लोकसभा सामान्य निर्वाचन-2019 के परिणाम आ गए हैं और केन्द्र में मोदी सरकार के पुनः गठन को लेकर चहल-पहल भी शुरू हो गई है। मोदी का दुबारा प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। 2014 के चुनाव परिणाम और वर्तमान चुनाव परिणाम को देखकर यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि देश में मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हुई है। जहाँ भी भाजपा के प्रत्याशी भारी मतों से विजयी हुए हैं या फिर कम अन्तर से पराजय का मुँह देखे हैं वहाँ मोदी की लोकप्रियता ही प्रमुख फैक्टर रही।
हम उत्तर प्रदेश के 55- अम्बेडकरनगर लोकसभा की बात कर रहे हैं, जिसका गठन बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने 29 सितम्बर 1995 को किया था। तत्समय सुश्री मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं और उनका यह प्रथम मुख्यमंत्रित्व काल था।

इस जिले का गठन करके मायावती ने लगभग सभी जाति के लोगों को अपना मुरीद बना लिया। परिणाम यह होता रहा कि 23-24 सालों में जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें बसपा की भारी विजय हुई है। इस जिले को बसपा का अभेद्य दुर्ग भी कहा जाता रहा है। यह मिथक वर्ष 2014 में तब टूटा जब नरेन्द्र मोदी की सुनामी चली। वर्ष-2014 में अम्बेडकरनगर की लोकसभा सीट से भाजपा के डॉ. हरिओम पाण्डेय विजयी हुए थे और इनकी जीत का कारण मोदी लहर थी।
2019 में हुए लोकसभा चुनाव उपरान्त आए परिणाम को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि यह किसी भी तरह से अप्रत्याशित रहा। 55-अम्बेडकरनगर लोकसभा क्षेत्र के चुनावी मैदान में महागठबन्धन (सपा-बसपा-रालोद) के प्रत्याशी जलालपुर बसपा विधायक रितेश पाण्डेय और उत्तर प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री (सहकारिता) भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा आमने-सामने रहे। यह संयोग तब बना जब काँग्रेस के नामचीन नेता उम्मेद सिंह निषाद का नामांकन अभिलेखों में त्रुटियों की वजह से जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया। यदि उम्मेद निषाद चुनावी मैदान में बने रहते तब यहाँ का चुनाव रोचक और त्रिकोणीय हो जाता।
सपा के आधार मत अहीर, मुस्लिम और बसपा के दलित, राजभर व निषाद कहे जाते हैं इसके अनुसार यदि 55-अम्बेडकरनगर लोकसभा क्षेत्र में महागठबन्धन के अहीर, मुस्लिम, दलित, राजभर, निषाद की गणना की जाए तो वोट के आधार पर प्रत्याशी की जीत नामांकन के समय ही तय हो गई थी। यह तो रही गठबन्धन प्रत्याशी रितेश पाण्डेय की स्थिति। दूसरी तरफ भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा जिनके पास कोई आधार मत नहीं था बावजूद इसके यहाँ का कुर्मी मतदाता जाति के आधार पर इस दिग्गज नेता की तरफ आकृष्ट हुआ। यही कारण रहा कि मुकुट बिहारी वर्मा ने जीत भले ही न हासिल की हो परन्तु गठबन्धन प्रत्याशी रितेश पाण्डेय को कड़ी टक्कर दी।
जातीय आधार पर देखा जाए तो 55-अम्बेडकरनगर लोकसभा में दलित मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद निषाद, राजभर, कुर्मी, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है। क्षत्रिय मतदाता नाम मात्र के हैं। इनसे ज्यादा ब्राम्हण मतदाताओं की संख्या है। रितेश पाण्डेय (महा गठबन्धन प्रत्याशी) की जीत के मुख्य कारक दलित 3 लाख 35 हजार, मुस्लिम 2 लाख 13 हजार, निषाद 2 लाख 95 हजार, राजभर 2 लाख 70 हजार, अहीर 1 लाख 96 हजार और इनके स्वजातीय मतदाता ब्राम्हण 1 लाख 58 हजार रहे।
मुकुट बिहारी वर्मा (भाजपा प्रत्याशी) को 4 लाख 67 हजार 287 मत कैसे मिले इस सम्बन्ध में राजनीति के जानकारों का कहना है कि अम्बेडकरनगर लोस के 2 लाख 45 हजार कुर्मी मतदाताओं ने सहकारिता मंत्री को अपना स्वजातीय कद्दावर नेता स्वीकारा और उनका आधार वोट बन गए। अम्बेडकरनगर में 61.22 प्रतिशत रिकार्ड मतदान हुआ जिसके परिणाम स्वरूप दोनों प्रत्याशियों को भरपूर मत मिला।
जानकारों के अनुसार इस बार के चुनाव में मुस्लिम को छोड़कर लगभग सभी जाति के मतदाताओं ने अपना समर्थन भाजपा प्रत्याशी मुकुट बिहारी वर्मा को दिया। परिणाम यह रहा यहाँ के संदर्भ में आधारहीन राजनीतिक पार्टी भाजपा के प्रत्याशी को 4 लाख 67 हजार 287 वोट मिले। यह वोट कैसे मिले के बावत जानकारों का कहना है कि ब्राम्हण, कुर्मी, निषाद, अहीर, राजभर कुछ प्रतिशत दलित जाति के मतदाताओं ने ई.वी.एम. की पहले नम्बर वाली बटन दबाया।
आये चुनाव परिणाम के अनुसार रितेश पाण्डेय को 5 लाख 63 हजार 245 मत मिले। इन्होंने 95 हजार 958 के अन्तर से अपने निकटतम प्रतिद्वन्दी भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा को शिकस्त दी। राजनीति के जानकारों की चौपाल में बैठने पर जो विश्लेषण प्राप्त हुआ उसके अनुसार इस बार के चुनाव में जिले का धनाढ्य व स्वाभिमानी कुर्मी जाति का मतदाता ध्रुवीकृत हुआ और मुकुट बिहारी वर्मा के लिए आधार मत साबित हुआ। यदि ऐसा न हुआ होता तो जीत हार का अन्तर काफी बढ़ गया होता। इस आधार मत के साथ जो भी और मत मिले हैं वह मोदी आकर्षण और केन्द्र सरकार की नीतियों का परिणाम कहा जा सकता है।
इस कथित नीरस चुनाव की रोचकता नामांकन के समय ही समाप्त हो चुकी थी जब काँग्रेस के दिग्गज उम्मेद सिंह निषाद का पर्चा खारिज हो गया था। लोगों का मानना है कि यदि उम्मेद लड़े होते तो यहाँ का परिणाम कुछ और ही होता। इस चुनाव में सुभासपा प्रत्याशी राकेश ने भी राजभर मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने का प्रयास किया, परन्तु अकबरपुर के विधायक/बसपा के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व मन्त्री राम अचल राजभर की वजह से उन्हें कामयाबी नहीं मिली। जानकार कहते हैं कि कुछ निषाद मतदाता एक पूर्व स्वजातीय मंत्री की वजह से भाजपा की तरफ आकृष्ट हुआ। ब्राम्हण मतदाता रितेश पाण्डेय के साथ खड़ा दिखा। अहीर मतदाताओं का क्या कहना, उन्होंने तारीफ तो नमो की किया परन्तु वोट दिया अखिलेश यानि सपा को। मुस्लिम (सपा), दलित (बसपा) ने अपनी पार्टी व नेता का दामन नहीं छोड़ा साथ ही स्वाभिमानी कुर्मियों ने स्थानीय स्वजातीय दिग्गजों की परवाह किए बगैर बाह्य जनपद से आए (पैराशूट से उतरे) भाजपा कैंडीडेट मुकुट बिहारी वर्मा को अपनाया। बनिया यानि वैश्य, कायस्थ व संख्या में कमतर अन्य जाति के मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया। रही क्षत्रियों की बात तो 1 लाख 10 हजार मतदाताओं में से कुछ को छोड़कर बाकी ने भाजपा के पक्ष में वोट किया।
इस तरह 61.22 प्रतिशत मतदान वाले 55-अम्बेडकरनगर लोकसभा में कुल 10 लाख 88 हजार 118 मत पड़े। यहाँ कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 22 हजार रही। बसपा का अभेद्य दुर्ग एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में लौटा। सपा-बसपा-रालोद की एक जुटता में बसपा प्रत्याशी रितेश पाण्डेय के सिर जीत का सेहरा बंधा। मुद्दा विहीन चुनाव सिनेरियों में इस लोकसभा की पाँचों विधानसभाओं में जातिवाद का बोलबाला दिखा।
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
मो. 9454908400

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