जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के महंत अवैधनाथ संगोष्ठी सभागार में सोमवार को राष्ट्र के पुनर्निर्माण में बुद्धिधर्मी जनों की भूमिका विषयक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया।
मुख्य वक्ता के रूप में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय सहसंयोजक श्रीकांत काटदरे ने कहा कि भारतीयों को गुलामी की मानसिकता से निकाले बिना राष्ट्र का पुनर्निर्माण नहीं हो सकता। इसके लिए हमें अपनी राष्ट्रभाषा का अनुसरण कर अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव करना होगा, कहने का मतलब हमारी शिक्षा में हमारी संस्कृति, वेशभूषा और राष्ट्रभाषा की झलक दिखनी चाहिए। उनका मानना है कि भारत में हिन्दुत्व तभी बचेगा जब उसके जीवन मूल्य सुरक्षित रहेंगे। कोई भी देश तभी साम्थर्यवान बनेगा जब वहां के लोगों में देशप्रेम हो। साथ ही उस देश का अंतिम नागरिक यानी निर्बल वर्ग सशक्त रहे।

इसके पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संगठन मंत्री रामआशीष ने कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था के मूल्यों एवं संस्कृति के अध्ययन में गिरावट आई है। इसीलिए शिक्षा के क्षेत्र द्वन्द की स्थिति बनी है। भारत का मन कुछ है यहां की शिक्षा हमें कुछ और ही बताती है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. आरएन त्रिपाठी ने कहा कि चरित्र की शिक्षा लिए बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास नहीं हो सकता। उनका मानना है कि मानव संक्रमित नहीं मानस संक्रमित हो गया है, इसे रोकना होगा।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डा. राजाराम यादव ने कहा कि बड़े पदों पर बैठे लोग ऊंचे पद पाने के लिए जब तक बोलने में संकोच करते रहेंगे तब तक प्रज्ञा प्रवाह में बाधा आती रहेगी। उन्होंने कहा धर्म, कर्म, अर्थ मोक्ष पर आधारित भारतीय संस्कृति की शिक्षा की पहल हमारे विश्वविद्यालय ने प्रदेश में सबसे पहले की। हमने आध्यात्मिक संचार के लिए रामकथा और योग के कार्यक्रम कराए। उन्होंने कहा कि पश्चिमी शिक्षा और मूल्यों के प्रति देशवासियों के बढ़ते आकर्षण को रोकने के लिए हमें राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम जागृत करना होगा। साथ ही देश में ज्ञान का प्रवाह बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय को पाठ्यक्रम चलाने की स्वायत्तता प्रदान करनी होगी।

इसके पूर्व व्याख्यानमाला के संयोजक प्रो. बीबी तिवारी ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया और उन्मेष प्रज्ञा प्रवाह के अध्यक्ष डा. राधेश्याम सिंह वार्षिक प्रगति रिपोर्ट पेश की और उदय सिंह ने मंचासीन लोगों का परिचय कराया। मंचासीन अतिथि को प्रो. बीडी शर्मा, प्रो. एके श्रीवास्तव, प्रो. अविनाश पार्थीडिकर, डा. प्रमोद यादव, डा. राजकुमार, डा. मनोज मिश्र, डा. सुनील कुमार, डा. मनोज पांडेय, डा. विवेक पांडेय ने पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। अतिथियों को स्मृति चिह्न और अंगवस्त्रम देकर संतोष त्रिपाठी ने सम्मानित किया। व्याख्यानमाला का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्जवलन और वंदेमातरम से हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अजय दिवेद्वी ने किया।
इस अवसर पर अशोक कुमार सिंह, प्रो. वंदना राय, डा. नागेश्वर सिंह, डा. आलोक कुमार सिंह, डा. दिग्विजय सिंह, डा. हिमांशु सिंह, डा. अवनीश सिंह, आर. के अवस्थी, किरन श्रीवास्तव, डा. अमरेंद्र सिंह, डा. संजीव गंगवार, डा. मनीष गुप्ता, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. चंदन सिंह, डा. नीतेष जायसवाल, डा. विनय वर्मा, डा. जाह्नवी श्रीवास्तव, अन्नु त्यागी, पूजा सक्सेना, डा. कमलेश पाल, प्रवीण सिंह, डा. राजीव कुमार, डा. आलोक दास, इंद्रेश कुमार आदि उपस्थित रहे।




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