जौनपुर। समाजसेवी मोहम्मद अजमत अली शानू ने कहा है कि हमें खुद को विश्व के सबसे बड़े और गौरवशाली लोकतंत्र का हिस्सा मानते हुए बड़ा गर्व महसूस होता है। ज़ाहिर है इसे गौरवशाली बनाने में कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया के साथ-साथ हर उस व्यक्ति की भागीदारी है जो इस देश का नागरिक है। संविधान ने हमें लोकतंत्र के निर्माण की प्रक्रिया यानि चुनाव में मताधिकार का हक़ दिया है ताकि हम अपने क्षेत्र से सुयोग्य प्रतिनिधियों को चुनकर संसद में भेजें लेकिन सवाल यहीं से शुरू होता है कि हमारा सांसद कैसा हो?
उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे देश का राजनीतिक समीकरण काफ़ी हद तक जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र-विशेष, आर्थिक स्थिति इत्यादि पर ही आधारित रहा है। मौजूदा चुनाव को लेकर भी तमाम कसमे-वादे इन्ही मुद्दों के आसपास दिखाई दे रहे हैं। खुद एक मतदाता होने के नाते मेरी नज़र में इस बार कुछ बदलाव जरुर होने चाहिए। हमारे सांसद चुनने की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर वह शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि जब हमारा सांसद शिक्षित होगा तभी वह अपने और जनता के अधिकारों के बारे में अच्छी तरह जान पायेगा। वरना इस देश के राजनैतिक इतिहास में निरक्षरों के हाथ में भी सत्ता की बागडोर जा चुकी है। जिसका परिणाम वहाँ की जनता आज तक भुगत रही है।

श्री शानू ने कहा ​कि हमारा सांसद जाति-धर्म, क्षेत्र जैसे परंपरागत मुद्दों के बजाय एक आदमी के रोजमर्रा के जीवनशैली को प्रभावित करने वाले कारकों जैसे रोटी, कपड़ा, मकान के साथ-साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी लेने का भी वादा करें। हमारा सांसद अपने चुनावी घोषणा पत्र में बड़े-बड़े लोकलुभावन वादों जैसे लैपटॉप, टैबलेट की बजाय समाज के सभी वर्गों जैसे महिलाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक, बच्चों से लेकर युवाओं तक, दलितों से लेकर अल्पसंख्यकों तक सभी के समावेशी विकास की वकालत करें। हमारा सांसद वही बने जो सभी प्रकार के अपराधिक मामलों, भ्रष्टाचार से दूर हो।
उन्होंने कहा कि हमारे सांसद को अपने क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक तथा भौगोलिक परिवेश का वास्तविक ज्ञान हो अर्थात वह इन सबसे जमीनी स्तर से जुड़ा हुआ हो। इसलिए इस बार सबसे पहले तो हमें राजनीति को हिक़ारत की नज़रों से देखना बंद करना होगा। क्योंकि जब तक हम समाधान का हिस्सा नहीं बनेंगे। तब तक हमें कोई हक़ नहीं बनता कि हम उस समस्या पर ऊँगली उठाएं, आइए हम सब यह ठान लें कि---ना झुकना है, ना सहना है। मन में ले यह सोच, लोकतंत्र के इस अस्त्र को थाम, करेंगे वोट पे चोट।




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