प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था। इसलिए यह तिथि खास तो ही, इसी दिन से शरद ऋतु का आरम्भ भी होता है। चंद्रमा इस दिन संपूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है। कहते है इस दिन चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है, जो धन, प्रेम और स्वास्थ्य तीनों देती है। इस दिन व्रत रख कर विधि-विधान से लक्ष्मीनारायण का पूजन करने से हर मनोकामनाएं पूरी होती है। मान्यता है इस दिन रात को खीर खुले आसमान में रखी जाती है। सुबह इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। हालांकि पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर को रात 10ः36 से होगी। तिथि का समापन 24 अक्टूबर रात 10ः14 बजे होगा।
सुरेश गांधी
शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी संग चंद्रमा की आराधना करने का दिन होता है। वो दिन जब चंद्रमा की किरणों से बरसता है अमृत और मां लक्ष्मी भक्तों के लिए खोल देती हैं धन का भंडार। क्योंकि सोम चन्द्र किरणें धरती में छिटक कर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती है। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा और खीर का प्रसाद आपको दिला सकता है दीर्घ आयु होने का वरदान। अगर आपकी किसी खजाने तक पहुंचने की ख्वाहिश है, तो वह पूरी हो सकती है। आपका घर धन से भर सकता है, क्योंकि शरद पूर्णिमा के मौके पर खजाने के वो तीन द्वार जो खुलते हैं सीधे कुबेर के धाम। मान्यता है कि देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है। इस रात को ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्रदेव और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है।

दरअसल, दशहरे के पांचवे दिन यह त्योहार मनाया जाता है। खास यह है कि यह सिर्फ धार्मिक त्योहार ही नहीं है, बल्कि ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ आध्यात्मिक और रचनात्मक उत्सव भी होता है। वर्षा में शीत की तरफ बढ़ते दिनों का संक्रमणकाल हुआ करता है शरद। उसी का उत्सव है शरद पूर्णिमा। आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे कोजागरी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। किसी-किसी स्थान पर व्रत को कौमुदी पूर्णिमा भी कहते हैं। कौमुदी का अर्थ है चांद की रोशनी। इस दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास की शुरुआत की थी। इस पूर्णिमा पर व्रत रखकर पारिवारिक देवता की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से इसी दिन लक्ष्मी का उदय हुआ था। इस दृष्टि से यह लक्ष्मी के आगमन का दिन माना जाता है। इसलिए अधिकतर जगहों पर इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से प्रारंभ होता है। शरद पूर्णिमा का चांद बदलते मौसम अर्थात मानसून के अंत का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है इसलिए शरीर और मन दोनों को शीतलता देता है। इसका चिकित्सकीय महत्व भी है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
वैज्ञानिकों की मानें तो दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चंद्रमा की चांदनी विशेष गुणकारी, श्रेष्ठ किरणों वाली और औषधियुक्त होती है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। इस दौरान खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने का विधान किया गया है। माना जाता है कि इससे खीर में चंद्रमा का अमृत आ जाता है। यह तो है अध्यात्मिक बात, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है। एक अध्ययन के अनुसार, दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने और अगले दिन खाने का विधान तय किया था। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
हर किसी को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा के सामने रहने की कोशिश करनी चाहिए। रात 10 से 12 बजे तक का समय इसके लिए बेहद उपयोगी बताया गया है, क्योंकि शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न हीं धूल-गुबार। यही वजह है कि शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रातः 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है। आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक हर रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा को देखकर त्राटक करें। जो इन्द्रियां शिथिल हो गई हैं, उन्हें पुष्ट करने के लिए चंद्रमा की चांदनी में रखी खीर खाएं। शरण पूर्णिमा की रात में चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।
यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। मान्यता है कि देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है। इस रात को ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्रदेव और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। कहीं-कहीं हाथी की आरती भी उतारते हैं। इंद्र देव और महालक्षमी की पूजा में दीया, अगरबत्ती जलाते हैं और भगवा को फूल चढ़ाते हैं। लक्षमी और इंद्र देव रात भर घूम कर देखते हैं कि कौन जाग रहा है और उसे ही धन की प्राप्ति होती है। इसलिए पूजा के बाद रात को लोग जागते हैं। अगले दिन पुनः इंद्र देव की पूजा होती है। पुराणों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। जिसके उत्सव आज के दिन मनाते है। इतना ही नहीं शास्त्रों के अनुसार ये भी माना जाता है कि मां लक्ष्मी इस दिन उल्लू में सवार होकर धरती पर आती है और वह देखती है कि कौन इस रात को जगकर उनकी पूजा-अर्चना कर रहा है। इसके उपरांत वो फल देती है। ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा सच्चे मन और श्रृद्धा के साथ करने से सभी मनोकामनाएं, धन की प्राप्ति होती है। यदि उसकी कुण्डली में धन योग नहीं भी हो तब भी माता उन्हें धन-धान्य से अवश्य ही संपन्न कर देती हैं। उसके जीवन से निर्धनता का नाश होता है, इसलिए धन की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को इस दिन रात को जाग कर जरुर माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
नारदपुराण के अनुसार इस दिन रात में मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीष देती हैं। एक अन्य कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी। दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया, जबकि छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया। उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। हर प्रांत में शरद पूर्णिमा का कुछ-न-कुछ महत्व अवश्य है। विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग भगवान को पूजा जाता है। परंतु अधिकतर स्थानों में किसी-न-किसी रूप में लक्ष्मी की पूजा अवश्य होती है। बंगाल में शरद पूर्णिमा को कोजागोरी लक्ष्मी पूजा कहते हैं, महाराष्ट्र में कोजगरी पूजा कहते हैं और गुजरात में शरद पूनम। शरद पूर्णिमा पर तरह-तरह के की रस्मों का पालन किया जाता है। इस दिन खीर का भोग लगाया जाता है। दूध के बर्तन में चांद देखा जाता है। चंद्रमा की रोशनी में सूई में धागा डाला जाता है। खीर, पोहा, मिठाई रात भर चांद के लिए रखी जाती है।
शरद पूर्णिमा के दिन पूरा चांद दिखता है। इसी कारण इसे महापूर्णिमा भी कहा जाता है। अगर इस दिन कुछ खास उपाय किए जाएं तो सुख-समृद्धि आती है। शरद पूर्णिमा की रात जब चारों ओर चांदनी बिखरी हुई होती है, उस समय मां लक्ष्मी का पूजन करने से व्यक्ति को धन लाभ होता है। लक्ष्मी पूजा घर के पूजा स्थल या तिजोरी रखने वाले स्थान पर करनी चाहिए। व्यापारियों को अपनी तिजोरी के स्थान पर पूजन करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है, सुपारी को पूजा में रखें, पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेट कर उसका अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखें, धन की कभी कमी नहीं होगी। जो व्यक्ति 16 वर्षों तक करता है ये व्रत, वह किसी भी जन्म में नहीं बनता निर्धन। शरद पूर्णिमा के दिन अगर आप काम-विलास में लिप्त रहें तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी होती है। इसलिए इससे दूर रहना चाहिए। शरद पूर्णिमा पर पूजा, मंत्र, भक्ति, उपवास, व्रत आदि करने से शरीर तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि आलोकित होती है। आध्यात्मिक पक्ष यह है कि जब मानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तो उसकी विषय-वासना शांत हो जाती है। मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है। मन का मल निकल जाता है और मन निर्मल एवं शांत हो जाता है। तब आत्मसूर्य का प्रकाश मन रुपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता हैं। इस प्रकार जीवरूपी साधक की अवस्था शरद पूर्णिमा की हो जाती है और वह अमृतपान का आनंद लेता है। यही मन की स्वस्थ्य अवस्था होती है। इस अवस्था में साधक अपनी इच्छाशक्ति को प्राप्त होता है। योग में इसी को धारणा कहते है। धारणा की प्रगाढ़ता ही ध्यान में परिवर्तित हो जाती है और यहां से ध्यान का प्रारंभ होता है।
सावधानियां:
- इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें।
- उपवास रखें या न रखें, लेकिन इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करें तो ज्यादा बेहतर होगा
- शरीर के शुद्ध और खाली रहने से आप ज्यादा बेहतर तरीके से अमृत की प्राप्ति कर पाएंगे।
- इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें।
- चमकदार सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा।
वैज्ञानकि कारण-
शरद पू्र्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे प्रसाद बनाकर रखने का वैज्ञानकि कारण भी है। यह वो समय होता है जब मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा होता है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा धरती के बहुत करीब होता है। ऐसे में चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे-सीधे धरती पर आकर गरिते हैं, जिससे इस रात रखे गए प्रसाद में चंद्रमा से निकले लवण व विटामिन जैसे पोषक तत्व समाहित हो जाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं। ऐसे में इस प्रसाद को दूसरे दिन खाली पेट ग्रहण करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। सांस संबंधी बीमारियों में लाभ मिलता है। मानसिक पेरशानयिां दूर होती हैं।
क्या करें:
रात्री के समय स्नान करके गाय के दूध में घी मिलाकर खीर बनाएं। खीर भगवान को अर्पित करके विधिवत भगवान कृष्ण की पूजा करें। मध्य रात्री में जब चंद्रमा पूर्ण रूप से उदित हो जाए, तब चंद्र देव की उपासना करके खीर को चंद्रमा की रौशनी में रख दें। खीर को कांच, मिट्टी या चांदी के पात्र में ही रखें। प्रातः काल जितनी जल्दी इस खीर का सेवन करें उतना ही उत्तम होगा। सबसे उत्तम है कि इस खीर का सेवन भोर में सूर्योदय के पूर्व करें। शाम के समय भगवान राधा-कृष्ण की उपासना करें। दोनों को संयुक्त रूप से एक गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि को सफ़ेद वस्त्र धारण करके चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद निम्न मंत्र का कम से कम 3 माला जाप करें -“ॐ राधावल्लभाय नमः“। मधुराष्टक का कम से कम 3 बार पाठ करें। अपार धन की प्राप्ति के लिए इस दिन - रात्री के समय मां लक्ष्मी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। इसके बाद उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। सफ़ेद मिठाई और गुलाब का इत्र भी अर्पित करें। इसके बाद निम्न मंत्र का कम से कम 11 माला जाप करें। - “ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महलक्ष्मये नमः। अर्पित किए हुए इत्र को रोज प्रातः स्नान के बाद लगाएं। इससे आपको धन का अभाव नहीं होगा। किसी बड़े संकट को टालने के लिए रात्रि के समय हलके गुनगुने पानी में चंदन का पावडर डालें। इस जल से स्नान करें और स्नान के बाद सफ़ेद वस्त्र धारण करें। चन्द्रमा को जल में सफ़ेद फूल डालकर अर्घ्य दें। इसके बाद कमलगट्टे या मोती की माला से “ॐ चं चंद्राय नमः“ का 11 माला जाप करें।