ठाणे (महाराष्ट्र)। भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाराष्ट्र के तत्वावधान में शनिवार को मुन्ना विष्ट कार्यालय सिडको बस स्टॉप ठाणे में मुंबई के सम्मानित पांच कवियों के साझा काव्य संग्रह "रुबरु जिंदगी से" का लोकार्पण तालियों की गड़गड़ाहट के साथ संपन्न हुआ।

समारोह की अध्यक्षता डाॅ. इंद्र बहादुर सिंह एवं मुख्य अतिथियों में डाॅ. उमेश चंद्र शुक्ल (एमडी कालेज मुंबई), डाॅ. अतिराज सिंह (पूर्व प्राचार्य बीकानेर राजस्थान), नामदार राही (वरिष्ठ पत्रकार, सहसंपादक दबंग दुनिया), हरजिन्दर सिंह सेठी (संपादक आकलन एवं वरिष्ठ गज़लकार), नरेन्द्र सिंह गहरवाल रहे।
अतिथियों का शाल, श्रीफल व पुष्पगुच्छ भेंटकर सम्मान किया गया। मुख्य अतिथि के साथ वरिष्ठ गीतकार, पूर्व प्रधानाचार्य भुवनेन्द्र सिंह विष्ट ने पुस्तक लोकार्पण के सिरमौर एनबी सिंह नादान, रामप्यारे सिंह रघुवंशी, डा. वफ़ा सुल्तानपुरी, शिल्पा सोनटक्के एवं आभा दवे को शाल व पुष्प गुच्छ भेंटकर सम्मानित किया। 
समारोह के अध्यक्ष एवं प्रमुख अतिथियों ने पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए सभी कवियों के लेखनी को खूब सराहा। सम्मानित कवियों की रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ निम्नवत हैं-
एनबी सिंह "नादान":
प्यार अख़लाक़ की पहचान मुहब्बत है गज़ल।
जिंदगी कहती है बेबाक़-हकीकत है गज़ल।।
हुस्न-ओ-इश्क के साये से निकल कर अब तो।
जुल्मतों की नई आवाज शहादत है गज़ल ।।
रामप्यारे सिंह रघुवंशी:
महलों के चिर स्वप्नों को यदि,
करते रहे उजागर यूं तुम।
रश्मिरथी बन इठलाओगे,
रेशम के पर्दों पर यदि तुम।
टप-टप करती फूस झोपड़ी, 
अंधियारों से सजी पड़ी,
भूख वेदना से आहत मन की,
पीड़ा फिर कौन सुनेगा?
बोलो कवि।।
डाॅ. वफ़ा सुल्तानपुरी: 
नायक हैं राम हिन्द के ये भूलना नहीं।
सियासत की तराजू में इन्हें तौलना नहीं।।
जिससे चिरागे जिंदगी को रोशनी मिली।
अमृत है इसमें और ज़हर घोलना नहीं।।
शिल्पा सोनटक्के:
आस की चादर में लगेंगे और पैबंद कितने,
कुछ तदबीरें तो कर कामयाब, सच कर दे कुछ सपने।
सच की पैरवी करती ये जिंदगी झूठ बहुत कहती है,
बेवफा नहीं फिर भी ये रूठी सी रहती है।।
आभा दवे:
लाल चुनरी में आई,सारी खुशियाँ भर लाई।
तन मन दोनों किया समर्पण,
तब ही सुहागन कहलाई।।
पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई से कवि, साहित्यकार, पत्रकार आदि उपस्थित रहे।
जवाहर लाल "निर्झर":
सवाल के ही गर्भ से जवाब आयेगा।
अंधेरों से निकल कर आफ़ताब आयेगा।
जलेगी शमअ अगर दिल में नई सोचों की,
जुल्म को चीरकर के इन्कलाब आयेगा।।
विनय शर्मा "दीप"
नीर अब बिकता समीर को बचाना होगा, 
बिकती वसुंधरा गगन को बचाइये।
चांद की ज़मीं का मोल-भाव अब होने लगा,
रवि किरणों का मोल होने से बचाइये।।
इस अवसर पर उमेश मिश्रा, विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी, श्रीनाथ शर्मा, संतोष कुमार पाण्डेय, ओमप्रकाश गुप्ता, लता तेजेश्वर रेणुका, आरपी सिंह, कल्पेश यादव, प्रमिला शर्मा, शिवशंकर मिश्र, हरिशंकर पांडे, अनिल कुमार राही, राधाकृष्ण मोलासी, नागेन्द्र नाथ गुप्ता, सुधा बहुखंडी, रेखा किंगर रोशनी एडवोकेट, उमाकांत वर्मा, पवन तिवारी, मुन्ना यादव मयंक (जनहित इंडिया पत्रिका के मुंबई प्रतिनिधि), आरबी सिंह "खूंटातोड़" (हमार पूर्वांचल-पत्रकार), डाॅ. शैलेश वफ़ा, बबलू कन्नौजिया, सोनू सिंह वियोगी, श्रीराम शर्मा, हरदास पाहुजा, केएस शास्त्री आदि ने अपने काव्य रचना से कार्यक्रम में चार-चांद लगा दिया। श्रोताओं ने तालियां बजाकर सभी गीतकार, गजलकार को उनकी रचनाओं पर दाद दी। संस्था सचिव एनबी सिंह नादान ने आभार व्यक्त किया।