जौनपुर। जीआरपी सिपाही हत्याकांड के आरोपी पूर्व सांसद उमाकांत के सरकारी गनर को अपर सत्र न्यायाधीश ने पुलिस एक्ट, अमानत में खयानत, आर्म्स एक्ट की धाराओं में साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि अभियोजन द्वारा केस में शुरू से लापरवाही की गई। अभियोजन मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य से केस साबित करने में असफल रहा। साक्षियों के बयान में भी काफी विरोधाभास रहा।

वादी सूरजमल सिंह प्रतिसार निरीक्षक पुलिस लाइन के प्रार्थना पत्र पर एवं पुलिस अधीक्षक के आदेश पर थाना लाइन बाजार में 15 मार्च 1995 को प्राथमिकी दर्ज हुई। अभियोजन के अनुसार आरक्षी बच्चूलाल जो पूर्व सांसद उमाकांत (तब विधायक) के साथ गनर ड्यूटी पर था। मार्च1995 को जीआरपी सिपाही हत्याकांड के आरोप में निलंबित किया गया। उसने अपनी वापसी लाइन में नहीं कराया तथा उसने कार्बाइन व सरकारी वर्दी जमा नहीं किया।
पुलिस ने विवेचना कर चार्जशीट कोर्ट में दाखिल किया। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद यह पाया की अभियोजन अपने केस को साबित करने में असफल रहा अभियुक्त को निलंबन आदेश की जानकारी होने के बाद उसके द्वारा सरकारी सामान जमा करने की बात ज्यादा विश्वसनीय है।
चार फरवरी 1995 को दो बजे शाहगंज जीआरपी पुलिस लॉकअप में बंद राजकुमार को जबरन छुड़ाकर ले जाने के प्रयास में घातक असलहों से अंधाधुंध फायरिंग कर सिपाही की हत्या कर दी गई।आरोपी राजकुमार को पूर्व सांसद उमाकांत यादव व अन्य द्वारा छुड़ा ले जाने का आरोप है। हत्याकांड की पत्रावली हाई कोर्ट के आदेश पर इलाहाबाद की स्पेशल कोर्ट में भेज जा चुकी है।