जौनपुर। जीव और भगवान के विशुद्ध मिलन का नाम ही महारास है। रास पंचाद्याई भागवत कथा का प्राण है। इस रास की एकमात्र गोपियां ही अधिकारी हैं। भगवान शंकर को भी इसमें भाग लेने के लिए गोपी बनना पड़ा था। यह बातें मुंगराबादशाहपुर के सिद्धपीठ श्री काली जी के मंदिर प्रांगण में स्वर्गीय शंकर लाल जायसवाल के पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी अंकित आनंद महाराज ने व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि भगवान शंकर आज भी वृंदावन में गोपीश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं। भगवान में पांच गीत वेणु गीत, प्रणय गीत, गोपी गीत, युगल गीत, भ्रमरगीत हैं। भागवत का गोपी प्रेम, रामायण का भरत प्रेम आज भी आदरणीय हैं। उन्होंने कहा कि एकादशी की तिथि सभी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ है। मुचकुंद ही आगे चलकर नरसी मेहता बने।
कथा में मुख्य यजमान विमला जायसवाल हैं। इस अवसर पर अनिल जायसवाल, सुनील जायसवाल, सुशील कुमार, मनोज कुमार, कृष्ण गोपाल जायसवाल आदि उपस्थित रहे।




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