शीतकालीन अवकाश पर अफसरशाह हुए चोर-चोर मौसेरे भाई जैसे | #AAPKIUMMID
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आधी जनवरी बीत गई मतलब यह कि सर्दी का आधा मौसम समाप्त। हालांकि अभी तक इन दिनों कुहरा व बदली नही रही फिर भी पहाड़ी इलाकों में हुई बर्फबारी की वजह से गलनभरी कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है। इस वर्ष के पूर्व अब तक की अवधि में स्वास्थ्य के दृष्टिगत नन्हे-मुन्ने बच्चों के स्कूलों में शीतकालीन अवकाश घोषित हो जाया करता था जिसे सम्बन्धित जिलों के जिलाधिकारी अपने विवेक का इस्तेमाल कर उक्त अनिवार्य अवकाश घोषित कर दिया करते थे। उत्तर प्रदेश में भयंकर गलनभरी कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है। आम जन जीवन अस्त-व्यस्त होकर रह गया है। ऐसे में हाकिम का विवेकाधीन अधिकार भी कुम्भकरण की तरह गरम लिहाफ में खर्राटा भर रहा है, और कलेक्टर साहब की निगाह आम जनमानस की दिक्कतों की तरफ उठ ही नही रही है।
हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश सूबे के जनपद अम्बेडकरनगर की, जहाँ के कलेक्टर साहब ठण्ड की तरफ ध्यान न देकर एक दम से खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। मीडिया भी शीतलहर व गलन को लेकर ठण्डी के बावत कलम नहीं चला रहा है। मजबूरन नौनिहाल कड़ाके की ठण्ड में ठिठुरते हुए स्कूल जा रहे हैं। शायद अभी तक प्रशासन के मुखिया को राजस्व विभाग की टीम ने ठण्ड से मरने वालों की संख्या को संज्ञान में नहीं डाला है। यही कारण है कि कलेक्टर साहब अपने विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। उन्हें भय है कि कहीं वह अपने अधिकार प्रयोग कर देंगे तो शासन सरकार से पूछ तांछ न हो जाए, यही दस्तूर है। हमने यहाँ के कलेक्टर को बच्चों के स्वास्थ्य की दुहाई देकर स्कूलों में अवकाश घोषित किए जाने की अपील की थी परन्तु नतीजा सिफर ही रहा। अम्बेडकरनगर के कलेक्टर जनाब सुरेश कुमार जी पर कोई असर नही। एक हफ्ते पूर्व 7 और 8 जनवरी को डॉ. हरिओम (आई.ए.एस.) सचिव उत्तर प्रदेश शासन जो जिले नोडल अधिकारी जनपद में पधारे थे उनके संज्ञान में भी इस गम्भीर समस्या को डाला गया था जिसके पश्चात नतीजा यह हुआ कि विद्यालय बन्द तो नहीं हुए परन्तु स्कूल टाइमिंग परिवर्तित कर 10 बजे से 3 बजे तक कर दी गई। यह आदेश किसी भी स्कूल में प्रभावी ढंग से लागू हुआ हो यह कह पाना मुश्किल है। निजी स्कूल के प्रबन्धकों ने कहा कि जब तक कलेक्टर का सीधा आदेश नहीं हो जाता तब तक वे स्कूलों में अवकाश को कौन कहे शिक्षण कार्य का समय भी परिवर्तित नहीं कर सकते हैं। संलग्न है अम्बेडकरनगर के हाकिम के नाम प्रकाशित हमारा एक पत्र-
अम्बेडकरनगर के कलेक्टर सुरेश कुमार से..
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल स्थित जनपद अम्बेडकरनगर के सभीं इलाकों में बीते 3 हफ्ते से लगातार कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है। हालांकि सूर्य देव के दर्शन नित्य हो रहे हैं, घना कोहरा और बादलों का नामो-निशान नही है फिर भी पहाड़ों पर बर्फबारी की वजह से चलने वाली सर्द हवाओं ने जनमानस को कंपकंपाने पर मजबूर कर दिया है। पारा 4 से लेकर 6 डिग्री के बीच पहुँच गया है। हाड़कंपाऊ ठण्ड जारी है। लोगों के अनुसार इस तरह की ठण्ड पहली बार पड़ रही है। नवम्बर-दिसम्बर पूरा बीत गया। आसमान साफ रहा, कुहासे का पता नहीं फिर भी भयंकर शीतलहर ने आम-खास सभी को हिलाकर रख दिया है। गाँव हो या शहर सर्वत्र कड़ाके की ठण्ड में जन-जीवन कांपता नजर आ रहा है। इन सबके बावजूद शासन स्तर से शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए गरीब असहायों को न तो गर्म कपड़ों व कम्बल का वितरण कराया गया और न ही अलाव की व्यवस्था कराई गई, जो अत्यन्त ही सोचनीय है।
अम्बेडकरनगर जनपद में प्रशासनिक संवेदनहीनता का यह उदाहरण पहली बार देखने को मिल रहा है। आश्चर्य होता है कि ऐसा तब हो रहा है जब इस जिले के कलेक्टर की कुर्सी पर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुरेश कुमार विराजमान हैं। यहाँ बता दें कि बीते दशक में जिला कलेक्टर के पद पर तैनात होने वाले श्री सुरेश कुमार सीनियर आई.ए.एस. हैं। जन स्वास्थ्य के दृष्टिगत इन्होंने अब तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जिसका जिक्र किया जाए। इस ठण्डक में परिणाम यह है कि जिले की पाँचों तहसील क्षेत्रों में परिषदीय एवं निजी प्रबन्धकीय स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों को हाड़कंपाती ठण्ड में कांपते हुए स्कूल जाना पड़ रहा है। निजी स्कूलों के ओहदेदारों से जब-जब इस बावत बात की गई तो उन्होंने सीधा सा जवाब दिया कि जब तक जिलाधिकारी का आदेश नहीं मिलेगा तब तक विद्यालय बन्द नहीं किया जाएगा, और किसकी यह मजाल की वह इस समस्या को स्वयं हाकिम से कहे। उधर हाकिम हैं कि उनके कानों पर जूँ तक नही रेंग रही है। शायद उन्हें भी ऊपर के आदेश का ही इंतजार है।
वर्तमान योगी सरकार का क्या कहना...? योगी हैं.....योगिक क्रियाओं पर शरीर के ताप का संतुलन बनाए रखते हैं, जहाँ तक हमें याद है कि योगी आदित्यनाथ ने अपने लखनऊ स्थित सरकारी आवास में प्रवेश के उपरान्त सभी आधुनिक सुख-सुविधा के सामानों/उपकरणों को हटवा दिया था। जब प्रदेश का मुखिया ऐसा कर सकता तब ऐसी स्थिति में सरकारी अहलकार क्यों न करें जबकि वास्तविकता यह है कि हर छोटे-बड़े सरकारी विभागीय कार्यालयों में सुख-सुविधा भोगी अधिकारी व कर्मचारी अपनी सरकारी सेवाएँ देते हुए मजे कर रहे हैं। इन्हें क्या पड़ी है जो ये सोचे कि प्रदेश के आम एवं गरीब तबके के लोगों के समक्ष कितनी समस्याएँ हैं? जिले के हाकिम का क्या कहना....? मुँह लगों के अलावा अन्य से बात करना इन्हें कतई पसन्द नहीं। मीडिया जब तक चिल्ल-पों नहीं करेगा तब तक हाकिम समस्या को संज्ञान नहीं लेंगे, और मीडिया है कि हाकिम के इर्द-गिर्द रहकर स्वहितार्थ गणेश परिक्रमा करती नजर आ रही है। समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञों की बात ही दीगर है। ये तो चाहते ही हैं कि लोग समस्याग्रस्त रहें और इनकी राजनैतिक मार्केट चलती रहे।
कलेक्टर सुरेश कुमार जी आप को बताना चाहेंगे कि आपके पूर्व के सभी जिलाधिकारी उम्र और सेवा में भले ही आपसे कम रहे हों परन्तु उनमें मानवीय संवेदनाओं की कमी नहीं थी। कहने का तात्पर्य यह नहीं कि आप एक दम से संवेदनहीन हैं फिर भी कम से कम जो आपके अख्तियार में है उसे तो आपको करना ही चाहिए। मसलन- स्कूलों में कड़ाके की ठण्ड में बच्चों के बचाव हेतु अनिवार्य अवकाश (जो आपके विवेक के अधीन होता है) होना ही चाहिए। अलाव जलवाइए, कम्बल बंटवाइए, नौनिहालों के स्कूलों में शीतकालीन अवकाश घोषित करवाइए, समयानुसार सरकार द्वारा प्रदत्त धन का सदुपयोग करके गरीब जनता की मदद कर कल्याण करिए।
सरकारी सेवा के अन्तिम चरण में कुछ पुनीत कार्य कर जाइए, जिससे लोग आपको हमेशा याद करें। ‘‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई....।’’ बुरा मत मानिएगा, ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि आपने लोगों को पीड़ा पहुँचाई है। बच्चों, बूढ़े, गरीब महिला-पुरूषों एवं असहाय लोगों की पीड़ा से मेरे अन्दर जो भाव पैदा हुआ उसी को लिख रहा हूँ। हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या? आप जिला कलेक्टर हैं, वरिष्ठ हैं, सुशिक्षित व अनुभवी हैं, मेरे कहने का अभिप्राय आप बेहतर समझ सकते हैं। गरीबी और बुढ़ापा दोनों बड़े कष्टकारक होते हैं। नए वर्ष में मेरी शुभकामना है कि आपका आने वाला समय और भी बेहतर बीते।
खैर! ज्यादा कुछ भी नहीं कहना है। सेवानिवृत्ति की तरफ अग्रसर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुरेश कुमार (आई.ए.एस.) जिलाधिकारी अम्बेडकरनगर से यह अपेक्षा की जाती है कि वह वातानुकूलित कक्ष से बाहर निकलकर मौसम के मिजाज को जाँचे-परखें और अनुभव करें कि जिनके पास हीटर, ब्लोअर, ए.सी., गीज़र जैसे उपकरण नहीं हैं उनका जीवन इस ठण्ड में कैसा होता होगा? हम तो चाहते हैं कि बहैसियत कलेक्टर जिले के सभी सरकारी विभागीय कार्यालयों में लगे ए.सी./हीटर्स एवं अन्य लग्जरी उपकरणों को हटाने का आदेश/निर्देश दें। ऐसा होने पर ही सही मायने में समाजवाद आएगा वरना यह स्थिति बनी रहेगी, क्योंकि ‘‘जाके पाँव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई.......।’’
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश सूबे के जनपद अम्बेडकरनगर की, जहाँ के कलेक्टर साहब ठण्ड की तरफ ध्यान न देकर एक दम से खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। मीडिया भी शीतलहर व गलन को लेकर ठण्डी के बावत कलम नहीं चला रहा है। मजबूरन नौनिहाल कड़ाके की ठण्ड में ठिठुरते हुए स्कूल जा रहे हैं। शायद अभी तक प्रशासन के मुखिया को राजस्व विभाग की टीम ने ठण्ड से मरने वालों की संख्या को संज्ञान में नहीं डाला है। यही कारण है कि कलेक्टर साहब अपने विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। उन्हें भय है कि कहीं वह अपने अधिकार प्रयोग कर देंगे तो शासन सरकार से पूछ तांछ न हो जाए, यही दस्तूर है। हमने यहाँ के कलेक्टर को बच्चों के स्वास्थ्य की दुहाई देकर स्कूलों में अवकाश घोषित किए जाने की अपील की थी परन्तु नतीजा सिफर ही रहा। अम्बेडकरनगर के कलेक्टर जनाब सुरेश कुमार जी पर कोई असर नही। एक हफ्ते पूर्व 7 और 8 जनवरी को डॉ. हरिओम (आई.ए.एस.) सचिव उत्तर प्रदेश शासन जो जिले नोडल अधिकारी जनपद में पधारे थे उनके संज्ञान में भी इस गम्भीर समस्या को डाला गया था जिसके पश्चात नतीजा यह हुआ कि विद्यालय बन्द तो नहीं हुए परन्तु स्कूल टाइमिंग परिवर्तित कर 10 बजे से 3 बजे तक कर दी गई। यह आदेश किसी भी स्कूल में प्रभावी ढंग से लागू हुआ हो यह कह पाना मुश्किल है। निजी स्कूल के प्रबन्धकों ने कहा कि जब तक कलेक्टर का सीधा आदेश नहीं हो जाता तब तक वे स्कूलों में अवकाश को कौन कहे शिक्षण कार्य का समय भी परिवर्तित नहीं कर सकते हैं। संलग्न है अम्बेडकरनगर के हाकिम के नाम प्रकाशित हमारा एक पत्र-
भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी |
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल स्थित जनपद अम्बेडकरनगर के सभीं इलाकों में बीते 3 हफ्ते से लगातार कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है। हालांकि सूर्य देव के दर्शन नित्य हो रहे हैं, घना कोहरा और बादलों का नामो-निशान नही है फिर भी पहाड़ों पर बर्फबारी की वजह से चलने वाली सर्द हवाओं ने जनमानस को कंपकंपाने पर मजबूर कर दिया है। पारा 4 से लेकर 6 डिग्री के बीच पहुँच गया है। हाड़कंपाऊ ठण्ड जारी है। लोगों के अनुसार इस तरह की ठण्ड पहली बार पड़ रही है। नवम्बर-दिसम्बर पूरा बीत गया। आसमान साफ रहा, कुहासे का पता नहीं फिर भी भयंकर शीतलहर ने आम-खास सभी को हिलाकर रख दिया है। गाँव हो या शहर सर्वत्र कड़ाके की ठण्ड में जन-जीवन कांपता नजर आ रहा है। इन सबके बावजूद शासन स्तर से शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए गरीब असहायों को न तो गर्म कपड़ों व कम्बल का वितरण कराया गया और न ही अलाव की व्यवस्था कराई गई, जो अत्यन्त ही सोचनीय है।
अम्बेडकरनगर जनपद में प्रशासनिक संवेदनहीनता का यह उदाहरण पहली बार देखने को मिल रहा है। आश्चर्य होता है कि ऐसा तब हो रहा है जब इस जिले के कलेक्टर की कुर्सी पर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुरेश कुमार विराजमान हैं। यहाँ बता दें कि बीते दशक में जिला कलेक्टर के पद पर तैनात होने वाले श्री सुरेश कुमार सीनियर आई.ए.एस. हैं। जन स्वास्थ्य के दृष्टिगत इन्होंने अब तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जिसका जिक्र किया जाए। इस ठण्डक में परिणाम यह है कि जिले की पाँचों तहसील क्षेत्रों में परिषदीय एवं निजी प्रबन्धकीय स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों को हाड़कंपाती ठण्ड में कांपते हुए स्कूल जाना पड़ रहा है। निजी स्कूलों के ओहदेदारों से जब-जब इस बावत बात की गई तो उन्होंने सीधा सा जवाब दिया कि जब तक जिलाधिकारी का आदेश नहीं मिलेगा तब तक विद्यालय बन्द नहीं किया जाएगा, और किसकी यह मजाल की वह इस समस्या को स्वयं हाकिम से कहे। उधर हाकिम हैं कि उनके कानों पर जूँ तक नही रेंग रही है। शायद उन्हें भी ऊपर के आदेश का ही इंतजार है।
वर्तमान योगी सरकार का क्या कहना...? योगी हैं.....योगिक क्रियाओं पर शरीर के ताप का संतुलन बनाए रखते हैं, जहाँ तक हमें याद है कि योगी आदित्यनाथ ने अपने लखनऊ स्थित सरकारी आवास में प्रवेश के उपरान्त सभी आधुनिक सुख-सुविधा के सामानों/उपकरणों को हटवा दिया था। जब प्रदेश का मुखिया ऐसा कर सकता तब ऐसी स्थिति में सरकारी अहलकार क्यों न करें जबकि वास्तविकता यह है कि हर छोटे-बड़े सरकारी विभागीय कार्यालयों में सुख-सुविधा भोगी अधिकारी व कर्मचारी अपनी सरकारी सेवाएँ देते हुए मजे कर रहे हैं। इन्हें क्या पड़ी है जो ये सोचे कि प्रदेश के आम एवं गरीब तबके के लोगों के समक्ष कितनी समस्याएँ हैं? जिले के हाकिम का क्या कहना....? मुँह लगों के अलावा अन्य से बात करना इन्हें कतई पसन्द नहीं। मीडिया जब तक चिल्ल-पों नहीं करेगा तब तक हाकिम समस्या को संज्ञान नहीं लेंगे, और मीडिया है कि हाकिम के इर्द-गिर्द रहकर स्वहितार्थ गणेश परिक्रमा करती नजर आ रही है। समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञों की बात ही दीगर है। ये तो चाहते ही हैं कि लोग समस्याग्रस्त रहें और इनकी राजनैतिक मार्केट चलती रहे।
कलेक्टर सुरेश कुमार जी आप को बताना चाहेंगे कि आपके पूर्व के सभी जिलाधिकारी उम्र और सेवा में भले ही आपसे कम रहे हों परन्तु उनमें मानवीय संवेदनाओं की कमी नहीं थी। कहने का तात्पर्य यह नहीं कि आप एक दम से संवेदनहीन हैं फिर भी कम से कम जो आपके अख्तियार में है उसे तो आपको करना ही चाहिए। मसलन- स्कूलों में कड़ाके की ठण्ड में बच्चों के बचाव हेतु अनिवार्य अवकाश (जो आपके विवेक के अधीन होता है) होना ही चाहिए। अलाव जलवाइए, कम्बल बंटवाइए, नौनिहालों के स्कूलों में शीतकालीन अवकाश घोषित करवाइए, समयानुसार सरकार द्वारा प्रदत्त धन का सदुपयोग करके गरीब जनता की मदद कर कल्याण करिए।
सरकारी सेवा के अन्तिम चरण में कुछ पुनीत कार्य कर जाइए, जिससे लोग आपको हमेशा याद करें। ‘‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई....।’’ बुरा मत मानिएगा, ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि आपने लोगों को पीड़ा पहुँचाई है। बच्चों, बूढ़े, गरीब महिला-पुरूषों एवं असहाय लोगों की पीड़ा से मेरे अन्दर जो भाव पैदा हुआ उसी को लिख रहा हूँ। हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या? आप जिला कलेक्टर हैं, वरिष्ठ हैं, सुशिक्षित व अनुभवी हैं, मेरे कहने का अभिप्राय आप बेहतर समझ सकते हैं। गरीबी और बुढ़ापा दोनों बड़े कष्टकारक होते हैं। नए वर्ष में मेरी शुभकामना है कि आपका आने वाला समय और भी बेहतर बीते।
खैर! ज्यादा कुछ भी नहीं कहना है। सेवानिवृत्ति की तरफ अग्रसर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुरेश कुमार (आई.ए.एस.) जिलाधिकारी अम्बेडकरनगर से यह अपेक्षा की जाती है कि वह वातानुकूलित कक्ष से बाहर निकलकर मौसम के मिजाज को जाँचे-परखें और अनुभव करें कि जिनके पास हीटर, ब्लोअर, ए.सी., गीज़र जैसे उपकरण नहीं हैं उनका जीवन इस ठण्ड में कैसा होता होगा? हम तो चाहते हैं कि बहैसियत कलेक्टर जिले के सभी सरकारी विभागीय कार्यालयों में लगे ए.सी./हीटर्स एवं अन्य लग्जरी उपकरणों को हटाने का आदेश/निर्देश दें। ऐसा होने पर ही सही मायने में समाजवाद आएगा वरना यह स्थिति बनी रहेगी, क्योंकि ‘‘जाके पाँव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई.......।’’
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ नागरिक/पत्रकार, अकबरपुर,
अम्बेडकरनगर (उ.प्र.), 9454908400