• टेण्डर की शर्तों, मानकों और मीनू के अनुसार नहीं दिया जा रहा भोजन

जयेश बादल
ललितपुर। सरकारें जहां आमजन को विशेषकर महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति सचेत होकर उन्हें लाभान्वित करने के लिये तमाम  योजनाएं के क्रियान्वयन में लगी हैं, वहीं सरकारी तंत्र में बैठे भ्रष्ट अधिकारी व उसमें संलिप्त संस्थाएं/फर्मों के भ्रष्ट आचरणों से योजनाएं  पूरा होने से पहले ही दम तोड़ती नजर आती हैं। ऐसी ही एक योजना एनएचआरएम के तहत जननी शिशु सुरक्षा योजना है जिसमें अन्य सुविधाओं के अलावा प्रसूताओं को पौष्टिक भोजन वितरण करना भी शामिल है।
जनपद में भोजन चितरण व्यस्वथा के नाम पर प्रसूताओं के साथ जो सलूक किया जा रहा है, वाकई दुर्भाग्यपूर्ण हैं। शासन की मंशा व जारी किये गये टेण्डर के अनुसार प्रसूताओं को सुबह 8 बजे आधा लीटर पैकबन्द पैकेट का दूध व फल या अण्डे दिये जाने चाहिये। दोपहर व शाम को दाल, रोटी, सब्जी और सलाद दी जानी चाहिये परंतु जवाबिरधा जो महज मुख्यालय से चन्द किलोमीटर दूरी पर है, की हालात का जायजा लिया गया तो नवजात शिशुओं की मां जिन्हें ऐसे समय सबसे अधिक भोजन की आवश्यकता होती है, दोपहर के 1 बजे तक भूखी पड़ी थीं।
न दूध, न फल और न भोजन। पूछने पर प्रसूता महिलाओं ने बताया कि छुट्टी होना है, इसलिये आज कुछ नहीं मिला। दोपहर 1 बजे तक न छुट्टी भी की गयी और न आहार दिया गया। क्या ऐसे स्वस्थ रहेंगी जननी और उनका नवजात। पूछने पर महिला प्रसूताओं ने बताया कि 3 दिन में मात्र दो टाइम भोजन दिया गया। दूध, फल, अण्डे कभी नहीं दिये गये हैं। वही हाल मुख्यालय पर स्थित महिला चिकित्सालय का है। मात्र दो टाइम 4 रोटी, दाल और लोकी की सब्जी देकर इतिश्री कर ली जाती है। न फल, न दूध, न अण्डे चितरित किये जा रहे हैं। कभी-कभी खुला दूध बंट जाता है।
जिला महिला चिकित्सालय में सीएमएस की मेहरबानी से आपूर्तिकर्ता फर्म को नियम के विरूद्ध सरकारी किचन तक मुहैया करायी गयी है। वह भी ताजे भोजन वितरण के नाम पर जबकि आपूर्तिकर्ता फर्म को सरकारी भवन या किचन उपयोग करने की परमीशन नहीं है परंतु सरकारी किचन उपलब्ध करवाने के बाद भी यदि मोनीटरिंग सही से नहीं हो रही है और जांच की बात कहकर पल्ला झाड़ना कहीं न कहीं मुंह छिपाने जैसा ही है।