डा. प्रदीप दूबे
जौनपुर। ‘माता न कुमाता पुत्र कुपुत्र भले ही’ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित उक्त पंक्ति में मातृ वात्सल्य की इस भावना को शर्मसार करने का मामला सुइथाकला क्षेत्र के रामनगर गांव में आया है जहां छन सुख लागि जनम सत कोटी वाली कलयुगी मां नौ महीने तक अपनी कोख में धारण करने व जन्म देने के बाद कुमाता हो गयी और मातृ शब्द को कलंकित करती हुई अपने नवजात शिशु को नहर के किनारे झाड़ियों में फेंक दिया लेकिन जाको राखे साइयां मार सके ना कोय जहां जननी ने अपने शिशु को मरने के लिये झाड़ियों में फेंक दिया, वहीं अनजान मां ने उसे गले लगाकर जीवन दे दिया। घटना शनिवार की है।
जौनपुर के सुइथाकला क्षेत्र में झाड़ी में
मिले शिशु को गोद लिये बैठी महिला।
उक्त गांव निवासिनी चन्द्रावती पत्नी प्रेम चन्द्र अग्रहरि उसी रास्ते से खेत की ओर जा रही थी। झाड़ी से किसी शिशु के रोने की आवाज सुनकर उसके कदम ठिठक गये। पास जाकर देखी  तो झाड़ियों के बीच एक नवजात शिशु पड़ा रो रहा था। महिला का मातृ वात्सल्य जाग उठा और ममता का शास्वत स्वरूप धारण कर लिया। अनजान शिशु को उठाकर अपने आंचल की छांव दे दी।
नवजात शिशु को लेकर महिला तत्काल स्थानीय चिकित्सक के पास पहुंची जहां पर शिशु का स्वास्थ्य परीक्षण कराने के साथ ही उसे टिटनेस का टीका लगवाया। फिर महिला उस शिशु को लेकर घर आयी जहां परिजनों से उसने उस शिशु को अपने बेटे की तरह पालने की इच्छा जतायी। परिजनों ने खुशी से उस बच्चे को घर में रखने की सहमति दे दी। घटना से जहां जन्म देने वाली कलंकिनी जननी को लोग कोस रहे हैं, वहीं अनजान महिला द्वारा शिशु को गले लगाने की लोग प्रशंसा कर रहे हैं।