मोहर्रम अली
  जौनपुर। पीर जब पर्वत हो जाती है तो पिघलने लगती है। तदुपरांत पीड़ा की अविरल गंगा के बहाने के आसार नमूदार होने लगते हैं किन्तु जनपद की सीओ चकबन्दी की न्यायालय का साल में 2 दिन चलना तो हमें गुलामी व दास्ता की ओर ले जाकर हमारी जुबान को ही दिल दे रहा है।

जनपद के पूर्वी सिरे पर बसे गांव को देखा जाय तो ये बदनसीब गांव नरहन, सिहौली, धर्मापुर व उदयचंदपुर हैं। ये गांव वर्ष 1880 में बने मैप से चल रहे हैं। इन गांवों की चकबन्दी किये जाने के लिये महामहिम राज्यपाल ने वर्ष 1992 में गजट करवाया था जिसमें समय सीमा देकर चकबन्दी अतिशीघ्र करवाये जाने के आदेश पास किये गये किन्तु गांव के छुटभैये नेताओं ने ऐसा कुचक्र चलाया जिससे चकबन्दी प्रक्रिया फंसती चली गयी।
जनपद का एक न्यायिक पहलू यह भी है कि चकबन्दी अधिकारी अपनी न्यायालय में बैठते हैं लेकिन लगातार अनाप-शनाप बिन्दुओं पर होने वाली हड़तालें इनकी राहों में रोड़े अटका रही हैं। किसान की बदहाली का रोना रोने वाली सरकारें और उनके नुमाइंदे इस दिशा में खुद को असहाय मान रहे हैं। नरहन ग्रामसभा के सरकारी अभिलेख यह बताते हैं कि बहुत सी जमीनें ऐसी हैं जिस पर नाम किसी के हैं और काबिज कोई और है।
यही एक पहलू है जिससे दरखास्त पर दरखास्त इस क्रांतिकारी गांव से शासन-प्रशासन को भेजी जाती है जो प्रक्रिया में विलम्ब का कारण बन रही है। गंवई छुटभैये नेताओं की दुकान तब तक चलेगी जब तक प्रकरण चलेगा। ऐसे में जब सीओ चकबन्दी की न्यायालय साल में 2 दिन चलेगी तो सब मिलाकर किसान सिस्टम की आग में जलेगा।




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