• राज डिग्री कालेज के कार्यवाहक प्राचार्य एसपी ओझा की लूटपाट उजागर
  • फर्जी ढंग से नियुक्त अवकाशप्राप्त ओझा पेंशन के लिये नहीं दे रहे मूल दस्तावेज
  • मुख्यमंत्री पंचम तल से जारी जांच के आदेश के साथ किया जा रहा है खिलवाड़

जौनपुर। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) भारत सरकार द्वारा सरकारी, अर्द्धसरकारी व गैरसरकारी स्रोतों से ली गयी धनराशि में भारी लूटपाट का मामला प्रकाश में आया है। यह मामला शिकायत के अनुसार नगर के बहुचर्चित कालेज राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय के चर्चित कार्यवाहक प्राचार्य डा. शिव प्रसाद ओझा द्वारा किया गया है। पूर्वांचल विश्वविद्यालय से लेकर सचिवालय उत्तर प्रदेश शासन तक लीपापोती का प्रयास भी किया जा रहा है।
उनके द्वारा की गयी अनियमितता व मनमानीपूर्ण रवैये का आलम यह है कि बिना मूल सेवा पुस्तिका के उन्होंने कालेज में पूरा कार्यकाल बीता दिया। साथ ही वर्ष 1982 में उनकी नियुक्ति प्रवक्ता मध्यकालीन इतिहास में हुई जबकि हिन्दी, समाज शास्त्र व सैन्य विज्ञान से स्नातक करने के बाद न जाने किस विषय में उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री ली है। इस पर यहां कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि जो न्यूनतम प्रवक्ता का अर्हता नहीं रखता है, वह प्राचार्य जैसे पद पर कैसे बैठ सकता है।

यूजीसी की मान्यता है कि उच्च शैक्षणिक योग्यता एवं स्नातकोत्तर में 55 प्रतिशत अंक धारी ही प्रवक्ता हो सकता है जबकि डा. ओझा का हाईस्कूल में 42 प्रतिशत, इण्टर में 42.5 प्रतिशत, स्नातक में 47 प्रतिशत है तथा स्नातकोत्तर में 50 प्रतिशत है। साथ ही स्नातक स्तर पर पढ़ाने वाला प्रवक्ता पीजी कालेज का प्राचार्य कैसे बन गया, यह भी प्रश्न अनुतरीय है।
फिलहाल बता दें कि राज डिग्री कालेज के कार्यवाहक प्राचार्य डा. शिव प्रसाद ओझा पुत्र स्व. भगवान दास ओझा निवासी ग्राम रतापुर, पोस्ट बवां, जनपद फैजाबाद के सेवानिवृत्ति के बाद उनकी डिग्री सहित उनके द्वारा की गयी भारी लूटपाट प्रकाश में आया है जो इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है।
उनकी पेंशन आदि के भुगतान के लिये वांदित शैक्षिक प्रमाण-पत्रों को अभी तक कालेज को उपलब्ध नहीं कराया जा सका है जबकि उत्तर प्रदेश शासन के अलावा क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी वाराणसी एवं जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सरायख्वाजा क्षेत्र के राजेपुर गांव निवासी अमरजीत सिंह एवं महाविद्यालय के कार्यालय अधीक्षक रामफेर यादव द्वारा बार-बार मांगा जाता रहा है।
अमरजीत सिंह की शिकायत के अनुसार कार्यवाहक प्राचार्य शिव प्रसाद ओझा की नियुक्ति सारे शैक्षिक अभिलेखों पर संदेह है, वहीं कार्यालय अधीक्षक रामफेर यादव की शिकायत के अनुसार अवकाश ग्रहण करने के बाद अपनी पेंशन सहित अन्य देयों के भुगतान हेतु श्री ओझा द्वारा किये गये आवेदनोपरांत उनकी शैक्षिक प्रमाण पत्र, अंक पत्र, सेवा पंजिका की मूल प्रति आदि की मांग की गयी तो उपलब्ध नहीं करा रहे हैं।
उधर लेखाकार सुधाकर मौर्य का कहना है कि डा. ओझा द्वारा पद का दुरूपयोग करते हुये की गयी कार्यवाही, उत्पीड़न, दबाव आदि की गयी जिसकी शिकायत सम्बन्धित उच्चाधिकारियों से करने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। उनका कहना है कि उनकी जगह कोई दूसरा होता तो अब तक आत्महत्या कर लेता। वर्ष 2008 से प्राचार्य डा. ओझा द्वारा उनसे लगातार गलत कार्य करवाया जाता रहा है जिसकी शिकायत सुधाकर मौर्य द्वारा सम्बन्धित अधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री तक किया जा चुका है जबकि कार्यवाही की जगह उल्टे धमकी का सामना करना पड़ रहा है।
इसी क्रम में डा. आरपी ओझा अध्यक्ष लोक शिकायत जांच समिति की शिकायत के अनुसार कार्यवाहक प्राचार्य रहे डा. ओझा ने यूजीसी द्वारा भवन निर्माण हेतु मिले साढ़े 12 लाख रूपये, पुस्तकालय के पुस्तकों, क्रीड़ा निधि से लिये गये खेल सामानों, नैक सम्बन्धी कार्य के बाबत 4 लाख 59 हजार 101 रूपये सहित अन्य मामलों में भारी गोलमाल करते हुये लूटपाट की गयी है।
वहीं डा. आशाराम प्राध्यापक बीएड विभाग का एरियर भुगतान का धन उच्च शिक्षा निदेशालय उत्तर प्रदेश से जारी हुआ लेकिन प्राचार्य डा. ओझा द्वारा उस धनराशि को दूसरे मद में खर्च कर दिया गया। ऐसे में उच्चस्तरीय शिकायत करने पर डा. ओझा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश भी जारी हो गया है। वहीं आरोप है कि क्षेत्रीय उच्च अधिकारी द्वारा मामले में लीपापोती की जा रही है।
कुल मिलाकर फर्जी ढंग से प्रवक्ता के पद पर नियुक्त होने वाले डा. शिव प्रसाद ओझा ने बतौर कार्यवाहक प्राचार्य के रूप में यूजीसी भारत सरकार द्वारा जारी धनराशि सहित महाविद्यालय परिसर का करोड़ों रूपये का लूटपाट किया है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि ‘देखिये प्राचार्य ओझा का खेल, सरकार के करोड़ों रूपये को दिये रेल’।




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