर पालिका की नालियों पर बिक रहा है फास्ट एण्ड स्लो प्वाइजन

अम्बेडकरनगर। जो दिखेगा.....वो बिकेगा। जो दिखता है.....वही बिकता है के सिद्धान्त पर धन्धा करने वाले लोगों का व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है। यह बात दीगर है कि इनके द्वारा अपने-अपने प्रतिष्ठानों के बाहर प्रदर्शित सामान स्तरीय न हों। आज कल गारमेन्ट व्यवसाय से लेकर होटल एवं रेस्तराओं के सामने ऐसे ही इश्तहार देखे जा रहे हैं जो व्यवसाय को दिन दूना और रात चौगुना करते हैं। हमारे यहाँ तो अब वातानुकूलित भव्य रेस्तराओं के बाहर सड़क के फुटपाथ पर खुले में खाद्य सामग्रियों का निर्माण किया जा रहा है जिनपर सड़क की धूल और गर्द-गुबार तो सुबहो-शाम पड़ता ही रहता है साथ ही अन्दर वातानुकूलित कक्ष में बैठकर कथित स्वादिष्ट व प्रदूषित व्यंजन का स्वाद चखने वाले लोगों को असमय ही विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित कर रहा है। सामान्य तौर पर ऐसा कहा जाता है कि नॉनवेज व्यंजनों का स्वाद चखने वाले अगल-बगल की गन्दगी व दुर्गन्ध की परवाह नहीं करते, उन्हें बस चाहिए लज़ीज, जायकेदार खाद्य सामग्री।

उदाहरण के तौर पर कबाब और बिरयानी को लिया जाए तो चटखदार मसाले में निर्मित इन नॉनवेज डिशों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि किस पशु/जानवर के माँस से निर्मित है। नॉनवेज के नाम पर चिकन, मटन, बीफ आदि खाने वाले नॉनवेज आहारियों को बस चाहिए तो स्वाद और जायका। हमारे शहर अकबरपुर में एक अति आधुनिक नवाबों के शहर की तर्ज पर नॉनवेज कबाब व बिरयानी तथा अन्य नॉनवेज खाद्य पदार्थों का निर्माण व भोजन व नाश्ते के रूप में परोसने वाले रेस्तराँ में ऐसा ही देखा जा सकता है। इस प्रतिष्ठान के बाहर दर्जनों कारीगर चूल्हों के पास खड़े होकर कबाब, रोस्टेड चिकन का निर्माण करते हैं। इन नॉनवेज खाद्य सामग्रियों पर सड़क का गर्द-गुबार अनगिनत जीवाणु-विषाणु सहित आच्छादित होता रहता है।
एसी रेस्तराँ के पिछले भाग में स्थित किचन में शोरबे वाले नॉनवेज खाद्य पदार्थों का निर्माण होता है, जो किसी हद तक बाहर वाले से बेहतर कहा जा सकता है। अब यह कहना कि शोरबेदार खाद्य पदार्थों में किस जन्तु/जानवर/पशु का माँस मिश्रित है मुश्किल सा है।

यह तो रही बड़े रेस्तराँ व जलपान गृहों की बातें..................। हमारे जनपद मुख्यालयी शहर अकबरपुर एवं शहजादपुर दोनों उपनगरों की मुख्य सड़कों व गलियों में घरों के गन्दे पानी की निकासी हेेतु नगर पालिका द्वारा निर्मित कराई गई नालियों के ऊपर ठेला, गुमटी व अस्थाई तखत पर खाने-पीने के सामानों की बिक्री की जा रही है। जहाँ निर्मित मिठाइयों, समोसा, चाट, टिक्की व अन्य फास्टफूड पर नालियों की सड़ान्ध में उत्पन्न संक्रामक जीवाणुओं, विषाणुओं का समावेश होता रहता है। इनके सेवन से लोग जाने-अनजाने भयंकर रोगों को दावत दे रहे हैं और एक तरह से आ बैल मुझे मार की तरह ग्राहक उपभोक्ता खुद ही अच्छी खासी रकम अदा कर प्रदूषित खाद्य सामग्रियों का सेवन कर बीमारियाँ मोल ले रहे हैं। एक तरह से यदि यह कहा जाए कि ये सब खाद्य सामग्रियाँ जन स्वास्थ्य के लिए स्लो प्वाइजन हैं तो कतई गलत नहीं होगा।
एक और बात........जिले में मार्च महीने के अन्त से ही बाहरी प्रान्तों के व्यापारी आकर छोटी ट्रकों/पिकअप वाहनों पर लादकर विभिन्न नामों से आइसक्रीम, कुल्फी, रबड़ी-फालूदा, मिल्क शेक, बादाम शेक आदि की बिक्री कर रहे हैं। क्या इन व्यवसाइयों ने खाद्य सुरक्षा महकमें से कुल्फी फालूदा आदि की बिक्री हेतु पंजीयन कराया है? जिले में इन व्यवसाइयों द्वारा कहाँ-कहाँ धन्धा किया जा रहा है इसका रिकार्ड क्या विभाग की पंजिका में दर्ज है.....? साँवलिया, महावीर, मेवाड़ प्रेम, श्रीकृष्णा......आदि नामों से आइसक्रीम, कुल्फी, रबड़ी, फालूदा, मिल्क/बादाम शेक आदि लदे मिनी ट्रक शहर के मुख्य स्थानों पर सड़कों के किनारे खड़े देखे जा सकते हैं। मानक के विपरीत कुल्फी फालूदा में अखाद्य सामग्रियों का समावेश/मिश्रण किया जाना जनस्वास्थ्य पर कुप्रभाव डाल रहा है। 50 रूपए से लेकर 100 रूपए प्रति ग्लास, प्लेट मिलने वाला इस ठण्डे खाद्य व पेय पदार्थ का सेवन करने वाले त्वचा एवं उदर रोग से ग्रस्त हो रहे हैं।
रीता विश्वकर्मा
8765552676





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