घर में घुस के मारने की भाषा क्या, भारत जैसे महान और गौरवपूर्ण अतीत वाले देश के प्रधानमंत्री की भाषा है? आश्चर्य है।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आतंकवाद का दमन तो बिना गुंडों और लफंगों की भाषा का प्रयोग किए भी हो सकता है। घर में घुस के तो सेना को मारना है और वह घर में हर बार सक्षमता से घुसकर मार चुकी है। 1971 में सेना ने तो घर में घुसकर सिर्फ मारा ही नहीं बल्कि उसने घर को तोड़कर अलग भी कर दिया। एक नया घर ही बना दिया है। आप को घर में घुसना ही नहीं है और न मारना है। आप को तो गांव के हर घर को जो इस समय आपके साथ बना रहे यह देखना है और यह कूटनीतिक कला गुंडे और लफंगई वाली शब्दावली से नहीं बल्कि गंभीर, प्रभाव-पूर्ण, वाक चातुर्य और देश के अंदर सभी की एकता से ही संभव है।

गाली अक्सर मन में पल रहे छिछले खीज और तर्कशून्यता का परिणाम होती है। लोग गाली देना तब शुरू करते हैं जब वे समझ जाते हैं कि अब उनके पास तर्क के लिये न बुद्धि शेष है न विवेक। अगर प्रतिद्वंद्वी अप-शब्द प्रहार के बीच भी स्थितप्रज्ञ बना रहता है तो गालीबाज़ बहस करने वाले का रक्तचाप खुद ही बढ़ने लगता है और तब उस पर केवल तरस आती है।
भारत के प्रधानमंत्री का भाषण पूरी दुनिया में गंभीरता से पढ़ा और सुना जाता है। यह किसी सामान्य नेता का भाषण नहीं है। इन भाषणों की न केवल हर पंक्ति पढ़ी जाती हैं, बल्कि पंक्तियों के बीच भी पढ़ा जाता है। उसके कूटनीतिक निष्कर्ष भी निकाले जाते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जब भी सार्वजनिक मंच पर आते हैं तो वे बहक जाते हैं। वे न केवल तथ्यात्मक ग़लतियाँ कर जाते हैं अपितु अपने विरोधियों पर ऐसे ऐसे छिछले और हास्यास्पद आरोप लगाते हैं कि बाद में सरकार को उन पर सफाई देनी पड़ती है। आज भारत के प्रधानमंत्री अपनी भाषा, झूठ, गलत तथ्यों से भरे भाषणों से मज़ाक के पर्याय बन चुके हैं। प्रधानमंत्री को ऐसे हल्केपन से बचना चाहिए।
प्रधानमंत्री के फोटो साड़ियों और महिलाओं के अंतर्वस्त्रों पर छप रही हैं। मुझे नहीं पता प्रधानमंत्री की सहमति ऐसे फ़ोटो पर है या नहीं। प्रधानमंत्री की फ़ोटो विज्ञापन के रूप में प्रयोग नहीं हो सकती है। यह एक दंडनीय अपराध है और बिना पीएमओ और सूचना प्रसारण मंत्रालय की अनुमति के तो उसे कहीं भी नहीं छापा जा सकता है। सरकार को इसका स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।
प्रकाशपुंज ने कहा कि यह बात भी सही है कि वर्तमान प्रधानमंत्री के अधिकतर समर्थक ऐसी ही भाषा शैली सुनने और बोलने के आदी हैं, तो यह उनकी भी मज़बूरी है कि वे आखिर बोलें भी तो क्या बोलें, शब्द चुनें भी तो कहाँ से चुनें। पर जब इसी भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की वक्तृता शैली, शब्द चयन, शालीन परिहास बोध और विरोध की अद्भुत शैली मन मस्तिष्क में बैठी हुई हो तो उसी दल जो खुद को संस्कार और संस्कृति का झंडाबरदार मानती है कि प्रधानमंत्री को ऐसी छिछोरी शब्दावली से बचना चाहिए।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय
राजनीतिक विश्लेषक
रायपुर, छत्तीसगढ़
मो. 7987394898, 9111777044
(ये लेखक के अपने विचार हैंं)

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