जौनपुर: आरएसएस ने सहभोज कर सामाजिक समरता का दिया संदेश | #AAPKIUMMID
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सिकरारा, जौनपुर। क्षेत्र के खानापट्टी के जलपरी मैदान पर रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से सामाजिक समरस्ता सहभोज कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें समाज के सभी वर्गों से लगभग 500 लोग शामिल हुए। इस एकता भोज में सामाजिक समरसता की बयार बही। इस दौरान वक्ताओं ने छुआछूत की भावना समाप्त कर हिंदुओं से संगठित रहने का आह्वान किया। इस दौरान हर घर से एक मुट्ठी अनाज लाकर एकत्रित किया गया।
दिन में नौ बजे से ही उक्त मैदान पर लोगो का जमावड़ा शुरू हो गया। आने वाले लोग अपने हाथों में अनाज या साग सब्जी लिए हुए थे। सभी ने एकजुट होकर सहभोज की खिचड़ी बनाने के बाद एक साथ बैठकर भोजन किया।
कार्यक्रम के मुख्य आयोजक राज बहादुर गुप्ता व आनन्द स्वरूप जायसवाल ने संघ संस्थापक डा. केशव हेडगेवार के चित्र पर माल्यार्पण किया। मकर संक्रांति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सहभोज के माध्यम से सामाजिक समरसता तो बढ़ती है। इसमें सभी लोग सहयोग दें, क्योंकि बिना इसके संपूर्ण हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरो पाना संभव नहीं होगा।
यदुनाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में व्यक्ति को उसके काम-धंधे के हिसाब से जातिसूचक शब्दों बुलाया जाता है। इस तरह के जातिसूचक शब्दों का प्रयोग बिल्कुल ही बंद होना चाहिए। बैताली राम यादव नेे कहा कि जिन्हें शूद्र कहा जाता है उनके जन्म लेने की पद्धति वही है। वह वास्तव में वैश्य हैं। शूद्र का अर्थ अबोध अवस्था होता, जो बालक के जन्म का समय होता है।
नौरंग बहादुर सिंह ने कहा कि शाखा में स्वयंसेवक खेल खेलते व सहभोग कार्यक्रम में भाग लेते हैं। ऐसे कब समरसता का भाव पैदा हो जाता पता ही नहीं चलता। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता लिखने-पढ़ने व भाषण का विषय नहीं हो सकती, उसे जीवन में उतारना होता है।
इस अवसर पर शिवानन्द सिंह, रत्नाकर सिंह, भूपेंद्र सिंह, दीपक सिंह, विश्वनाथ सिंह, अजय गुप्ता, बैजनाथ यादव, अनिल साहू आदि का सक्रिय योगदान था।
दिन में नौ बजे से ही उक्त मैदान पर लोगो का जमावड़ा शुरू हो गया। आने वाले लोग अपने हाथों में अनाज या साग सब्जी लिए हुए थे। सभी ने एकजुट होकर सहभोज की खिचड़ी बनाने के बाद एक साथ बैठकर भोजन किया।
कार्यक्रम के मुख्य आयोजक राज बहादुर गुप्ता व आनन्द स्वरूप जायसवाल ने संघ संस्थापक डा. केशव हेडगेवार के चित्र पर माल्यार्पण किया। मकर संक्रांति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सहभोज के माध्यम से सामाजिक समरसता तो बढ़ती है। इसमें सभी लोग सहयोग दें, क्योंकि बिना इसके संपूर्ण हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरो पाना संभव नहीं होगा।
यदुनाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में व्यक्ति को उसके काम-धंधे के हिसाब से जातिसूचक शब्दों बुलाया जाता है। इस तरह के जातिसूचक शब्दों का प्रयोग बिल्कुल ही बंद होना चाहिए। बैताली राम यादव नेे कहा कि जिन्हें शूद्र कहा जाता है उनके जन्म लेने की पद्धति वही है। वह वास्तव में वैश्य हैं। शूद्र का अर्थ अबोध अवस्था होता, जो बालक के जन्म का समय होता है।
नौरंग बहादुर सिंह ने कहा कि शाखा में स्वयंसेवक खेल खेलते व सहभोग कार्यक्रम में भाग लेते हैं। ऐसे कब समरसता का भाव पैदा हो जाता पता ही नहीं चलता। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता लिखने-पढ़ने व भाषण का विषय नहीं हो सकती, उसे जीवन में उतारना होता है।
इस अवसर पर शिवानन्द सिंह, रत्नाकर सिंह, भूपेंद्र सिंह, दीपक सिंह, विश्वनाथ सिंह, अजय गुप्ता, बैजनाथ यादव, अनिल साहू आदि का सक्रिय योगदान था।