प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के चतुर्दिक विकास की गाथा जल्द ही देश की गाथा बनने वाली है। या यूं कहें जिस तरह एक-एक कर विकास योजनाओं के जरिए काशी को सजाया संवारा जा रहा है, वो आने वाले दिनों में भारत के नक्शे पर नजीर बनेगा। कहा जायेगा ‘शायद ही कोई प्रधानमंत्री हो जो अपने संसदीय क्षेत्र के लिए इतना संजीदा रहा हो।‘ साढ़े चार साल में अब तक 15 मोदी का काशी दौरा हो चुका है। इस दौरान 40 हजार करोड़ से भी अधिक की विकास योजनाओं का लोकापर्ण व शिलायास कर चुके है। दावे से कहा जा सकता है जब ये परियोजनाएं मूर्तरुप लेंगी तो काशी बदलता बनारस..। ब्रांड बनारस.. के नाम जाना जाने लगेगी। काशी की यही तस्वीर 2019 तक न सिर्फ देश-दुनिया में छाने वाली है, बल्कि चुनाव में इसे गुजरात की तर्ज पर मॉडल की तरह पेश किया जाएगा। गाहे-बगाहे प्रधानमंत्री खुद अपने ट्विटर हैंडल से इसकी झलक देश-दुनिया को दिखाते रहते हैं।
सुरेश गांधी
तीनों लोकों के स्वामी भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी काशी में एक कहावत है, ‘जब काशी करवट लेती है, तो देश का इतिहास बनता है‘। ऐसा लोकसभा चुनाव 2014 में देखा भी गया। काशी से नरेन्द्रदास मोदी न सिर्फ सांसद बने, बल्कि प्रधानमंत्री भी बनकर देश-दुनिया में भारत का लोह मनवाया। अब जब 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक है तो कुछ इसी तरह के कयास लगाएं जा रहे है। माना जा रहा है कि एक सांसद जो कि प्रधानमंत्री भी हैं, अपने संसदीय क्षेत्र में 15 बार आते है। अपने जनता की छोटी से छोटी मूलभूत आवश्यकताओं को न सिर्फ ध्यान में रखते है, बल्कि पूरा भी किया जा रहा है। इसके पीछे जरुर भाजपा एवं संघ की कोई न कोई रणनीति है। इसके संकेत प्रदेश अध्यक्ष डा महेन्द्रनाथ पांडेय के उस बयान से भी होती है, जिसमें वो काशी की कहावत को आगे बढाते हुए कहते है, मोदीजी आपकी अगुवाई में देश करवट लेगा। 2019 में आपकी सरकार फिर आएगी। आपके नेतृत्व में एक बार फिर से देश का इतिहास बनेगा। 
जहां तक काशी के विकास का सवाल है तो यह मोदी की ही करिश्मा है कि अब जल, थल व नभ तीनों से जुड गया है। इसके पीछे प्रधानमंत्री का तर्क है कि इस कनेक्टविटी से न सिर्फ रोजगार बढ़ेगा, बल्कि पर्यटन का भी विस्तार होगा और जब पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो व्यापार स्वतः बढ़ जायेग। यही वजह है कि काशी की सबसे बड़ी समस्या जाम को खत्म करने के लिए रिंग रोड का निर्माण कराया गया। बाबतपुर फोरलेन की स्पीड बढ़ाई। पर्यटक वर्षों से यहां काशी आते हैं। पहले यहां से जो छवि लेकर जाते थे वह किसी से छिपी नहीं हैैै। अब जब बाबतपुर एयरपोर्ट से शहर में प्रवेश करेंगे तो उन्हें काशी की झलक दिखाई पड़ेगी। इसमें न केवल आधुनिकता बल्कि परंपरा का भी ख्याल किया गया है।
चाहे वो बाबतपुर एअरपोर्ट से शहर को जोड़ने वाली सड़क हो या शहर को जाम से मुक्त रखने वाली रिंग रोड हो या कनेक्टिविटी से जुड़े प्रोजेक्ट या बिजली के तारों को अंडरग्राउंड करने से जुड़ी परियोजनाएं हो या मां गंगा को प्रदूषण मुक्त करना। सभी योजनाएं एक-एक कर पूरी हो रही है। जो बचे है आज उन सभी परियोजनाओं, जिनकी लागत 2413 करोड़ है, का लोकार्पण और शिलान्यास किया गया है, जो न्यू इंडिया का न्यू विजन है। मतलब साफ है बतौर सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीरेका में जिस ‘मेरी काशी पुस्तिका‘ का विमोचन किया है, उसमें अपने संसदीय क्षेत्र की विकास यात्रा को एक कदम और आगे बढ़ाया है। इस पुस्तिका में मिशन 2019 के तहत मोदी ने काशीवासियों के सामने चार साल के विकास कार्यों का ब्योरा प्रस्तुत किया है। वाजिदपुर-हरहुआ की सभा में मोदी ने कहा भी कि यह टर्मिनल ’न्यू इंडिया’ के ‘न्यू विजन’ का सुबूत है। इस नई राह का खुलना बहुत जरूरी था।
यह सच है कि पिछले एक लंबे दौर में हमने अपनी नदियों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उन्हें प्रदूषित होने के लिए छोड़ दिया। जबकि ये नदियां हमेशा से ही सिर्फ जीवनदायिनी नहीं, यातायात का बहुत बड़ा साधन रही हैं। एक दौर था जब सामान लाने, ले जाने के लिए लंबी दूरियां सड़कों से नहीं, नदियों से ही तय होती थीं। सड़क मार्गों और वायुमार्गों के विकास की होड़ में हमने अपने परंपरागत जलमार्गों को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया है। देश में 32 साल पहले भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण बन गया था, लेकिन इस मोर्चे पर ज्यादा काम नहीं हो सका। जबकि चीन और अमेरिका जैसे देशों ने अपने जलमार्गों पर बहुत ध्यान दिया और एक इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में जलमार्ग आज उनकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुके हैं। इसे हम इस आंकड़े से भी समझ सकते हैं कि भारत में इस समय कुल माल की 0.1 प्रतिशत ढुलाई जलमार्ग से होती है, जबकि अमेरिका के मामले में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत है। जबकि भारत में यह काम ज्यादा अच्छी तरह हो सकता है, क्योंकि हमारे ज्यादातर बड़े शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं।
यह मल्टी मॉडल टर्मिनल न सिर्फ परिवहन के सस्ते और पर्यावरण के प्रति मित्रवत साधन के रूप में अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भदोही के कालीन निर्यातक भी अपने माल कम दर पर भेज सकते हैं। यह गंगा नदी पर बने पहले 3 ऐसे टर्मिनल में से एक है। विश्व बैंक के वित्तीय तथा तकनीकी सहयोग से 5369.18 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से बने इस टर्मिनल के जरिये 1500 से 2000 टन के बड़े जहाजों की भी आवाजाही मुमकिन हो सकेगी। इस जलमार्ग से समय और पैसा बचेगा, सड़क पर भीड़ भी कम होगी, ईंधन का खर्च भी कम होगा और गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से भी राहत मिलेगी। काशी से कोलकाता वाटरवे से उनको भी फायदा होगा। महज साढ़े चार साल में अर्थ, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन और पर्यटन के मामले में बनारस ने ऐसी छलांग लगाई है कि देश के अन्य शहरों के लिए एक आदर्श के रूप में माना जा सकता है।
पांच राज्यों में चल रहे चुनाव के साथ ही आने वाले लोकसभा चुनाव में यही ब्रांड बनारस मोदी नजीर के तौर पर पेश कर रहे हैं। मोदी ने वादा किया था कि वे बनारस को पूर्वी भारत का गेट-वे बनाएंगे और अपने वादे को पहले कार्यकाल के पूरा होने से पहले पूरा भी कर दिया। बीएचयू का ट्रामा सेंटर, एम्स की समकक्षता, महामना कैंसर अस्पताल, अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र, पेरीशेबल कार्गो, सिटी गैस सिस्टम, ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर, शहर और घाटों का सुंदरीकरण, सड़क व जल परिवहन की उन्नत व्यवस्थाओं के साथ जाने कितनी ऐसी सौगातें है, जिन्होंने बनारस को हर मोर्चे पर विकसित और सुदृढ़ किया है। विकास की यह रोशनी इतनी मुग्धकारी है कि उसकी तारीफ राजनैतिक विपक्षी भी करते हैं। देश-दुनिया से आने वाले सैलानियों को बदलते बनारस का खूब भान हो रहा है। यही वजह है कि आठ लाख सालाना वाले बनारस एयरपोर्ट पर यात्रियों की संख्या इन्हीं साढ़े चार साल में 21 लाख तक पहुंच गई है।
बनारस एक ऐसा केंद्र है जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, बिहार, झारखंड को अपने आंचल में समेटे हुए है। विकास के इस माडल की धमक इन राज्यों के अलावा अन्य सूबों में भी देखी जा सकती है। जहां न सिर्फ बनारस की तर्ज पर बदलाव करने की कोशिश की जा रही है बल्कि वहां के शीर्ष नेता भी अपरोक्ष रूप से यहां के विकास कार्य को अपने लिए प्रेरणा के तौर पर देखते हैं। बाकी जगहों का आगाज चाहे जो रहा हो, अंजाम तो यह तय है कि बनारस से निकली विकास की नदी उफन कर पूरे देश को सरोबोर करेगी। प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय क्षेत्र के जयापुर गांव से सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत कर साथी सांसदों को गांव के विकास की राह दिखाई थी। अस्सी घाट से स्वच्छता का संदेश देकर पीएम ने देश भर में स्वच्छ भारत मिशन की नींव रखी। बाद में यह अभियान देशव्यापी हो गया।
बिजली के तारों के जंजाल से मुक्ति के लिए उन्होंने आईपीडीएस की लांचिंग भी यहीं से की तो बुनकरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार मुहैया कराने के लिए दीनदयाल हस्तकला संकुृल का तोहफा दिया। एक साथ दस हजार दिव्यांगों को उपकरण बांटकर दिव्यांग भाई की उत्पत्ति पीएम मोदी ने यहीं से की थी। पर्यटन को बढ़ाने के लिए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को बनारस लेकर आए। गंगा आरती और गंगा दर्शन के बहाने यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में ढाई गुना तक बढ़ गई है। वाराणसी को 2400 करोड़ की परियोजनाओं की सौगात देने सोमवार को आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आने वाले दिनों में बनारस नेचर, कल्चर और एडवेंचर का संगम बनेगा। वाराणसी से कंटेनर वाले जहाज चलने से अब बंगाल की खाड़ी से वाराणसी जुड़ गया है।
अगर ठीक ढंग से इन जलमार्गों को विकसित किया जाए, तो इसी जलमार्ग की एक शाखा यमुना नदी से होती हुई राजधानी तक भी पहंुच सकती है। वैसे हमारे देश में कुल 14,500 किलोमीटर तक नौवहन हो सकता है। इनमें बड़े कार्गो को नदियों के जरिए 5,000 किलोमीटर ले जाया जा सकता है, इसके अलावा 4,000 किलामीटर तक की लंबाई ऐसी नहरों की है, जिनमें माल की ढुलाई हो सकती है। इसके लिए कई योजनाएं भी बन चुकी हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किलोमीटर, केरल की वेस्ट कोस्ट नहर में 205 किलोमीटर और गुजरात की तापनी नदी पर 173 किलोमीटर लंबा जलमार्ग बनाने की योजनाओं पर भी काम चल रहा है। अगर यह जल परिवहन व्यवस्था शुरू हुई, तो जाहिर है कि हमारी सड़कों से बोझ और शायद जगह-जगह होने वाला जाम भी घटेगा। सड़कों पर वाहनों की जरूरत से ज्यादा भीड़ प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बन चुकी है।
इन जलमार्गों पर सुचारू रूप से परिवहन हो सके, इसके लिए हमें अपनी नदियों की सूरत भी बदलनी होगी और उन पर लगातार ध्यान भी देना होगा। अभी का सच यही है कि हमारी ज्यादातर नदियां लगातार उथली होती जा रही हैं। गरमियों में वे सूखी दिखाई देती हैं और वर्षा के मौसम में वहां जल प्रलय जैसे दृश्य दिखते हैं। जलमार्गों का अधिकतम उपयोग तभी संभव है, जब इन नदियों में नियमित तौर पर गाद की सफाई होती रहे। ऐसी कोशिशें देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों की कारोबार संभावनाओं को तो बढ़ाएंगी ही, साथ ही नदियों के अविरल होने का इंतजाम भी करेंगी। नदियों में संभावनाएं बहुत हैं, लेकिन उन्हें जलमार्ग के रूप में विकसित करने की चुनौती बहुत बड़ी है। यह ऐसा काम है, जिसके लिए बहुत बड़े निवेश की जरूरत होगी और लंबा समय भी लगेगा। लेकिन यह सब अब बहुत जरूरी हो गया है।