जौनपुर। जिले के सिकरारा क्षेत्र के अजोशी महावीर धाम का इतिहास काफी पुराना है। स्थानीय थाना क्षेत्र के दक्षिण पूर्व सीमा पर स्थित इस धाम के विग्रह को लोग त्रेता युग से जोड़ कर देखते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ श्रद्धापूर्वक मत्था टेकने से लोगों की मन्नत पूरी होती है।
धाम के सेवक पं. गोरखनाथ मिश्र बताते हैं कि धाम पर वर्ष में दो बार विशेष पूजन अर्चन मेला व महोत्सव मनाया जाता है। नाग पंचमी के बाद पड़ने वाले पहले मंगल को बुढ़वा मंगल तथा बसन्त पंचमी के बाद वाले मंगल को शक्ति पर्व पर कड़ाही पूजन व आध्यात्मिक अनुष्ठान होते हैं। इस वर्ष शक्ति पर्व आगामी 12 फरवरी को मनाया जायेगा जिसकी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं।
यहाँ के इतिहास के बार में बताते हैं कि राज भर शासकों पर जीत हासिल करने के लिए चंदेल राजा आझू राय इसी रास्ते से उंचनी जा रहे थे। तब यहाँ आस पास घनघोर जंगल था। यहाँ पहुँचने पर राजा के घोड़े रुक गए। साथ चल रहे पुरोहित बामदेव मिश्र ने विचार कर राजा से उस जगह पर खुदाई कराने की सलाह दी तो बजरंग बली की भव्य प्रतिमा दिखी। उस समय हनुमान जी की पूजा करते हुए मूर्ति को स्थापित कर छोटा से मंदिर का निर्माण कराया गया।
 भर शासकों को पराजित कर लौटते समय विशेष अनुष्ठान व विशाल भण्डारे का आयोजन हुआ। बाद में जन सहयोग से यहाँ मन्दिर का पुनर्निर्माण शुरू हुआ जो आज सात मंजिल का भव्य रूप प्राप्त कर चुका है। साथ ही साथ धाम में राधा कृष्ण, श्री राम जानकी लक्ष्मण, शिव मंदिर, सिद्धि विनायक, दुर्गा जी ,साईं धाम के अलग अलग मंदिर बन चुके हैं जहाँ रोज श्रद्धालु पूजन अर्चन को आते हैं। सात मंजिल ऊँचा सिंह द्वारा दूर से ही भव्यता को दर्शाता है। 
इस धाम का जुड़ाव त्रेतायुग में राम रावण युद्ध के समय लक्ष्मण शक्ति की घटना से भी है। बताया जाता है कि जब हनुमाजी संजीवनी बूटी लेकर रामा दल की तरफ वायु मार्ग से जा रहे थे तो भरत ने किसी राक्षस के द्वारा अयोध्या पर आक्रमण की आशंका से तीर मारकर उन्हें धराशायी कर दिया था। गिरते ही उनके मुँह से हे राम का उदबोधन हुआ तो भरत को लगा कि यह तो कोई राम भक्त है। लोग बताते हैं कि भरत द्वारा मारे गए तीर का निशान विग्रह की छाती पर आज भी है। इस तरह यह धाम क्षेत्र ही नहीं पूर्वांचल के सिद्ध पीठ में गिना जाता है।