कभी ’मिनी कश्मीर’ या ’लघु पाकिस्तान’ करार दिये जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर साम्प्रदायिक उपद्रव पर भले ही पीड़ितों का नजरिया अलग-अलग है। लापरवाह प्रशासन का दृष्टिकोण उन दोनों उपद्रवी गुटों से बिल्कुल अलग, लेकिन सांप्रदायिक उपद्रवों से अभिशप्त भारतीय बहुसंख्यक जनमानस, जो कि यदाकदा अपेक्षाकृत कड़ी प्रतिक्रिया देने के लिये विवश कर दिया जाता है। अल्पसंख्यक हुड़दंगियों द्वारा, आज पुनः यह सोचने पर मजबूर है कि क्या पाक की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई के मास्टर प्लान पर सुलगते समाज विशेष की अशोभनीय-अमानवीय सामाजिक हरकतों को आखिर कबतक बर्दाश्त किया जाएगा और क्यों किया जाएगा?

सुरेश गांधी
अब तक की जांच में यह सच है कि बुलंदशहर का दंगा पूर्व नियोजित है। इसकी सूचना गोपनीय विभागों द्वारा प्रशासन को कई बार दी गयी। लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगा। लापरवाही का नतीजा यह रहा कि सूचना के बाद भी चौका नहीं रहा। मतलब साफ है बुलंदशहर में प्रशासन निष्पक्ष नहीं है। प्रशासन की लापरवाही का ही परिणाम यह है कि मामूली विवाद के दौरान भड़की हिंसा व हंगामें में की गयी पथराव के चलते पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की सिर में पत्थर लगने एवं पत्थर से सुमित नामक युवक की मौत हो गयी। जबकि दर्जनभर लोग गंभीर रुप से घायल हो गए। घटना की वजह गोकशी के शक में लोगों में भड़का आक्रोश, उपद्रव व सूचना के बाद भी कार्रवाई न होना बताया जा रहा है। सच कहा जाय तो सांप्रदायिक उपद्रव देश की न तो पहली साम्प्रदायिक घटना है और न ही अंतिम? लेकिन गोकशी विवाद के दौरान जो कुछ भी घटित हुआ वह आकस्मिक नहीं, बल्कि सुनियोजित प्रतीत होता है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि साम्प्रदायिक नजरिये से घटित यह घटना अपने आपमें एक विस्मयकारी शुरुआत है जो कि हमारी अल्पसंख्यक संवैधानिक सोच पर किसी करारे तमाचे से कम नहीं! दो टूक कहें तो पीड़ितों की कसक और दंगाइयों की ठसक से पूरी प्रशासनिक व्यवस्था ही सवालों के घेरे में है?
सर्वाधिक हैरत तो इस बात पर हो रही है कि जो कुछ भी किसी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के लिये बदनाम कांग्रेसी, समाजवादी, वामपंथी पृष्ठभूमि वाली सरकारों के युग में हुआ, वह अब बीजपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी विशेषकर योगी-मोदी सरकार में भी यदि नहीं थमा, तो कहीं न कहीं वह प्रशासनिक लापरवाही जरूर बरती गई जो उसकी दिनचर्या में शामिल है, जिससे मौजूदा सूबाई-केंद्रीय दोनों सरकारें भी कलंकित हो गईं, विशेषकर हिन्दू उत्पीड़न के नजरिये से, जिसे वह भी नहीं थाम पाई। लिहाजा, तेजी से बदलते वक्त की अब यह अहम दरकार समझी जा रही है कि कतिपय प्रशासनिक लापरवाहियों की शीघ्रातिशीघ्र पड़ताल की जाय, अविलम्ब उसका समुचित निराकरण किया जाय, ताकि भारतवर्ष को किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक-जातीय-क्षेत्रीय हिंसा-प्रतिहिंसा के मनोभाव से मुक्ति मिले और वह ’सबका साथ-सबका विकास’ के समतामूलक राजमार्ग पर सरपट दौड़ सके, क्योंकि ऐसी अप्रत्याशित घटनाएं ही किसी भी सुशासन-सुव्यवस्था के लिये स्पीड ब्रेकर बनती हैं। यदि निष्पक्ष कोशिश करेंगे तो निःसंदेह सफल होंगे
बता दें, स्याना क्षेत्र में गोवंश मिलने से लोगों का गुस्सा भड़क गया। बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर आ गए। इसके बाद भड़के लोगों ने पथराव भी शुरू कर दिया। ये हंगामा इतना बड़े पैमाने पर हुआ कि इसमें एक पुलिस इंस्पेक्टर व ग्रामीण युवक को अपनी जान गंवानी पड़ी है। लोगों के जेहन में सुलगता सवाल यही कि ऐसी ओछी और गम्भीर हरकतों के मद्देनजर क्या आपको नहीं लगता कि बुलंदशहर से अब समुदाय विशेष बहुल भारतीय क्षेत्रों को मद्देनजर रखते हुए ’नफरत भरे कश्मीरीकरण’ की शुरुआत कर दी गई है जो विपक्ष के मिशन 2019 को मजबूत करेगी और मोदी-योगी राष्ट्रीय मिशन को कमजोर? सच कहें तो इस विकट स्थिति-परिस्थिति के लिये हमारा लुंज-पुंज और अपेक्षाकृत लापरवाह प्रशासन भी कम जिम्मेवार नहीं है। इसलिये हर किसी को यह आशंका घेरे हुए है कि निकट भविष्य में यह अविवेकी प्रक्रिया और तेज की जाएगी, जो कि एक प्रकार की वैचारिक त्रासदी है और इससे कठोरतापूर्वक निपटने के संवैधानिक उपाय भी अविलम्ब करने होंगे, ताकि लक्षित समाज को कानूनी दाँवपेंचों से बचाया जा सके। दरअसल ’नफरत भरे कश्मीरीकरण’ से हमारा अभिप्राय कथित शांतिप्रिय समुदाय विशेष में खुलेआम सड़क पर गोकशी के प्रति नफरत भाव पैदा करने-करवाने से है। यही नहीं, भारत और सनातन विरोधी करतूतों को प्रश्रय देने की गुप्त गुंजाइश बनाने, विद्रोही चेतना वाले मन को टटोलने और बहकाने, भारत माता की जयकारे लगाने से उपजती कथित शर्मोहया को हवा देने-दिलवाने, विधर्मियों के पर्व-त्योहार की उपेक्षा करने-करवाने की सीख देने और उनके विशेष धार्मिक मौके पर सुनियोजित बखेड़े खड़े करने जैसे कतिपय घातक भावनात्मक लोकतांत्रिक हथियारों से भी है। क्योंकि इसके सहारे ही विदेशी ताकतों और उनके पैसों-इशारों पर उधम मचाने वाले देशद्रोही भारतीयों द्वारा निज लक्षित वर्ग को बहकाकर सामाजिक अशांति, यथा साम्प्रदायिक दंगे, जातीय बलवे, पेशेवर झगड़ा-फसाद पैदा करने-करवाने और उन्हें सुनियोजित व संगठित रूप से हवा देने जैसे कुकृत्यों से है जिसमें हमारे भोले-भाले लोग फंस जाते हैं, और फिर अपना बहुत कुछ लूटकर या तो जेल चले जाते या फिर सड़क पर आ जाते हैं।
दरअसल, मामला ये है कि स्याना के चिंगरावटी इलाके में आज सुबह ग्रामीणों को गोकशी की सूचना मिली थी। हिंदू संगठन के लोगों को जैसे ही गोहत्या की सूचना या अफवाह मिली, उसके बाद संगठन के लोग सड़कों पर उतर आए। मौके पर गए ग्रामीणों ने पुलिस को मौके पर बुलाया। लेकिन आरोप है कि मौके पर पहुंची पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद ग्रामीणों की सूचना पर वहां हिंदूवादी संगठनों के नेता भी पहुंच गए और सब ने मिलकर बुलंदशहर हाईवे जाम कर दिया। इस दौरान, प्रदर्शनकारी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा लिखे जाने और उनकी गिरफ्तारी की मांग को लेकर हंगामा कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों ने जो जाम लगाया था वो करीब 2 घंटे तक जाम बना रहा और इस दौरान पुलिस और उनके बीच तीखी झड़प भी हुई। मगर इसके बाद मामला और बिगड़ गया। उग्र हुए प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के ऊपर पथराव शुरू कर दिया। पुलिसवालों ने चौकी में घुसकर अपनी जान बचानी चाही तो प्रदर्शनकारी वहां भी पहुंच गए और चौकी के अंदर ईट-पत्थर बरसाने लगे। बवाल की सूचना पर स्याना से मौके पर पहुंचे प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार और उनकी टीम ने भीड़ को कंट्रोल करने के लिए हवाई फायरिंग भी की। इसी दौरान एक गोली स्थानीय युवक सुमित की छाती में लग गई जिसके बाद भीड़ और ज्यादा हिंसक हो गई। आरोप है कि प्रदर्शनकारियों की ओर से भी गोली चलाई गई जिसमें से एक गोली स्याना के प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार को लगी है। उसके तुरंत बाद सुबोध कुमार को औरंगाबाद के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए ले जाया  गया, जहां उनकी मौत हो गई।
यूपी के एडीजी का कहना है कि खेत में गोवंश का मांस मिला था जिसके बाद गांववाले उत्तेजित हो गए। गोमांस मिलने के बाद गांववालों ने प्रदर्शन किया और दोपहर 12 बजे से 1.30 बजे तक इलाके में हंगामा किया गया। कुछ लोग ट्रैक्टर-ट्राली में जानवरों का मीट लेकर आ गए और चौकी पर पथराव कर दिया। पुलिस ने पहले उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वे उत्तेजित हो गए और पथराव किया। इस हंगामे में प्रदर्शनकारियों की तरफ से पथराव किया गया। इससे स्थिति बेकाबू हो गई। इसके जवाब में पुलिस ने भी जवाबी हवाई फायरिंग की। इस घटना की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई है। इसकी जांच रिपोर्ट 48 घंटे में आएगी। बवाल में जिस सुमित को गोली लगी उसकी मेरठ में उपचार के दौरान मौत हो गई है। उसके परिजनों का कहना है कि वो दोस्त के साथ शादी के कार्ड बांटने बुलंदशहर गया था। एडीजी के मुताबिक गोली लगने से सुमित की मौत हुई है लेकिन गोली किसकी लगी ये जांच के बाद बताया जायेगा। बवाल में मारे गए कोतवाल सुबोध कुमार सिंह पुत्र राम प्रताप सिंह निवासी ग्राम परगंवा, थाना जैथरा जनपद एटा के रहने वाले थे। इनके दोनों पुत्र नोएडा में पढ़ते हैं और इनकी पत्नी साथ रहती थीं।
यह हिंसा ऐसे वक्त हुई है जब बुलंदशहर के दरियापुर-अढौली गांव में तीन दिन से चल रहे मुस्लिम समुदाय के इज्तिमा का समापन था। तबलीगी जमात के कार्यक्रम में देश-दुनिया से लाखों मुस्लिम एकत्र हुए हैं। इस इज्तिमा में देश और दुनिया के 10 लाख से ज्यादा मुसलमान शिरकत करने पहुंचे हैं। तीन दिन तक चले इज्तिमा में शामिल होकर लाखों मुसलमान देश और दुनिया में अमन-चैन के लिए दुआ कर रहे हैं। इज्तिमा में शामिल लोगों के लिए 8 लाख वर्गफुट जगह में पंडाल लगाया गया है। तबलीगी जमात मुस्लिम समुदाय के लोगों का एक जलसा है, जो हर साल राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है, जिसे इज्तिमा कहते हैं. तबलीगी शब्द का मतलब धर्म का प्रचार करना होता है। बता दें, तबलीगी इज्तिमा का उद्देश्य आध्यात्मिक इस्लाम को मुसलमानों तक पहुंचाना और फैलाना है। इस जमात के मुख्य उद्देश्य “छः उसूल“ जैसे-कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग थे। यह एक धर्म प्रचार आंदोलन है और अब यह आंदोलन दुनियाभर के लगभग 213 देशों तक फैल चुका है।

DOWNLOAD APP