संस्था अथवा संगठन स्वस्थ्य, मजबूत एवं लोकप्रिय तब होता है जब उसमें कार्यरत छोटे से लेकर बड़ा पदाधिकारी/ओहदेदार अपने दायित्व के प्रति पूर्णतया समर्पित हो। इसकी छवि भी तभी अच्छी बनती है जब सभी ईमानदारी से अपना कार्य करें। हालांकि इस युग में ऐसा बहुत कम ही देखा जाता है कि टॉप टू बाटम सभीं ईमानदार, कर्मठ व अपने दायित्व के प्रति सचेष्ट हों। हर कोई स्वयं के लिए भौतिक सुख-सुविधा जुटाने में संलिप्त देखा जाता है। यह परम्परा अनादिकाल से चलती आ रही है। हम भारतीय हैं, हमारे देश में विशुद्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था है, वही लोकतन्त्र जिसे अंग्रेजी में डेमोक्रेसी कहते हैं। वही डेमोक्रेसी जिसके बारे में कहा जाता है कि- डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेन्ट ऑफ पीपुल, फार द पीपुल एण्ड बाई द पीपुल.......।
ARTO K.N. Singh
स्वाधीन भारत (15 अगस्त 1947 से) में 26 जनवरी 1950 में गणतन्त्र लागू हुआ। देश की जनता के विकास व आने वाली समस्याओं के निराकरण के लिए सरकारी महकमों का गठन हुआ। देश के सभी प्रान्तों में प्रदेश एवं केन्द्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इन्हीं सरकारी विभागों को दी गई। इन विभागों में मुलाजिमों की तैनाती की गई। सब कुछ शुद्ध रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत होने लगा। परन्तु विडम्बना यह रही कि इन सरकारी महकमे में काम करने वाले ओहदेदारों के धनकमाऊ रवैय्ये के चलते घूसखोरी जैसे भ्रष्टाचार का जन्म हुआ। यह परम्परा अब भी बदस्तूर जारी है।
घूसखोरी जैसे कलंक की वजह से कई सरकारी विभाग बदनाम हो चुके हैं। उनमें काम करने वाले ओहदेदारों की छवि भी धूमिल हो चुकी है। फिर भी इन्हीं कालिमायुक्त छवि वाले सरकारी महकमों में कुछ ऐसे अपवाद स्वरूप उच्च ओहदेदार हैं जो पूरी ईमानदारी व कर्मठता से विभागीय कलंक को धोने का प्रयास कर रहे हैं। कलंक पुराना है, विभाग बदनामशुदा हैं......ऐसे में जो भी अपने तरीके से छवि का पुनर्निर्माण करेगा वह अवश्य ही चर्चा का विषय बनेगा।
उत्तर प्रदेश में एक ऐसा महकमा है जिसका नाम सुनते ही हर कोई मुँह बिचका कर नकारात्मक टिप्पणियाँ ही करता है। यहाँ नियुक्त/कार्यरत कर्मियों की टरकाऊ, खाऊ/कमाऊ, रिश्वतखारी जैसी कार्यशैली से त्रस्त आम आदमी इस विभाग की ओर रूख करने से घबराता है। यह महकमा दलाली जैसी व्याप्त कुप्रथा के लिए कुख्यात है। इससे सम्बन्धित विषय-वस्तु पर नाटक, ड्रामा, धारावाहिक व फिल्मों का निर्माण भी होता रहता है। एक टी.वी. धारावाहिक जिसका नाम- चला मुसद्दी ऑफिस-ऑफिस.......के एक एपीसोड में रिजनल ट्रान्सपोर्ट ऑफिस के बारे में थोड़े में ही बहुत कुछ फिल्माकर बताया जा चुका है। आज हम इस नाम के सरकारी विभाग के जिला स्तरीय कार्यालय का जिक्र कर रहे हैं, जिसमें जाने वाले किसी भी मुसद्दीलाल जैसे जरूरतमन्द को अब दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है या उनकी परेशानियों में काफी हद तक कमी आ गई है। (ऐसा अगस्त 2017 से अद्यतन प्राप्त जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है)।
हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर में स्थापित सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी कार्यालय की। जनपद गठन के 22 वर्ष तक इस महकमें में ऐसा ही सब कुछ होता रहा है जैसे कि व्यंग्य फिल्मों में देखा जाता है और हर आम खास में इसके बारे में नकारात्मक अवधारणा बनी हुई थी। अम्बेडकरनगर का गठन 26 सितम्बर 1995 को हुआ था। तब से जुलाई 2017 तक परिवहन महकमे की छवि नाकारात्मक ही बनी हुई थी। इसमें कार्यरत छोटे से बड़ा कर्मचारी व अधिकारी अलोकप्रिय व चर्चा का विषय बना रहता था। घूसखोरी व दलाली व्याप्त थी, बगैर चढ़ावे और दलालों के सहयोग के कोई काम होना टेढ़ी खीर हुआ करता था। परन्तु अगस्त 2017 से परिवहन महकमें में होने वाले आशातीत परिवर्तन व विभागीय कर्मठता के परिणाम स्वरूप यह जिला विभाग व सरकार की पंजिका में अपना नाम दर्ज कराने लगा।
ऐसा चमत्कार क्यों और कैसे हुआ इसके बारे में जानने के पूर्व बताना चाहेंगे कि अगस्त 2017 में सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी के रूप में कैलाश नाथ सिंह की इस जिले में तैनाती हुई, जिन्होंने अपनी कार्यशैली से न सिर्फ विभाग की धूमिल छवि को साफ करना शुरू किया बल्कि विभागीय कार्यालय से दलालों और बिचौलियों व विभागीय कर्मियों पर नियंत्रण लगाया। यह ठीक उसी प्रकार रहा जिस तरह गाँधी जी ने स्वयं पहले गुड़ खाना बन्द किया तत्पश्चात् गुड़ खाने वालों को इसके सेवन से होने वाले नुकसान की नसीहत दी। हालांकि के.एन. सिंह एक अलग मिजाज़ के मालिक है, जिन्हें झूठ बोलना व बकवास करना पसन्द नहीं। वर्क इज वर्शिप को अपना मूलमंत्र मानने वाले ए.आर.टी.ओ. सिंह ने जिले के लोगों को विभागीय नियमों के तहत वाहन रखने व संचालित करने के लिए प्रेरित किया। हफ्ते का कोई ऐसा कार्यदिवस नहीं रहा जब वह परिवहन विभाग के एक सच्चे व ईमानदार मुलाजिम की तरह वाहनों की चेकिंग, जनमानस को यातायात नियमों की जानकारी देते हुए सड़कों पर नजर न आए हों।
जाड़ा, गर्मी, बरसात की परवाह किए बगैर अम्बेडकरनगर परिवहन विभाग के मुखिया ए.आर.टी.ओ. के.एन. सिंह कब किस सड़क पर निकल पड़ें इसका खौफ हर अवैध व अनधिकृत रूप से वाहन संचालित करने वाले वाहन चालक व स्वामियों के अन्दर देखा जा सकता है। अपनी कार्यशैली से के.एन. सिंह ने विभागीय कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों को जहाँ अनुशासित व कर्मठ कर दिया वहीं सड़क पर निकलकर वाहन चेकिंग कर विभागीय राजस्व में हर तरह से इजाफा किया। यह राजस्व वृद्धि वाहनों के सीजिंग, चालान व जुर्माना वसूली के जरिए हुई। ऐसा करने वाले ए.आर.टी.ओ. के.एन. सिंह ने फिसड्डी कहे जाने वाले इस जिले का नाम प्रदेश की पंजिका में अव्वल व उच्च पायदान पर ला दिया। बीते वर्ष के.एन. सिंह को विभागीय उत्कृष्ट कार्य करने पर प्रशस्ति-पत्र मिला था।
वित्तीय वर्ष 2018-19 की समाप्ति के एक माह पूर्व ही वाहनों की चेकिंग कर सीजिंग व चालान में अम्बेडकरनगर जिले के परिवहन महकमे को प्रदेश में पहले स्थान पर जबकि जुर्माना वसूली में पाँचवें स्थान पर लाने वाले ए.आर.टी.ओ. कैलाश नाथ सिंह महकमे में अपनी एक अति कर्मठ मुलाजिम की इमेज बनाने में सतत प्रयत्नशील हैं। इस उपलब्धि की जानकारी होने पर रेनबोन्यूज ने जब उनसे दूरभाषीय सम्पर्क कर वार्ता किया तो उन्होंने कहा कि यातायात नियमों की अनदेखी करने वालों के खिलाफ उनका अभियान लगातार चलता रहेगा, और नियमों की अनदेखी करने वालों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि विभागीय कार्यालय में कार्यरत सभी मुलाजिमों की परिवर्तित कार्यशैली से अब कोई मुसद्दीलाल यहाँ आकर परेशान नहीं हो रहा है। हर जरूरतमन्द विभागीय कार्यों के निष्पादन हेतु कार्यालय में बेझिझक आ- जा रहा है। इसकी पुष्टि के लिए कसम, शपथ तो नहीं खाऊँगा परन्तु इतना जरूर कहूँगा कि साफ-सुथरे शीशे वाले चश्में को धारण कर तटस्थ रूप से एनलसिस करने वाले मेरे द्वारा कही गई उपरोक्त बातों की वास्तविकता से स्वयं अवगत हो सकते हैं।
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी,
वरिष्ठ नागरिक/पत्रकार, अकबरपुर-अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
मो. 9454908400

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